परंपरा से परिवर्तन तक: अब मुस्लिम समाज भी स्टार्टअप इकोनॉमी का मजबूत स्तंभ
भारत में मुस्लिम समाज को लम्बे समय तक एक मेहनतकश और नौकरीपेशा वर्ग के रूप में देखा जाता रहा है — चाहे वो दस्तकारी, टेलरिंग, ज़ेवर निर्माण, या पारंपरिक खाद्य व्यवसाय रहे हों। लेकिन अब 21वीं सदी के भारत में यह तस्वीर पूरी तरह बदल रही है। मुस्लिम युवा अब पारंपरिक काम-धंधे से हटकर स्टार्टअप कल्चर, टेक्नोलॉजी, हेल्थटेक, ग्रीन एनर्जी और डिजिटल फिनटेक जैसे क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं। यह सिर्फ रोजगार तलाशने वाली मानसिकता नहीं, रोजगार उत्पन्न करने वाली सोच है। छोटे शहरों से लेकर मेट्रो शहरों तक अब मुस्लिम उद्यमी एक “इनोवेटिव बिज़नेस इकोसिस्टम” का हिस्सा बन चुके हैं — जो आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक साहसिक कदम है।
प्रेरक चेहरों की नई फेहरिस्त: जब मुस्लिम उद्यमियों ने तोड़ा रूढ़ियों का घेरा
मुंबई के अहमद सुल्तान, IIT-B से पढ़े हुए युवा ने HalalKart.com नाम से एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म शुरू किया जो हेल्थ-फोकस्ड और शरिया-प्रामाणिक उत्पादों को प्रमोट करता है। सिर्फ 3 साल में ₹22 करोड़ का टर्नओवर, 150 से अधिक डिस्ट्रीब्यूटर, और अब खाड़ी देशों में विस्तार की योजना।
हैदराबाद की डॉ. तस्नीम इलाही ने NanoHealers Technologies नाम की बायोमेडिकल हेल्थ कंपनी बनाई, जो कम लागत पर इलाज योग्य मेडिकल डिवाइसेज़ बनाती है। Niti Aayog के हेल्थ इनोवेशन ग्रांट में उन्हें ₹1.2 करोड़ की फंडिंग मिली।
सूरत की नूर फातिमा, जिन्होंने Hijabista Clothing ब्रांड खड़ा किया। आज उनके पास 90 प्रतिशत महिला वर्कफोर्स है, और उनका ऑनलाइन फैशन ब्रांड 12 देशों में एक्सपोर्ट करता है।
पटना के मोहम्मद उमैर, जिन्होंने RizqHub Foundation नाम से एक माइक्रो-फाइनेंस आधारित सोशल इंटरप्राइज खड़ा किया, जो स्लम व पिछड़े इलाकों में 0% ब्याज पर बिज़नेस लोन और बिजनेस ट्रेनिंग देता है। अब तक 2,400 से अधिक सूक्ष्म व्यवसायों को खड़ा कर चुका है।
इन सबमें समानता एक ही है — बिज़नेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ना, धर्म के दायरे से निकलकर मानवता के लिए काम करना, और उद्यमिता को सेवा का ज़रिया बनाना।
हिजाब में हिम्मत: मुस्लिम महिला उद्यमी अब आत्मनिर्भरता की मिसाल
आज मुस्लिम महिलाएं केवल रोज़गार नहीं ढूंढ़ रहीं, बल्कि खुद मालिक बन रही हैं। अलीगढ़ की शगुफ्ता अहमद ने Begum’s Bakery के नाम से एक होम-किचन मॉडल शुरू किया था जो अब 8 शहरों में क्लाउड किचन नेटवर्क में बदल गया है। उन्होंने 300 से अधिक महिलाओं को रोजगार दिया है और सिंगल मदर्स के लिए खास टिफिन वेंडर प्रोग्राम शुरू किया है।
दिल्ली की रुबिना ख़ातून, जिन्होंने ‘Sadaf Skills’ नाम से डिजिटल कोर्सेज़ की एक स्किलिंग कंपनी शुरू की, जो मुस्लिम लड़कियों को ग्राफिक डिज़ाइन, वर्चुअल असिस्टेंस और डिजिटल मार्केटिंग में प्रशिक्षित करती है। सिर्फ 18 महीने में 1200 लड़कियों को ऑनलाइन ट्रेनिंग मिल चुकी है, जिनमें से 70% अब कमाई कर रही हैं।
डाटा जो दिखाता है मुस्लिम उद्यमिता की नई ऊंचाइयों को
- Startup India के 2025 के आंकड़ों के अनुसार, 8.4% मुस्लिम नाम स्टार्टअप फाउंडर्स की कुल रजिस्ट्री में
- NASSCOM 10000 Startups में 2024-25 बैच में 21 मुस्लिम उद्यमी शामिल हुए
- FICCI की MSME रिपोर्ट 2025 के अनुसार, मुस्लिम-स्वामित्व वाले उद्यमों में महिला नेतृत्व वाले उपक्रमों की हिस्सेदारी 22% तक पहुँच गई है
- ई-कॉमर्स, फूडटेक, हेल्थकेयर, एग्रीटेक और ग्रीन एनर्जी स्टार्टअप में 60% मुस्लिम फाउंडर्स टियर-2 और टियर-3 शहरों से हैं, यानी समाज का जमीनी चेहरा अब बिजनेस का लीडर बन चुका है
बिजनेस में भरोसा और नैतिकता: इस्लामी सिद्धांतों से प्रेरित, आधुनिक विश्व दृष्टिकोण के साथ
मुस्लिम स्टार्टअप्स में Ethical Business Model का नया चलन तेजी से उभरा है। फाउंडर्स Interest-Free Microfinance, Zakat-Backed CSR, और शरीयत-प्रामाणिक मॉडल्स पर काम कर रहे हैं। यह दिखाता है कि इस्लामिक प्रिंसिपल्स और कॉर्पोरेट गवर्नेंस साथ-साथ चल सकते हैं।
मुंबई की कुबरा राहीम की ZakatX एक फिनटेक स्टार्टअप है, जो इंसानी जरूरतों को टेक्नोलॉजी के माध्यम से दान और मदद से जोड़ता है। इसका इस्तेमाल अब तक 15,000 जरूरतमंद परिवारों तक सीधी सहायता पहुँचाने में हुआ है।
नया नजरिया: जहाँ कारोबार सिर्फ मुनाफा नहीं, समाज सेवा भी है
नई मुस्लिम पीढ़ी अपने बिजनेस को सिर्फ कमाई का ज़रिया नहीं, बल्कि समाज के उत्थान का माध्यम मानती है। उनके स्टार्टअप में Impact Rule अपनाया जा रहा है, जैसे —
- प्रॉफिट का 5% शिक्षा में
- प्रोडक्ट्स का 10% जरूरतमंदों को मुफ्त
- हर स्टाफ के लिए स्वास्थ्य बीमा अनिवार्य
यह ‘सेंस विद प्रॉफिट’ की सोच भारत के आर्थिक मॉडल को नयी संवेदनशीलता दे रही है।
अब मुस्लिम उद्यमी भारत की आर्थिक रीढ़ हैं, सिर झुकाकर नहीं, सिर उठाकर योगदान दे रहे हैं
मुस्लिम समाज के युवा अब बाज़ार के पिछलग्गू नहीं, बाज़ार के आकार देने वाले बन चुके हैं। वे यह साबित कर चुके हैं कि तकनीक, नीति, नवाचार और नैतिकता – चारों को साथ लेकर चलने वाला बिजनेस सिर्फ लाभ नहीं, बदलाव भी ला सकता है।
यह सिर्फ मुस्लिम समाज का नहीं, भारत की इकोनॉमी और समावेशिता का भी उज्ज्वल भविष्य है। अब नौकरी देने वाला नाम बन गया है – मोहम्मद, फातिमा, उमैर, शगुफ्ता, अहमद और तमाम वो चेहरे जो कभी गुमनाम थे, अब आर्थिक बदलाव की पहचान बन चुके हैं।