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तेल अवीव में ट्रम्प का जलवा : हज़ारों इस्राइलियों ने शांति समझौते पर मनाया जश्न, नेतन्याहू पर गुस्से की बरसात

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तेल अवीव 12 अक्टूबर 2025

तेल अवीव की रात — जब भीड़ ने कहा “थैंक यू ट्रम्प!”

तेल अवीव के Hostages Square में बीती रात इतिहास लिखा गया — एक ऐसी रात जब युद्ध, आंसू और अंतहीन इंतज़ार से थकी हुई इस्राइली जनता ने आखिरकार राहत की सांस ली। हज़ारों की संख्या में जुटे इस्राइलियों के हाथों में राष्ट्रीय झंडे थे, जो हवा में लहर रहे थे, और पूरा मैदान एक ही आवाज़ से गूंज रहा था, “Thank You Trump!” यह अभूतपूर्व दृश्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता से हुए गाज़ा युद्धविराम और बंधक रिहाई समझौते के बाद बना। मंच पर उत्साह का माहौल था और मैदान में एक प्रबल जुनून, जो एक नई उम्मीद की कहानी कह रहा था। लोगों के हाथों में थमे पोस्टर — “Peace at Last” और “Trump the Gamechanger” — यह स्पष्ट कर रहे थे कि यह नज़ारा किसी आम राजनीतिक रैली से कहीं ज़्यादा, एक गहरा भावनात्मक विस्फोट था। तेल अवीव की सड़कों पर उमड़ा यह विशाल जनसैलाब इस्राइल की पिछले कई महीनों से घायल आत्मा में अचानक उम्मीद का संचार करता दिखा।

ट्रम्प बने “शांति के योद्धा”, भीड़ ने किया सलाम

इस विशाल जनसभा के मंच पर जैसे ही अमेरिकी विशेष दूत Steve Witkoff, इवांका ट्रम्प और जेरेड कुश्नर ने कदम रखा, मानो पूरे Hostages Square में बिजली सी दौड़ गई। सैकड़ों कैमरों की फ्लैश लाइट्स की चकाचौंध के बीच भीड़ ने ट्रम्प परिवार का ज़ोरदार स्वागत किया। इवांका ट्रम्प की आवाज़ में अपने पिता के प्रति गहरा गर्व साफ झलक रहा था, जब उन्होंने घोषणा की, “मेरे पिता ने दुनिया को यह दिखाया कि शांति हासिल करना ताकत का प्रदर्शन करने से भी बड़ी चीज़ है।” ट्रम्प का नाम लगातार नारों में गूंजता रहा — लोग उन्हें “सच्चा मित्र”, “गज़ा का शांतिदूत”, और यहाँ तक कि “इस्राइल का प्रहरी” कहकर पुकार रहे थे। एक ओजस्वी वक्ता ने भीड़ की भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि, “ट्रम्प ने सिर्फ बंधकों को नहीं छुड़ाया, बल्कि उन्होंने हम इस्राइलियों को उम्मीद वापस दी है।” तालियों की गड़गड़ाहट और नारों की लहरों ने यह संदेश साफ कर दिया कि इस्राइल की जनता अब भी डोनाल्ड ट्रम्प को एक संकटमोचक और नायक के रूप में देखती है।

 नेतन्याहू पर बरसे नारे — जनता ने दी चेतावनी

जहाँ ट्रम्प के परिवार का गर्मजोशी से स्वागत हुआ, वहीं भीड़ का मिजाज़ तुरंत बदल गया। मंच से प्रधानमंत्री बेनजामिन नेतन्याहू का नाम लेते ही, पूरा मैदान अचानक तीव्र “बू…बू…” के नारों से भर गया। लोगों की यह ज़ोरदार हूटिंग केवल राजनीतिक असहमति नहीं थी, बल्कि यह महीनों से जमा हुए गुस्से और मोहभंग का एक प्रबल प्रतीक थी। पिछले महीनों में नेतन्याहू की युद्धनीति, जिसमें गाज़ा में भीषण सैन्य कार्रवाई शामिल थी, और विशेषकर बंधकों की रिहाई में हुई अत्यधिक देरी को लेकर जनता में भारी असंतोष था। रैली में कई पोस्टरों पर तीखी टिप्पणियाँ लिखी थीं, जैसे — “हमारे लोग मर रहे हैं, आप भाषण दे रहे हैं” और “हमें राजनीति नहीं, इंसानियत चाहिए”। यह दृश्य साफ संकेत दे रहा था कि इस्राइल की जनता अब अपने नेतृत्व से संतुष्ट नहीं है और देश नेतृत्व परिवर्तन की मांग की एक स्पष्ट दहलीज पर खड़ा है।

बंधकों की रिहाई की घड़ी — आंसू और उम्मीद साथ-साथ

इस भावुक रैली में बंधकों के परिवारजन भी बड़ी संख्या में मौजूद थे, जिनकी आंखों में इस समझौते के कारण उम्मीद की नमी थी। इस समझौते के तहत जल्द ही 48 इस्राइली बंधकों की रिहाई संभव है। इस्राइल भी सद्भावना के तौर पर लगभग 250 फ़िलिस्तीनी कैदियों को रिहा करने वाला है। कई माता-पिता अपने प्रियजनों की तस्वीरें और पोस्टर लिए खड़े थे, जिन पर “My son is still there” और “Bring them home” जैसे मार्मिक संदेश लिखे थे। जब यह खबर आई कि बंधकों के पहले समूह को सोमवार तक रिहा किया जा सकता है, तो पूरे मैदान में खुशी की लहर दौड़ गई। यह केवल एक राजनीतिक या सामाजिक रैली नहीं थी, बल्कि यह माताओं की सिसकियों और एक पूरे राष्ट्र की आत्मा की पुकार थी, जो अब अपने बच्चों को वापस देखना चाहती है।

 नया मोड़, पुरानी शंकाएँ

हालाँकि इस युद्धविराम और बंधक रिहाई समझौते ने फिलहाल इस्राइल और गाज़ा दोनों में राहत की भावना पैदा की है, लेकिन कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ इस ‘शांति’ के स्थायित्व पर महत्वपूर्ण सवाल उठा रहे हैं। मुख्य चिंताएँ हैं — क्या यह युद्धविराम लंबा टिक पाएगा? क्या दोनों पक्ष समझौते की सभी शर्तों का पूरी तरह से पालन करेंगे? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या यह केवल अस्थायी राहत है या क्षेत्र में स्थायी शांति की शुरुआत? इस्राइली विश्लेषक एरन लापिड का मानना है कि, “यह समझौता निस्संदेह एक राजनीतिक शतरंज की चाल है, जिसमें ट्रम्प और नेतन्याहू दोनों के अपने हित हैं, लेकिन इसके केंद्र में जो लोग हैं — वे मोहरे नहीं, बल्कि इंसान हैं।” तेल अवीव की यह रैली अब सिर्फ डोनाल्ड ट्रम्प या नेतन्याहू के राजनीतिक भविष्य की कहानी नहीं रही, यह उस आम इस्राइली की ज़ोरदार पुकार है जो अब अंतहीन युद्ध नहीं, बल्कि सामान्य और सुरक्षित जीवन चाहता है।

 शांति की लौ फिर जली, पर हवा अब भी तेज़ है

तेल अवीव की इस ऐतिहासिक रात ने यह स्पष्ट कर दिया कि युद्ध चाहे जितना भी क्रूर और लंबा क्यों न हो, शांति की पुकार और सामान्य जीवन की इच्छा हमेशा ज़िंदा रहती है। इस्राइली जनता ने एक तरफ ट्रम्प को एक संकटमोचक नायक की तरह सराहा, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नेतन्याहू को उनके नेतृत्व पर कड़े सवालों के घेरे में ला दिया। इस पूरे घटनाक्रम ने दुनिया को यह स्पष्ट संदेश दिया कि इस्राइल की जनता अब खंडहरों में भी उम्मीद ढूंढने के लिए तैयार है। यह रैली केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि वह भावनात्मक विस्फोट थी जिसने एक पूरे देश के दिल की धड़कनें पूरी दुनिया को सुनाईं, जो अब स्थिरता और सुरक्षा की तलाश में है।

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