नई दिल्ली 21 सितंबर 2025
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए जीएसटी काउंसिल द्वारा किए गए संशोधनों का पूरा श्रेय खुद को लेने की कोशिश की। लेकिन सच्चाई यह है कि यह वही जीएसटी है जिसे कांग्रेस ने शुरुआत से ही Growth Suppressing Tax कहा था—एक ऐसा टैक्स जिसने छोटे व्यवसायियों, किसानों और आम जनता की कमर तोड़ दी।
कांग्रेस का हमला: 8 साल का बोझ, मामूली राहत
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने तीखा हमला बोलते हुए कहा कि मोदी सरकार ने 2017 में जनता पर जबरन “गब्बर सिंह टैक्स” थोप दिया। 9 अलग-अलग स्लैब, दंडात्मक दरें, और महंगे अनुपालन बोझ ने एमएसएमई, जो देश की रोजगार रीढ़ हैं, को बर्बाद कर दिया। आठ सालों में सरकार ने जनता की जेब से ₹55 लाख करोड़ से ज़्यादा निचोड़ लिए। और अब जब जनता बुरी तरह थक चुकी है, तो प्रधानमंत्री ₹2.5 लाख करोड़ की बचत का झुनझुना हिलाकर इसे “मास्टरस्ट्रोक” बता रहे हैं।
जनता के सवाल: क्या मिलेगा रोजगार और राहत?
कांग्रेस ने याद दिलाया कि उनकी न्याय पत्र में पहले ही जीएसटी 2.0 का वादा किया गया था, लेकिन मोदी सरकार ने जानबूझकर आठ साल तक सुधार लटकाए रखे। अभी भी एमएसएमई की समस्याएँ जस की तस हैं—टेक्सटाइल, पर्यटन, निर्यात, हस्तशिल्प और कृषि जैसे सेक्टर बुरी तरह पीड़ित हैं। सहकारी संघवाद की आड़ में राज्यों से वादे किए गए मुआवज़े को पाँच साल और बढ़ाने की माँग तक को ठुकरा दिया गया है।
चीन का घाटा, भारत का पलायन
जयराम रमेश ने कड़ा सवाल उठाया कि मोदी सरकार निजी निवेश और जीडीपी वृद्धि की बात करती है, लेकिन पिछले पाँच सालों में चीन के साथ व्यापार घाटा दोगुना होकर 100 अरब डॉलर पार कर गया। भारतीय उद्योगपति भय और एकाधिकार की वजह से देश छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। यही है मोदी सरकार का असली “Ease of Doing Business”!
कांग्रेस का तंज: “नौ सौ चूहे खाकर, बिल्ली हज को चली”
कांग्रेस ने व्यंग्य करते हुए कहा कि मोदी जी अब “बचत उत्सव” का ढोल पीट रहे हैं। लेकिन देश की जनता कभी नहीं भूलेगी कि उनकी सरकार ने दाल-चावल, अनाज, पेंसिल, किताबें, इलाज और यहाँ तक कि किसानों के ट्रैक्टर तक से जीएसटी वसूला। यह मामूली सुधार नहीं, बल्कि जनता को गहरे घाव देने के बाद एक छोटा-सा बैंड-ऐड लगाने जैसा है।
जनता की माँग: माफ़ी, जश्न नहीं!
कांग्रेस ने दो टूक कहा कि मोदी सरकार को आत्मश्लाघा छोड़कर सबसे पहले जनता से माफ़ी माँगनी चाहिए। 8 साल से जिस टैक्स ने लोगों की रोटी छीनी, रोज़गार घटाया और व्यापार चौपट किया, उस पर अब ‘उत्सव’ मनाना जनता के साथ खुला मज़ाक है।