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किश्तवाड़ में बादल फटने से करीब 50 मौत, भारी तबाही

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जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में गुरुवार सुबह एक भीषण क्लाउडबर्स्ट ने भारी तबाही मचा दी, जिसमें करीब 50 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा घायल हो गए। पड्डर उपविभाग के चशोती गाँव, जो मचैल माता यात्रा मार्ग का प्रमुख पड़ाव है, में यह हादसा उस समय हुआ जब सैकड़ों श्रद्धालु लंगर और आसपास के दुकानों में मौजूद थे। अचानक पहाड़ों पर बादल फटने से आई तेज बारिश और मलबे की धारा ने लंगरों, दुकानों, अस्थायी ढांचों और घरों को बहा दिया। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि महज कुछ ही मिनटों में इलाके का मंजर पूरी तरह बदल गया और लोग तेज बहाव में बहते चले गए।

राहत व बचाव दलों के मुताबिक 40 से अधिक लोगों के शव अब तक निकाले जा चुके हैं, जबकि 200 से ज्यादा लोग अभी भी लापता हैं। घायलों की संख्या 100 से ऊपर है, जिनमें से कई की हालत नाजुक बताई जा रही है। अब तक 120 से अधिक लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है। राहत कार्य में NDRF, SDRF, पुलिस, भारतीय सेना और स्थानीय स्वयंसेवक लगातार जुटे हुए हैं, लेकिन मलबे और पानी के तेज बहाव के कारण मुश्किलें बढ़ रही हैं। प्रशासन ने पड्डर में एक नियंत्रण कक्ष स्थापित किया है और सभी घायलों को अथोली अस्पताल व जिला अस्पताल किश्तवाड़ भेजा जा रहा है।

हादसा उस समय हुआ जब मचैल माता यात्रा अपने चरम पर थी और चशोती में लंगर पर भारी भीड़ मौजूद थी। अचानक आई बाढ़ ने इलाके में खड़े कई वाहन और ढांचे बहा दिए। कई श्रद्धालु पानी के तेज बहाव में बह गए, जबकि कुछ पास के ऊंचे इलाकों में जाकर बच सके। प्रशासन ने यात्रा को तुरंत रोक दिया है और सभी यात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का अभियान शुरू कर दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हादसे पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए पीड़ितों के परिजनों के प्रति संवेदना प्रकट की है। प्रधानमंत्री मोदी ने हरसंभव सहायता का भरोसा दिलाया। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने स्वतंत्रता दिवस पर होने वाले “ऐट होम” चाय पार्टी और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम रद्द कर दिए हैं। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी राहत कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं और प्रभावित क्षेत्रों में सभी जरूरी संसाधन भेजने की घोषणा की है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह हादसा हिमालयी क्षेत्रों में बदलते जलवायु पैटर्न और अनियंत्रित निर्माण गतिविधियों का नतीजा है। पर्यावरणविदों का कहना है कि पर्वतीय इलाकों में नदी और नालों के किनारे निर्माण पर सख्त नियंत्रण और मौसम पूर्वानुमान व चेतावनी प्रणाली को और सशक्त बनाना बेहद जरूरी है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो इस तरह की आपदाएं भविष्य में और घातक रूप ले सकती हैं।

 

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