दीवाली की रौशनी से पहले ही आम आदमी के घरों में अंधेरा उतर आया है। घर लौटने की आस में बैठे मजदूर, छात्र और नौकरीपेशा लोग अब बीजेपी की मुनाफाख़ोरी वाली नीतियों के आगे बेबस हैं। नोएडा, ग़ाज़ियाबाद और दिल्ली से चलने वाली निजी बसों ने किराया चार गुना तक बढ़ा दिया है — ₹600 वाला टिकट अब ₹4000 में बिक रहा है। जनता लुट रही है और बीजेपी सरकार मूक दर्शक बनी बैठी है।
अखिलेश यादव का सीधा हमला: “बीजेपी ने ‘सर्ज प्राइसिंग’ के नाम पर कालाबाज़ारी को वैध कर दिया है। अब मुनाफ़ा भी बीजेपी की नीतियों से तय होगा और जनता का दर्द भी। जो कभी ‘सबका साथ’ की बात करते थे, वो आज ‘सबका शोषण’ कर रहे हैं।”
यात्रियों का दर्द अब गुस्से में बदल गया है। नोएडा से लखनऊ का किराया ₹4999, वाराणसी ₹5770 और प्रयागराज ₹7350 तक पहुंच चुका है। मजदूरों और निम्नवर्गीय परिवारों के लिए यह त्योहार अब घर की याद नहीं, बल्कि सरकारी बेरुख़ी का प्रतीक बन गया है। एक यात्री ने तंज कसा, “बीजेपी के राज में अब घर जाना भी अमीरों का त्योहार बन गया है।”
विपक्षी नेताओं ने बीजेपी सरकार पर परिवहन माफियाओं से मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कहा, “बीजेपी ने जनता की जेब काटने के लिए दलालों और बस ऑपरेटरों से सांठगांठ की है। केंद्र में बैठे नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता कि गरीब परिवार साल में एक बार भी अपने गांव जा पा रहे हैं या नहीं। बीजेपी की सोच ही लोगों को दूर करने की है — घर से, परिवार से और अपनापन से।”
सड़कें ठप हैं, सरकारी बसें फुल हैं, और निजी बसों ने जनता की मजबूरी को बाज़ार बना दिया है। 30 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए यात्रियों को तीन-तीन ऑटो बदलने पड़ रहे हैं। “त्योहार तब मनेंगे जब जनता के पास सफर का किराया बचेगा, पेट में खाना होगा और सरकार में इंसानियत होगी — लेकिन बीजेपी के राज में ये तीनों गायब हैं,” विपक्षी नेता का तीखा कटाक्ष।
बीजेपी सरकार का रवैया यह दिखाता है कि उसे त्योहारों, परिवारों और इंसानियत से कोई लेना-देना नहीं। उसकी प्राथमिकता है — कॉर्पोरेट लाभ, कमीशन की राजनीति और जनता की लाचारी।
विपक्ष का अंतिम बयान पूरे माहौल की सच्चाई बयां करता है, “जब तक बीजेपी सत्ता में है, तब तक रोशनी नहीं — अंधेरा ही अंधेरा रहेगा। जब बीजेपी जाएगी, तभी जनता चैन से त्योहार मना पाएगी। देश को राहत तभी मिलेगी जब ये सत्ता की लूटखोर जमात जाएगी।”