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दूरदर्शन: देश की धड़कन, अतीत की विरासत और भविष्य की उम्मीद

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नई  दिल्ली 15 सितंबर 2025

15 सितंबर 1959 को जब दिल्ली में एक छोटे से स्टूडियो से दूरदर्शन का पहला प्रसारण शुरू हुआ था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह पहल आने वाले दशकों में भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन की धड़कन बन जाएगी। आज 2025 में जब दूरदर्शन अपने 66 साल पूरे कर रहा है, तो यह सिर्फ एक चैनल की सालगिरह नहीं, बल्कि भारत की मीडिया यात्रा का उत्सव है।

शुरुआती दौर में जब काले-सफेद पर्दे पर केवल कुछ घंटे के कार्यक्रम प्रसारित होते थे, तब भी दूरदर्शन हर घर का हिस्सा बनने लगा था। लोग मोहल्लों और छतों पर एक साथ जुटकर टीवी देखते थे—वह दृश्य केवल मनोरंजन का नहीं, बल्कि सामूहिकता और साझेपन का प्रतीक था। यही वह दौर था जब दूरदर्शन ने ‘कृषि दर्शन’ जैसे कार्यक्रमों से किसानों तक ज्ञान पहुंचाया और शिक्षा, स्वास्थ्य तथा संस्कृति को घर-घर तक पहुँचाने का मिशन शुरू किया।

1982 में जब रंगीन प्रसारण आया तो यह मानो भारतीय टेलीविजन का स्वर्णिम युग था। ‘रामायण’, ‘महाभारत’, ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’ जैसे धारावाहिकों ने न सिर्फ दर्शकों को टीवी से जोड़े रखा बल्कि भारतीय संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूत किया। 1983 का क्रिकेट वर्ल्डकप और भारत की जीत का सीधा प्रसारण ने तो दूरदर्शन को हर दिल की धड़कन बना दिया। समाचार बुलेटिन, राष्ट्रीय घटनाओं का कवरेज और गंभीर चर्चा वाले कार्यक्रमों ने इसे विश्वसनीय सूचना स्रोत का दर्जा दिया।

90 के दशक में निजी चैनलों के आगमन के बाद भले ही दूरदर्शन की लोकप्रियता को चुनौती मिली, लेकिन यह सार्वजनिक प्रसारण का सबसे बड़ा स्तंभ बना रहा। DD News, DD Sports, DD Bharati DD Urdu DD Kisan और क्षेत्रीय चैनलों के जरिए आज भी यह करोड़ों दर्शकों तक पहुंच रखता है। डिजिटल युग में भी दूरदर्शन पीछे नहीं रहा—मोबाइल एप्स, यूट्यूब और ऑनलाइन स्ट्रीमिंग से इसने नई पीढ़ी तक अपनी पहचान बनाई है।

आज जब हम 66 साल की इस यात्रा को देखते हैं, तो साफ होता है कि दूरदर्शन केवल एक चैनल नहीं, भारत के लोकतंत्र, विविधता और सांस्कृतिक धरोहर का सजीव आईना है। यह अतीत की यादें संजोए हुए है, वर्तमान की जरूरतों को पूरा कर रहा है और भविष्य की पीढ़ियों के लिए अब भी उम्मीदों का दीप जलाए है।

 

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