नई दिल्ली 15 सितंबर 2025
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए कड़े टैरिफ ने आंध्र प्रदेश के झींगा निर्यात उद्योग को गहरा नुकसान पहुंचाया है। राज्य सरकार के मुताबिक, अब तक लगभग ₹25,000 करोड़ का नुकसान हो चुका है और करीब आधे निर्यात ऑर्डर रद्द कर दिए गए हैं। सबसे बड़ा बोझ 2,000 निर्यात कंटेनरों पर पड़ा है, जिन पर ₹600 करोड़ से अधिक का अतिरिक्त टैक्स लग चुका है। टैरिफ दर अब 59.72% तक पहुंच गई है, जिसमें 25% मूल टैक्स, 25% अतिरिक्त टैरिफ, 5.76% काउंटर वैलिंग ड्यूटी और 3.96% एंटी डंपिंग ड्यूटी शामिल है। इस वजह से लाखों झींगा उत्पादकों और निर्यातकों की कमाई प्रभावित हुई है, जिससे पूरे राज्य की अर्थव्यवस्था हिल गई है।
चंद्रबाबू नायडू ने केंद्र सरकार से की मदद की अपील
मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने इस संकट को गंभीर बताते हुए केंद्र से तुरंत मदद की मांग की है। उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और मत्स्य पालन मंत्री राजीव रंजन सिंह को पत्र लिखकर जीएसटी राहत, आर्थिक पैकेज, टैक्स छूट और ऋण पर राहत देने की मांग की है। नायडू का कहना है कि आंध्र प्रदेश भारत के झींगा निर्यात का लगभग 80% हिस्सा है और करीब 2.5 लाख परिवार व 30 लाख से अधिक लोग इस पर निर्भर हैं। ऐसे में अगर तुरंत कदम नहीं उठाए गए तो यह उद्योग पूरी तरह ध्वस्त हो सकता है।
राज्य सरकार के राहत कदम और विकल्प
आंध्र प्रदेश सरकार ने भी झींगा किसानों को राहत देने की दिशा में कदम उठाए हैं। झींगा चारे की कीमत प्रति किलो ₹9 तक घटाई गई है और किसानों को सब्सिडी पर पावर ट्रांसफॉर्मर उपलब्ध कराने की योजना बनाई जा रही है। साथ ही घरेलू स्तर पर समुद्री उत्पादों की खपत बढ़ाने, आधुनिक भंडारण सुविधाएं विकसित करने और यूरोपीय संघ, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब और रूस जैसे नए बाजारों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर जोर देने की पहल की जा रही है, ताकि अमेरिकी बाजार पर निर्भरता घटाई जा सके।
संकट का असर और भविष्य की चुनौती
ट्रंप के टैरिफ ने न सिर्फ आंध्र प्रदेश बल्कि पूरे भारत के झींगा निर्यात उद्योग की रीढ़ तोड़ दी है। लाखों परिवारों की रोज़ी-रोटी संकट में है और राज्य का आर्थिक संतुलन बिगड़ने लगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार और राज्य मिलकर ठोस कदम नहीं उठाते तो आने वाले समय में भारत की वैश्विक झींगा निर्यात क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो सकती है और देश की अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पकड़ कमज़ोर हो जाएगी।