तिरुवनंतपुरम से कासरगोड तक
8 अगस्त 2025
यात्रा केवल मंज़िल पाने का नाम नहीं है — वह रास्ते में रुकने, देखने, सीखने और महसूस करने का अवसर भी है। और अगर बात केरल की हो, तो यहाँ की सड़कें सिर्फ यातायात मार्ग नहीं, बल्कि चलती-फिरती जीवंत तस्वीरें हैं — हरियाली, संस्कृति, स्वाद और सुकून से भरी हुई। केरल सरकार ने 2025 में एक नई पहल शुरू की है जिसे नाम दिया गया है: “ग्रीन हाईवे टूरिज्म सर्किट”। यह केवल सड़कों को पर्यटन योग्य बनाने की योजना नहीं, बल्कि पर्यावरण, स्थायित्व और समुदाय को एकीकृत करने वाला प्रयोग है।
क्या है ‘ग्रीन हाईवे टूरिज्म’?
इस योजना का उद्देश्य है कि केरल के राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों को केवल यात्रा मार्ग न मानकर, पर्यटन अनुभवों की माला बनाया जाए। इन सड़कों को इस तरह तैयार किया गया है कि हर 30-40 किलोमीटर पर कोई न कोई अनुभवशील विराम हो — वह किसी स्थानीय खाद्य हाट के रूप में हो, किसी हस्तशिल्प गाँव के रूप में, किसी मंदिर-मस्जिद के परिसर में, या किसी छोटी नदी के किनारे बने ईको-पार्क में।
2025 में तिरुवनंतपुरम से कोट्टायम, अल्लेप्पी, एर्नाकुलम होते हुए मलप्पुरम, कन्नूर और कासरगोड तक जो 560 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया है, वह भारत का पहला “नेट जीरो टूरिज्म हाईवे” घोषित हो चुका है।
यात्रा में पर्यावरण-संवेदनशीलता की झलक
इन ग्रीन हाईवे पर अब केवल कारें नहीं, बल्कि ई-बाइक, सोलर स्कूटर और साइकिल की सुविधा भी उपलब्ध है। पर्यटन विभाग द्वारा अधिकृत ‘ग्रीन ट्रैवल हब्स’ स्थापित किए गए हैं, जहाँ यात्री इलेक्ट्रिक वाहन चार्ज कर सकते हैं, जैविक कैफे में स्थानीय व्यंजन खा सकते हैं, और आसपास के गाँवों में छोटे ट्रेल पर चल सकते हैं।
सड़क किनारे लगाए गए ‘हरित सूचना बोर्ड’ यात्रियों को उस क्षेत्र के वनस्पति, जीव-जंतु, इतिहास, और सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराते हैं। ये बोर्ड अब QR कोड से लैस हैं, जिन्हें स्कैन कर यात्री स्थानीय कहानियाँ, जनश्रुतियाँ और फोकसाइट्स की ऑडियो जानकारी पा सकते हैं।
हर मोड़ पर एक नई दुनिया
तिरुवनंतपुरम से कोवलम
सड़क के दोनों ओर नारियल के झुरमुट, ईको-रीट्रीट्स और आयुर्वेदिक कैफे। यहाँ का ‘वृक्षमित्र जंगल कैफे’ पर्यटकों को अपने द्वारा लगाया पेड़ देखने का मौका देता है।
कोट्टायम – कुमारकोम सेक्शन
नदी के समानांतर चलती सड़क जहाँ नावें और कारें साथ-साथ चलती दिखती हैं। बीच में Backwater Poetry Point — एक रुकने की जगह, जहाँ युवा कवि लाइव कविताएं सुनाते हैं।
एर्नाकुलम – थ्रिसूर मार्ग
सड़क किनारे ‘हस्तशिल्प चौपाल’ बने हैं — जहाँ बाँस, नारियल और मिट्टी की कारीगरी देखी और खरीदी जा सकती है। शाम होते ही यहाँ पारंपरिक परिधान में लोक नर्तक नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
मलप्पुरम – वायनाड – कन्नूर कॉरिडोर
जैव विविधता से भरा हुआ रास्ता। यहाँ ‘पेड़ की कहानियाँ (Stories of Trees)’ नामक साइनबोर्ड लगाए गए हैं, जो हर पेड़ की स्थानीय कहानी बताते हैं।
कासरगोड की अंतिम सीमा
जहाँ ‘संधि विहार’ नामक अंतिम ग्रीन रेस्टिंग पॉइंट है — वहाँ बैठकर पर्यटक सूरज को समुद्र में डूबते हुए देखते हैं, और QR कोड से “Journey Summary” डाउनलोड कर सकते हैं।
स्वाद का सफर भी
इन हाईवे मार्गों पर अब ‘फार्म-टू-प्लेट ईटरीज’ का चलन बढ़ा है। किसान सीधे अपने खेतों के बगल में भोजनालय चला रहे हैं — जहाँ आप ‘नाडन कारी’, ‘पुट्टु-कडला करी’, ‘फिश मोइली’ जैसे स्थानीय व्यंजन खा सकते हैं। साथ में आपको व्यंजन से जुड़ी कहानी भी सुनाई जाती है — जैसे वह मसाला कहाँ से आया, वह विधि किस दादी से मिली।
परिणाम: यात्रा + पर्यावरण + रोजगार
‘ग्रीन हाईवे टूरिज्म’ ने अब तक लगभग 18 हज़ार ग्रामीण युवाओं को रोजगार दिया है — गाइड, कैफे स्टाफ, वाहन चार्जिंग टेक्नीशियन, QR कंटेंट मेकर, ग्रीन एंबेसडर आदि के रूप में। इससे पर्यटन से जुड़ी आय का 60% हिस्सा स्थानीय समुदाय तक पहुँच रहा है, जो भारत में एक नया मॉडल बन चुका है।
जब रास्ते ही मंज़िल बन जाएँ
केरल का यह ‘ग्रीन हाईवे’ मॉडल बताता है कि सड़कों को केवल ट्रैफिक नहीं, संस्कृति और चेतना के मार्ग के रूप में बदला जा सकता है। यह वह यात्रा है जहाँ रुकना भी उतना ही सुंदर है जितना चलना। जहाँ आप केवल दूरी नहीं नापते, संवेदनाओं के पड़ाव पार करते हैं।