बीजेपी की दोहरी सोच उजागर — तालिबान का स्वागत, भारतीय महिलाओं का अपमान!”
कांग्रेस पार्टी ने केंद्र की मोदी सरकार पर आज तक का सबसे तीखा और नैतिक हमला करते हुए कहा है कि भारत की राजधानी में तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताक़ी का राजकीय सम्मान के साथ स्वागत करना देश के लोकतांत्रिक गौरव और वैश्विक मंच पर भारत की महिला सम्मान की प्रतिबद्धता दोनों पर एक काला और अक्षम्य धब्बा है। कांग्रेस प्रवक्ताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि “यह वही क्रूर तालिबान शासन है जिसने अफगानिस्तान में लड़कियों को स्कूल जाने से रोका, महिलाओं को उनके कार्यस्थलों से जबरन बाहर निकाला, और स्वतंत्र पत्रकारों को जेल में ठूंसा है।” पार्टी ने ज़ोर देकर कहा कि ऐसा दमनकारी और आतंक समर्थक शासन जब भारत आकर ‘कूटनीतिक मेहमान’ बन जाता है, तो यह केवल एक राजनीतिक कदम नहीं, भारत के सदियों पुराने आदर्शों, उसकी नैतिक ऊँचाई और संवैधानिक मूल्यों का घोर अपमान है। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार से यह निर्णायक सवाल पूछा है कि “क्या यही वह ‘नया भारत’ है, जिसका आप ढोल पीटते हैं, जहाँ आतंक समर्थक शासन को राजकीय सम्मान और लाल कालीन मिलता है, और वहीं देश के भीतर सवाल पूछने वाले नागरिकों, विपक्ष और छात्रों को देशद्रोही कहा जाता है?” यह कदम बीजेपी के उस दोहरे मापदंड को भी बेनकाब करता है, जिसके तहत बीजेपी नेता बात-बात पर भारतीय मुस्लिमों को ‘तालिबानी’ कहकर गालियाँ और निंदा करते हैं, लेकिन वास्तविक तालिबान को दिल्ली में झुककर सम्मान देते हैं।
दोहरी नीति का पाखंड: 1999 में भी झुके, 2025 में भी घुटने टेके — बीजेपी का आत्मसमर्पण का इतिहास
कांग्रेस पार्टी ने इस राजनयिक कदम को बीजेपी के इतिहास में झाँकने वाला बताया और तीखा आरोप लगाया कि भाजपा का राजनीतिक इतिहास ही आतंक और दबाव के आगे झुकने का इतिहास रहा है। प्रवक्ता ने 1999 के कुख्यात कंधार कांड को याद दिलाते हुए कहा कि “1999 में यह बीजेपी की ही सरकार थी, जिसके विदेश मंत्री जसवंत सिंह आतंकियों को विमान में लेकर कंधार गए थे और उन्हें सम्मान के साथ रिहा करके आए थे, जो कि देश के इतिहास का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था।” उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा कि “आज वही वैचारिक कमजोरी और आतंक के आगे झुकने की मानसिकता एक बार फिर 2025 में तालिबान के सामने दिखाई दे रही है।” कांग्रेस ने कहा कि इस बार अंतर बस इतना है कि आतंकियों को छोड़ने के बजाय, आतंक की राजनीति और उसके दमनकारी शासकों को भारत में कूटनीतिक सम्मान के साथ लाया गया है। कांग्रेस ने स्पष्ट कहा कि इतिहास खुद को दर्दनाक तरीके से दोहरा रहा है — “जसवंत सिंह से लेकर वर्तमान विदेश मंत्री जयशंकर तक, बीजेपी की विदेश नीति दबाव, अवसरवाद और लगातार झुकने की एक कला बन चुकी है।”
तालिबान की दिल्ली में तालिबानी सोच और बीजेपी की चुप्पी: महिला पत्रकार पर बैन क्यों?
कांग्रेस ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी, यानी नैतिक पाखंड पर प्रहार करते हुए कहा कि तालिबान ने दिल्ली आकर भी अपनी तालिबानी सोच को ही लागू किया और बीजेपी की पूरी सरकार ने उसके सामने घुटने टेक दिए। पार्टी ने कहा कि मोदी सरकार ने तालिबान का स्वागत करके न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की नैतिक साख को गहरा झटका दिया, बल्कि देश की करोड़ों महिलाओं के साथ भी विश्वासघात किया है। कांग्रेस ने दस्तावेजीकरण करते हुए आरोप लगाया कि नई दिल्ली में तालिबान के विदेश मंत्री के प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसी भी महिला पत्रकार को सवाल पूछने या उपस्थित होने तक के लिए आमंत्रित नहीं किया गया, जो कि एक संप्रभु लोकतांत्रिक देश की राजधानी में तालिबान की शर्त पर सहमति जताना था।
इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि विदेश मंत्री जयशंकर के पूरे भाषण या संयुक्त बयान में अफगान महिलाओं के मौलिक अधिकारों, शिक्षा या सम्मान का एक शब्द भी शामिल नहीं था। कांग्रेस ने तंज कसा कि बीजेपी एक तरफ “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा लगाती है, लेकिन तालिबान के ‘बेटी बंद करो, दमन चलाओ’ शासन को भारत की राजधानी में राजकीय सम्मान देती है — यह भाजपा की “राजनीतिक ढोंग नीति” का सबसे कुरूप और शर्मनाक रूप है।
कूटनीति या आत्मसमर्पण का डबल मापदंड: ‘बीजेपी करे तो देशभक्ति, कांग्रेस करे तो देशद्रोह’?
कांग्रेस ने बीजेपी के राजनीतिक पाखंड पर सबसे बड़ा और निर्णायक प्रहार करते हुए पूछा कि “अगर आज कांग्रेस सरकार ने तालिबान के शीर्ष नेतृत्व से संपर्क किया होता या उन्हें बुलाया होता, तो भाजपा और उसके ट्रोल टुकड़ी हमें देशद्रोही, राष्ट्रविरोधी करार देने में एक पल भी नहीं लगाती।” कांग्रेस ने तीखे स्वर में कहा कि “लेकिन जब वही विवादास्पद और अनैतिक काम मोदी सरकार करती है, तो पूरा ‘गोदी मीडिया इकोसिस्टम’ और सत्ताधारी दल उसे रातोंरात देशभक्ति का तमगा दे देता है और ‘रणनीतिक परिपक्वता’ बताता है।”
कांग्रेस ने यह सवाल दागा कि “क्या अब इस देश में देशभक्ति और देशद्रोह का निर्धारण भी सत्ताधारी पार्टी के राजनीतिक लाइसेंस से तय होगा?” पार्टी ने आगे उस दोहरे मापदंड को उजागर किया जिसके तहत बीजेपी नेता अक्सर भारतीय मुस्लिमों पर टिप्पणी करते हुए उन्हें तालिबान के साथ जोड़ते हैं, जबकि असली तालिबान को गले लगाते हैं। कांग्रेस ने कहा कि यह केवल आत्मसमर्पण नहीं, यह दोहरी जुबान की राजनीति है, जहाँ भाजपा को न तो वास्तव में महिलाओं के सम्मान से कोई सरोकार है, न ही वैश्विक आतंक के खिलाफ असली, सिद्धांत आधारित रुख से — उनका एकमात्र और अंतिम मकसद राजनीतिक लाभ के लिए हर नैतिक सीमा को लांघना है।
बीजेपी का ‘नया भारत’ अब झुकता नहीं, यह रेंगता है — आत्मिक पतन का दौर
कांग्रेस ने स्पष्ट और शक्तिशाली संदेश दिया कि “बीजेपी का नया भारत अब सिर ऊँचा नहीं रखता, बल्कि झुकता है — यह तालिबान के आगे, अवसरवादी सत्ता की राजनीति के आगे, और अपनी नैतिकता के आगे घुटने टेकता है।” पार्टी ने सवाल उठाया कि जब मोदी सरकार महिलाओं के दमनकारी शासन को राजकीय सम्मान देती है, तो उसे देश के भीतर ‘महिला सशक्तिकरण’ पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बचता।
कांग्रेस ने इस पूरे घटनाक्रम को केवल एक कूटनीतिक चूक नहीं माना, इसे भाजपा की वैचारिक असफलता बताया और कहा: “यह डिप्लोमेसी नहीं, यह डबल स्पीक (दोहरी जुबान) है। यह कोई दूरदर्शी विदेश नीति नहीं है, यह सत्ता बचाने की आत्मसमर्पण की राजनीति है।” भारत की विदेश नीति हमेशा सिद्धांत, स्वाभिमान और संवेदनशीलता पर आधारित रही है, लेकिन मोदी शासन में यह नीति अवसरवाद, नैतिक गिरावट और सत्ता के आगे रेंगने में बदल चुकी है, जिसका सबसे बड़ा प्रमाण दिल्ली में महिला पत्रकार पर प्रतिबंध लगाकर तालिबान को दिया गया राजकीय सम्मान है।