नई दिल्ली 17 अगस्त 2025
हवस वह तीव्र यौन इच्छा है जो शारीरिक आनंद और तृप्ति की तलाश में उत्पन्न होती है। यह एक स्वाभाविक और जैविक भावना है, जो मनुष्य की प्रजनन प्रवृत्ति से जुड़ी हुई है। हवस का मकसद शारीरिक आकर्षण के माध्यम से सेक्सुअल क्रिया को प्रेरित करना होता है। यह भावना अपने आप में न तो अच्छी होती है और न ही बुरी; बल्कि इसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कैसे समझा और नियंत्रित किया जाए।
हवस अक्सर तत्कालिक और क्षणिक होती है, जो केवल शारीरिक इच्छा पर केंद्रित होती है, जबकि प्यार या कामुकता की तुलना में यह अधिक स्वार्थी और सीमित होती है। हवस के कारण लोग आकर्षित होते हैं, लेकिन यदि इसे बिना समझ और संयम के निभाया जाए, तो यह रिश्तों में अस्थिरता, भ्रम, और मानसिक तनाव भी पैदा कर सकती है। कई बार हवस में फंसे लोग केवल शारीरिक सुख के पीछे भागते हैं, जिससे भावनात्मक जुड़ाव और स्थायित्व की कमी रह जाती है।
फिर भी, हवस को पूरी तरह से नकारात्मक समझना उचित नहीं है। यह यौन जीवन का एक अहम हिस्सा है, जो जीवन के प्राकृतिक चक्र का हिस्सा है। हवस की मौजूदगी शरीर और मन को सक्रिय रखती है, ऊर्जा देती है, और यौन जीवन को जीवंत बनाती है। स्वस्थ तरीके से हवस को समझना और इसे प्यार और सम्मान के साथ जोड़ना आवश्यक होता है, ताकि यह एक सकारात्मक भावना बन सके।
हवस और प्यार में स्पष्ट फर्क है—जहां प्यार दीर्घकालिक, समर्पित और भावनात्मक जुड़ाव पर आधारित होता है, वहीं हवस क्षणिक, शारीरिक और अक्सर तात्कालिक संतोष के लिए होती है। स्वस्थ संबंधों के लिए इन दोनों के बीच संतुलन बनाना जरूरी होता है। हवस के कारण उत्पन्न यौन इच्छा जब प्यार और सम्मान से जुड़ती है, तब वह रिश्ता और भी गहरा और मजबूत बनता है।
इसलिए, हवस को समझदारी से स्वीकार करना, उसे नियंत्रित करना और सही दिशा देना जरूरी है। बिना संयम के हवस जीवन में गलत फैसलों, अपराधों, और टूटे रिश्तों का कारण बन सकती है। वहीं, जब इसे सही तरीके से समझा और निभाया जाए, तो यह जीवन के आनंद और यौन स्वास्थ्य का एक सकारात्मक पहलू बन जाती है।