Home » National » अमित शाह ने कहा, लोग हमारे 5 किलो राशन से ही पल रहे हैं : अहंकारी सत्ता भूल गई खुद पब्लिक मनी पर पल रही है

अमित शाह ने कहा, लोग हमारे 5 किलो राशन से ही पल रहे हैं : अहंकारी सत्ता भूल गई खुद पब्लिक मनी पर पल रही है

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

नई दिल्ली 3 नवंबर 2025

5 किलो राशन देकर एहसान जताने की राजनीति :

गृह मंत्री अमित शाह का हालिया बयान, जिसमें उन्होंने सोशल मीडिया पर सक्रिय कार्यकर्ताओं पर यह तंज कसा कि “वो हमारे पाँच किलो राशन से ही पल रहे हैं”, लोकतांत्रिक राजनीति में गिरते स्तर का जीता-जागता उदाहरण है। सरकार द्वारा जनता तक पहुंचाई गई हर सहायता वास्तव में जनता के ही पैसों से चलती है — यह समझना किसी भी जनप्रतिनिधि का पहला कर्तव्य है। मगर सत्ता के नशे में जब नेता खुद को ‘दाता’ और जनता को ‘भिखारी’ समझने लगें, तब लोकतंत्र की बुनियाद को गंभीर खतरा पैदा हो जाता है। सवाल यह है कि आखिर इस बयान की हिम्मत किसी मंत्री को कैसे हुई? क्या यह अहंकार इस वजह से है कि चुनाव नज़दीक हैं और हिंदुस्तान की असलियत अब धीरे-धीरे भाजपा की नज़रों में उतर रही है? जब वादा किए रोजगार नहीं मिलते, महंगाई जनता की उम्मीदों की कमर तोड़ती है, किसानों और युवाओं की पीड़ा सत्ता के कानों तक नहीं पहुंचती — तब शासन अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए फ्री राशन जैसी योजनाओं को राजनीतिक ढाल बना लेता है। और फिर उसी ढाल को हथियार बनाकर गरीब जनता की गरिमा पर वार करता है।

गरीबी किसी का विकल्प नहीं होती, न ही उसे किसी की दया पर जीवित रहने का प्रमाणपत्र चाहिए। देश के करोड़ों नागरिक हर दिन खून-पसीना बहाकर टैक्स चुकाते हैं — चाहे वह सीधे आयकर के रूप में हो या हर खरीद पर बढ़ते हुए GST के रूप में। सत्ता के गलियारों में जलता एक-एक बल्ब, मंत्री के काफिले की एक-एक गाड़ी, सरकारी प्रचार का हर सेकंड — सभी जनता की कमाई पर टिका है। ऐसे में गृह मंत्री का यह कथन कि लोग उनकी दया पर पल रहे हैं, न सिर्फ तथ्यात्मक झूठ है बल्कि सामाजिक अपमान का भी चरम रूप है।

वास्तविकता यह है कि पूरी बीजेपी और उसकी विचारधारा की सबसे बड़ी संरक्षक RSS दशकों से जनता के संसाधनों और सरकारी तंत्र के प्रत्यक्ष और परोक्ष खर्च पर चल रही हैं। जब सत्ता में होते हैं तो खजाना अपना समझ लेते हैं, और जब सत्ता से बाहर होते हैं तो राष्ट्रभक्ति का प्रमाणपत्र बांटते फिरते हैं। क्या सत्ता पक्ष के नेता और उनके समर्थक उस सब्सिडी, सुरक्षा, वेतन और सुविधा पर नहीं पलते जिसे आम भारतीय जनता ही वहन करती है?

आज भाजपा नेतृत्व की भाषा यह संकेत दे रही है कि लोकतंत्र को राजतंत्र में बदलने का मन पहले से तैयार है — जहाँ सत्ता खुद को मालिक मानती है और जनता को महज प्रजा। यह बिल्कुल वही सोच है जिसमें सरकार चुनावी वादों को जनता पर “एहसान” मानती है और नागरिक अधिकारों को अपना “उपहार”। यह मानसिकता मात्र असंवेदनशील नहीं — यह संविधान-विरोधी और लोकतंत्र के लिए घातक है।

विपक्षी दलों को चाहिए कि वे संसद से लेकर सड़क तक इस बयान की निंदा करें, लेकिन असली जवाब जनता देगी — अपने वोट से, अपनी आवाज़ से, और अपने आत्मसम्मान से। सोशल मीडिया पर सक्रिय युवा और राजनीतिक कार्यकर्ता किसी के “राशन पर पलने वाले” नहीं — वे लोकतंत्र के प्रहरी हैं, जो सत्ता के अभिमान को जवाब देते रहेंगे।अमित शाह जी को याद रखना चाहिए — मुफ़्त का राशन नहीं, जनता का अधिकार है। और जनता कभी किसी की दया पर नहीं, अपने हक़ पर पलती है… अपनी शान से।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *