हैदराबाद की तंग गलियों से निकलकर, अब मुस्लिम युवा भारत की इनोवेशन लैब्स और इंटरनेशनल स्टार्टअप मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। ये युवा अब महज़ नौकरी की कतार में खड़े नहीं, बल्कि खुद रोज़गार सृजनकर्ता बनकर उभर रहे हैं। टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य, शिक्षा, फैशन और ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में इनकी सोच, नेतृत्व और सफलता ने यह साफ कर दिया है कि मुस्लिम समाज में उद्यमिता की एक नई लहर उठ चुकी है, जो आत्मनिर्भर भारत के सपने को जमीनी हकीकत में बदल रही है।
हैदराबाद के अफनान कुरैशी का नाम अब ‘एजुकेशन स्टार्टअप वर्ल्ड’ में तेजी से फैल रहा है। उन्होंने 2022 में मात्र 5 पुराने लैपटॉप से ‘नूर टेक’ की शुरुआत की। यह स्टार्टअप उन मदरसों और मुस्लिम बहुल इलाकों में काम करता है जहां बच्चे केवल उर्दू या अरबी पढ़ते थे। अफनान ने वहां डिजिटल लर्निंग के माध्यम से गणित, विज्ञान और इंग्लिश जैसे विषयों की शुरुआत की। दो वर्षों में उनका ऐप देश के 70 से अधिक मदरसों में लागू हो चुका है और करीब 12,000 से ज्यादा बच्चे इससे लाभान्वित हो चुके हैं। अफनान कहते हैं, “मदरसे का बच्चा अगर कुरान पढ़ सकता है, तो कोडिंग भी सीख सकता है। हमें उसे आत्मबल देना होगा, अवसर देना होगा।” उनका सपना है कि हर मुस्लिम मोहल्ले में एक ‘डिजिटल दीनी स्कूल’ खुले।
मुंबई की रूमी खान का सफर भी उतना ही प्रेरक है। एक वर्किंग क्लास परिवार से आने वाली रूमी ने देखा कि मुस्लिम महिलाएं फैशन में भी हिजाब के साथ आत्मगौरव चाहती हैं। उन्होंने ‘Hijab & Hustle’ नामक एक ई-कॉमर्स ब्रांड लॉन्च किया, जो स्टाइलिश, आरामदायक और मजहबी मर्यादा में रहने वाले कपड़े बनाता है। आज उनका कारोबार ₹1.2 करोड़ की सालाना टर्नओवर पार कर चुका है और वे 50 से अधिक मुस्लिम महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं। रूमी का कहना है, “हम सिर्फ हिजाब नहीं बेचते, हम आत्मविश्वास बेचते हैं। हमारी हर डिज़ाइन में एक औरत की आज़ादी और सम्मान छिपा होता है।” उनकी वेबसाइट पर खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए कैश ऑन डिलीवरी और भाषा अनुवाद सुविधा भी दी गई है।
इंदौर के सैयद जोया का स्टार्टअप भारत की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक – पर्यावरण प्रदूषण – को संबोधित करता है। उन्होंने ‘GreenTaq’ नामक कंपनी की स्थापना की, जो मस्जिदों, मदरसों और छोटे उद्योगों में सौर ऊर्जा आधारित बिजली सप्लाई सिस्टम लगाता है। उनका मानना है कि इस्लाम में सफाई और पर्यावरण की रक्षा को आधा ईमान कहा गया है, और अब यही उनका व्यवसायिक मिशन है। GreenTaq अब तक 200 से अधिक धार्मिक स्थलों को सोलर एनर्जी से जोड़ चुका है, जिससे हर साल 70 टन से अधिक कार्बन उत्सर्जन में कमी आ रही है। उनका स्टार्टअप न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्कि समाज की मानसिकता को बदलने के लिए भी मिसाल बन चुका है।
लखनऊ की फरज़ाना अली ने कोविड महामारी के दौरान महसूस किया कि मुस्लिम महिलाओं को हेल्थकेयर सेवाओं तक पहुंच में सबसे ज्यादा परेशानी होती है, खासकर जब डॉक्टर पुरुष हो और भाषा बाधा बने। उन्होंने ‘Sehat-e-Niswa’ नामक टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म शुरू किया, जहाँ मुस्लिम महिला डॉक्टर, मरीजों से हिजाब में सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से परामर्श करती हैं। यह प्लेटफॉर्म आज बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के 100 से ज्यादा कस्बों और गाँवों में काम कर रहा है, जिसमें 75 से अधिक महिला डॉक्टरों की टीम दिन-रात सेवा में लगी है। फरज़ाना का सपना है कि “हर मुस्लिम बहन तक हेल्थकेयर सम्मान के साथ पहुँचे – ना पर्दा हटे, ना बीमारी बढ़े।”
डेटा भी इस बदलाव की पुष्टि करता है। Startup India पोर्टल के अनुसार, 2024–25 में मुस्लिम उद्यमियों द्वारा दर्ज नए स्टार्टअप की संख्या में 32% की बढ़ोतरी हुई है। इनमें से 80% स्टार्टअप सामाजिक नवाचार (social innovation) पर केंद्रित हैं, जैसे शिक्षा में डिजिटलीकरण, महिलाओं की आत्मनिर्भरता, स्वच्छता अभियान, ग्रामीण स्वास्थ्य समाधान आदि। कई मुस्लिम उद्यमियों को Y Combinator, IIM Incubation Center, और Niti Aayog Atal Innovation Labs से सीड फंडिंग और मेंटरशिप मिल रही है।
लेकिन इन स्टार्टअप्स की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये सिर्फ व्यापारिक उद्देश्य से नहीं, सामाजिक ज़िम्मेदारी के साथ काम कर रहे हैं। जैसे रईस नवाज़ का RozgaarHaat.com, जो मुस्लिम युवाओं को जॉब काउंसलिंग देता है, उनके लिए स्किल ट्रेनिंग कैंप लगाता है और साथ ही अपने मुनाफे का 2% वक़्फ़ और समाजसेवा में दान करता है। इन उद्यमियों का मानना है कि “धंधा तब तक पाक नहीं, जब तक उसमें उम्मत की भलाई शामिल न हो।”
इन प्रेरणादायक कहानियों ने साबित कर दिया है कि अब मुस्लिम युवा सिर्फ समस्या नहीं, समाधान हैं। वे हिजाब पहनकर लैपटॉप चला रहे हैं, टोपी पहनकर डील फाइनल कर रहे हैं, नमाज पढ़कर बोर्ड मीटिंग में जा रहे हैं। उनका नजरिया बताता है कि ‘दीन और दुनिया’ एक साथ चल सकते हैं, और स्टार्टअप सिर्फ पैसा कमाने का जरिया नहीं, समाज बदलने का औज़ार भी हो सकता है।
यह लहर सिर्फ शुरुआत है। आने वाले वर्षों में जब एक मुस्लिम बच्चा कहेगा – “मैं खुद का बिज़नेस शुरू करूंगा” – तो समाज उसे डराएगा नहीं, दुआ देगा। और यही असली बदलाव होगा – आर्थिक आत्मनिर्भरता, सामाजिक नेतृत्व और मजहबी गरिमा का सुंदर संगम।