केसर: महज़ एक मसाला नहीं, सभ्यता की सुगंध
जम्मू-कश्मीर का केसर — जिसे “ज़ाफ़रान” भी कहा जाता है — कोई साधारण मसाला नहीं, बल्कि हिमालय की गोद से निकली एक ऐसी सुगंधित विरासत है, जो भारतीय संस्कृति, आयुर्वेद, सूफी परंपरा, और कश्मीरी शान का प्रतीक बन चुकी है। इसकी खेती मुख्य रूप से पुलवामा ज़िले के पंपोर क्षेत्र में होती है, जिसे दुनिया भर में “केसर का स्वर्ण-क्षेत्र” माना जाता है। कश्मीर के केसर की खासियत उसकी गाढ़ी रंगत (crocetin content), तीव्र सुगंध (safranal), और उच्च गुणवत्ता वाली स्टिग्मा में होती है — जो इसे ईरान और स्पेन जैसे देशों से अलग और श्रेष्ठ बनाती है। इसकी खेती एक ऐसा संयमपूर्ण धार्मिक कर्म है, जिसमें प्रकृति, किसान और इतिहास — तीनों मिलकर हर धागे को अमूल्य बनाते हैं।
खेती की प्रक्रिया: मिट्टी, मौसम और मानवीय मेहनत
केसर की खेती कोई सामान्य कृषि नहीं, यह एक सटीक मौसम, विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, और अत्यंत परिश्रमी मानव श्रम का अद्वितीय संयोग है। इसकी बुआई अगस्त-सितंबर में होती है और फूल आमतौर पर अक्टूबर के अंत या नवंबर की शुरुआत में खिलते हैं। एक-एक फूल को तड़के सुबह हाथों से तोड़ा जाता है, और उसी दिन उसके लाल रेशों (stigmas) को अलग कर सुखाया जाता है — यही केसर होता है। एक ग्राम शुद्ध केसर पाने के लिए लगभग 150-200 फूलों की आवश्यकता होती है, यानी यह दुनिया का सबसे महंगा मसाला केवल अपनी सुगंध और स्वाद के कारण नहीं, बल्कि उसमें छिपी मेहनत और नाज़ुकता के कारण है।
कश्मीर की जैविक रूप से समृद्ध ज़मीन, बिना केमिकल की खेती, और प्राकृतिक सिंचाई प्रणाली इसे वैश्विक बाज़ार में प्राकृतिक और शुद्ध केसर के रूप में विशिष्ट बनाती है। आधुनिक तकनीक के प्रवेश के बावजूद, इसकी तुड़ाई, प्रोसेसिंग और पैकिंग आज भी काफी हद तक हस्तनिर्मित प्रक्रिया से होती है, जिससे इसकी गुणवत्ता बरकरार रहती है।
कश्मीरी केसर की वैश्विक स्थिति और GI टैग का महत्त्व
कश्मीर के केसर को 2020 में भौगोलिक संकेतक (GI Tag) प्राप्त हुआ, जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक अद्वितीय पहचान और नकली केसर से सुरक्षा मिली। GI टैग ने यह सुनिश्चित किया कि केवल पंपोर, त्राल, कुलगाम और बड़गाम के कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में उगाया गया केसर ही “Kashmir Saffron” नाम से बाज़ार में बिक सके। इसके बाद भारत सरकार ने “India International Kashmir Saffron Trading Centre (IIKSTC)” की स्थापना की, जहाँ केसर की प्रमाणिकता की जांच, ग्रेडिंग और निर्यात की प्रक्रिया होती है।
2024-25 में भारत से केसर का निर्यात ₹400 करोड़ के पार चला गया, जिसमें 80% योगदान कश्मीर के शुद्ध GI-tagged केसर का रहा। संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर, अमेरिका, जर्मनी, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में कश्मीरी केसर की मांग Luxury Health Ingredient के रूप में तेज़ी से बढ़ी है — विशेषकर फार्मास्यूटिकल, कॉस्मेटिक्स और हाई-एंड कन्फेक्शनरी उद्योगों में।
बाज़ार और चुनौतियाँ: नकली केसर और उत्पादन संकट
हालांकि कश्मीरी केसर की गुणवत्ता विश्वस्तरीय है, लेकिन साल दर साल घटता उत्पादन, मौसम की मार, और बाज़ार में नकली उत्पादों की बाढ़ ने इस उद्योग के सामने गंभीर संकट खड़े किए हैं। कभी कश्मीर में केसर का उत्पादन 20 टन प्रति वर्ष हुआ करता था, जो 2010 तक घटकर 5-6 टन रह गया। हालांकि 2022 के बाद से, स्प्रिंकलर सिंचाई योजनाएं, मिशन केसर स्कीम, और सरकारी जागरूकता कार्यक्रमों ने इसे वापस पटरी पर लाने का काम शुरू किया।
नकली या ईरानी केसर को कश्मीर के नाम पर बेचना एक बड़ा धोखा रहा है, जिससे कृषकों को उचित मूल्य नहीं मिलता और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कश्मीर की छवि को भी नुकसान होता है। अब नई Blockchain based tracing system और QR code से लैस पैकेजिंग से ग्राहकों को असली कश्मीरी केसर की पहचान कर पाना संभव हो गया है।
नवाचार, निर्यात और भविष्य की दिशा
2025 में कश्मीर सरकार और कृषि मंत्रालय ने मिलकर “Saffron Export Hubs” बनाए हैं, जहाँ से डायरेक्ट-टू-कंज़्यूमर (D2C) निर्यात को बढ़ावा दिया जा रहा है। IIKSTC में अब फ्रेंच, जर्मन और खाड़ी देशों के खरीदारों के लिए लाइव ट्रेडिंग सुविधा शुरू हो गई है। इसके अलावा, Saffron Tourism Circuit भी विकसित हो रहा है — जहाँ अक्टूबर-नवंबर में दुनिया भर से पर्यटक केसर की तुड़ाई देखने आते हैं और ‘Farm-to-Fork’ अनुभव प्राप्त करते हैं।
फूड-ग्रेड, फार्मा-ग्रेड और कॉस्मेटिक-ग्रेड कश्मीरी केसर अब 3 श्रेणियों में अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में उतर चुका है। भारत-ब्रांडेड “Kashmir Zafran” को WTO मंचों पर भारत की सॉफ्ट पावर के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है।
सुगंध जो कश्मीर की आत्मा बन चुकी है
कश्मीरी केसर वह सुगंध है, जो केवल नाक नहीं, आत्मा को छूती है। यह शांति, परिश्रम, प्रकृति और परंपरा की बारीक बुनावट है। हर लाल धागे में छिपा होता है एक किसान का सपना, एक घाटी की मिट्टी की तपिश, और एक सभ्यता की ऊँचाई। आज जब भारत “Bharat First” और “Vocal for Local” की राह पर है, तब कश्मीरी केसर सिर्फ़ एक मसाला नहीं, बल्कि भारत की पहचान, कश्मीर की आत्मा और वैश्विक बाज़ार में भारत की इज्ज़त बन चुका है।