कफ सिरप कांड और न्यायपालिका की भूमिका
यह मामला देश के सबसे दर्दनाक और चर्चित घटनाक्रमों में से एक है, जिसने भारत के फार्मास्युटिकल क्षेत्र पर गंभीर सवाल उठाए हैं। यह सिर्फ कुछ दवाओं में खामी का नहीं, बल्कि भारतीय फार्मास्युटिकल सिस्टम, सरकारी जवाबदेही और नियामक संस्थाओं की कार्यशैली की विफलता का मामला है। सुप्रीम कोर्ट की 10 अक्टूबर की सुनवाई अब इस बात का निर्णायक मोड़ है कि इस पूरे प्रकरण की सच्चाई किस एजेंसी के माध्यम से सामने आएगी। याचिकाकर्ताओं ने स्वतंत्र एजेंसी (विशेष रूप से CBI) से जांच की मांग की है ताकि आपराधिक लापरवाही (Criminal Negligence) के पहलू की भी गहराई से जांच हो सके।
पृष्ठभूमि: ‘इलाज’ जो बन गया मौत का कारण
इस कांड की शुरुआत 2022 में हुई, जब सबसे पहले गाम्बिया और फिर उज्बेकिस्तान में भारतीय कंपनियों के कफ सिरप पीने से सैकड़ों बच्चों की मौत की खबरें आईं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी रिपोर्ट में इन दवाओं में डायथिलीन ग्लाइकॉल (Diethylene Glycol) और इथिलीन ग्लाइकॉल (Ethylene Glycol) जैसे जहरीले रसायनों की अत्यधिक मात्रा की पुष्टि की, जो मानव शरीर के लिए घातक होते हैं। इस घटना ने तत्काल यह सवाल उठाया कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) और राज्य औषधि विभागों ने इन दवाओं के निर्माण और निर्यात को अनुमति कैसे दी। इन नियामक विफलताओं के अस्पष्ट जवाबों के कारण ही मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है, जहाँ “जनहित से जुड़ा मामला, जिम्मेदारी तय होनी चाहिए” के सिद्धांत पर जोर दिया जा रहा है।
CBI जांच की संभावना और दवा उद्योग पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि राज्य स्तरीय जांच एजेंसियाँ इस राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के मामले में राजनीतिक दबाव के कारण निष्पक्ष जांच करने में सक्षम नहीं हैं। उनका कहना है कि कुछ राज्यों में एफआईआर दर्ज होने के बावजूद किसी बड़े अधिकारी या कंपनी मालिक की अब तक गिरफ्तारी नहीं हुई है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक है, लेकिन इस कांड ने उजागर किया है कि कई कंपनियाँ सस्ते रसायन इस्तेमाल कर रही हैं और गुणवत्ता मानकों की धज्जियाँ उड़ा रही हैं, जिसे विशेषज्ञों ने “नैतिक अपराध” करार दिया है।
कोर्ट ने केंद्र सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय से अब तक उठाए गए कदमों, कार्रवाई और दवाओं को बाजार से वापस लेने की रिपोर्ट मांगी है। कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि कोर्ट को लगता है कि नियामक एजेंसियाँ मिलीभगत या लापरवाही में थीं, या मौजूदा जांच में पारदर्शिता की कमी है, तो CBI या विशेष SIT (Special Investigation Team) के गठन का आदेश दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का रुख रहा है कि यह सिर्फ नियामक नहीं, बल्कि “जनता की ज़िंदगी और बच्चों की सुरक्षा” से जुड़ा मसला है, जहाँ जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
वैश्विक साख और भविष्य का फैसला
WHO की रिपोर्टों के बाद कई देशों ने भारतीय दवाओं पर निगरानी बढ़ा दी है, जिससे भारत की दवा निर्यात प्रतिष्ठा पर गहरा दाग लगा है। देश की साख को बचाने के लिए यह आवश्यक है कि यह जांच पूरी पारदर्शिता से हो और दोषियों को कठोर सजा मिले।
10 अक्टूबर की सुनवाई अब केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक जवाबदेही की सुनवाई होगी। अगर सुप्रीम कोर्ट CBI जांच का आदेश देता है, तो यह दवा उद्योग की गड़बड़ियों के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई साबित हो सकती है। वहीं, अगर जांच राज्य स्तर पर जारी रखने का फैसला होता है, तो सिस्टम की मिलीभगत पर सवाल उठेंगे। अब फैसला सुप्रीम कोर्ट का है कि क्या बच्चों की मौतों का सच उजागर होगा, या फिर यह मामला भी फाइलों की धूल में दब जाएगा।