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कश्मीर में अदृश्य रणभूमि: कैसे सुरक्षाबल और खुफिया एजेंसियाँ बना रही हैं देश की सुरक्षा की अपराजेय दीवार

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कश्मीर की सरहद पर बहादुरी का पराक्रम

15 अगस्त 2025 को जब पूरा भारत आज़ादी का 79वाँ पर्व मना रहा है, तब कश्मीर की घाटी में सैकड़ों सैनिक अपने बूटों के नीचे बर्फ और बारूद को रौंदते हुए सरहद की हिफाज़त कर रहे हैं। ये वो रणभूमि है जहाँ दुश्मन की गोली से ज़्यादा खतरनाक होती है ख़ामोशी, जहां सूरज की किरणें भी डर के साए में पहुँचती हैं। लेकिन इसी घाटी में हमारे सुरक्षा बल और खुफिया एजेंसियाँ मिलकर एक ऐसा कवच तैयार कर रही हैं, जो सिर्फ आतंकवादियों से नहीं, बल्कि विचारधारात्मक युद्ध से, सूचना युद्ध से और छुपे हुए दुश्मनों से भी भारत की रक्षा कर रही है। यह सिर्फ एक भौगोलिक संघर्ष नहीं, बल्कि एक मानसिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक युद्ध है – जिसमें जीतने के लिए केवल हथियार नहीं, सूझबूझ, तकनीक और समय से पहले की चेतावनी भी चाहिए।

मल्टी-लेयर सुरक्षा ढांचा: दुश्मन की हर चाल पर पैनी नजर

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा का ढांचा तीन स्तरों पर तैयार किया गया है – LoC (लाइन ऑफ कंट्रोल), घाटी के संवेदनशील क्षेत्र, और शहरी व ग्रामीण इंटेलिजेंस ग्रिड। नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना की बटालियनें 24×7 पैट्रोलिंग, Anti-Infiltration Grid और THADS (Thermal Human Activity Detection Systems) के जरिए निगरानी करती हैं। LoC के पास 2024 और 2025 में कुल 250 से अधिक घुसपैठ की कोशिशें नाकाम की गईं, जिनमें 60 से ज़्यादा आतंकियों को मार गिराया गया। वहीं घाटी के भीतर CRPF और जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा शोपियां, पुलवामा, बारामुला और अनंतनाग में लगातार Cordon and Search Operations (CASO) चलाए गए, जिससे कई आतंकियों को पकड़ा गया या मारा गया। खुफिया एजेंसियाँ — IB, NIA, RAW — साइलेंट मोड में काम करती हैं, लेकिन उनकी भूमिका आतंकवादी मॉड्यूलों को समय से पहले बेनकाब करने में सबसे निर्णायक होती है।

इंटेलिजेंस का इकोसिस्टम: गांव-गांव में चौकसी की जड़ें

आज जम्मू-कश्मीर में भारत की खुफिया एजेंसियाँ केवल एजेंटों के भरोसे काम नहीं कर रहीं, बल्कि उन्होंने एक विशाल इकोसिस्टम विकसित कर लिया है जिसमें स्थानीय नागरिक, पुनर्वासित युवाओं, NGO संपर्क, और डिजिटल मॉनिटरिंग शामिल हैं। सुरक्षा बलों ने Village Defence Guards (VDGs) को प्रशिक्षित कर स्थानीय लोगों को ही चौकसी का दायित्व सौंपा है। ये VDGs न केवल हथियार चलाना जानते हैं, बल्कि संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट देने में अग्रणी हैं। इसके अलावा, साइबर इंटेलिजेंस की मदद से 300 से अधिक सोशल मीडिया अकाउंट्स को बंद किया गया जो आतंकी प्रोपेगैंडा फैलाने में लगे थे। अब सुरक्षा बलों के पास “Hybrid Militants” को भी पकड़ने की तकनीक है — यानी वे लोग जो दिन में छात्र या दुकानदार लगते हैं, और रात में AK-47 उठाकर आतंक फैलाते हैं।

तकनीकी युद्ध: ड्रोन, सैटेलाइट और थर्मल विज़न की भूमिका

2025 में सुरक्षाबलों के पास केवल रायफल या टैंक नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी के वो हथियार हैं जो छुपे हुए आतंकियों को भी खोज निकालते हैं। सेना ने अब LoC पर नाइट विजन कैमरा, थर्मल इमेजिंग डिवाइसेज़, मिनी UAV और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित गतिविधि पहचान तकनीकें तैनात की हैं। BSF ने इस वर्ष 14 पाकिस्तानी ड्रोन गिराए, जो हथियार, नकली नोट और ड्रग्स गिरा रहे थे। इनके ज़रिए आने वाला सामान अब गुप्त रूट्स में पकड़ा जा रहा है। इससे LoC से आतंकी समर्थन की कमर टूटी है। GPS-टैग किए हुए IEDs भी बरामद किए गए, जिससे NIA को पूरे नेटवर्क को ट्रैक करने में मदद मिली। यहां तक कि अब आतंकियों की आवाज़ें भी AI सॉफ़्टवेयर से मिलाकर उनके मोबाइल नंबर की पुष्टि हो रही है।

कठिनाइयाँ और बलिदान: हिम्मत की हर सांस दुश्मनों से घिरी

जहां एक ओर रणनीति और टेक्नोलॉजी हैं, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। कई बार जवानों को ऐसे घरों में ऑपरेशन करना होता है जहाँ आतंकी मासूमों को “ह्यूमन शील्ड” बनाकर छिपे होते हैं। कुछ जगहों पर जनता भ्रमित होती है और OGW (Over Ground Workers) बनकर आतंकियों को पनाह देती है। सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी, झूठे आरोप, फर्जी मुठभेड़ के आरोप जैसे खतरनाक प्रचार उनके मनोबल को कमजोर करने की कोशिश करते हैं। बावजूद इसके, जवान हर दिन अपनी जान हथेली पर रखकर घाटी को खून से बचाने में लगे हैं। 2024–2025 में 45 जवान शहीद हुए, जिनमें अधिकतर ने घुसपैठ रोकते समय, आईईडी निष्क्रिय करते समय या घेराबंदी के दौरान अपनी जान गंवाई। ये बलिदान हमें यह याद दिलाते हैं कि हर स्वतंत्रता दिवस किसी वीर की अंतिम साँस पर खड़ा होता है।

तथ्यों की रोशनी में उपलब्धियाँ – परिणाम जो बोलते हैं

इस पूरे दौर में भारत की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों ने जो आँकड़े पेश किए हैं, वे किसी भी युद्ध में विजय के बराबर हैं।

  1. मारे गए आतंकवादी (2024-25): 80+ (60% विदेशी मूल)
  1. OGW और सहयोगी गिरफ्तार: 500+
  1. घुसपैठ प्रयास नाकाम: 250+
  1. ड्रोन हमले रोके गए: 40 से अधिक
  1. ट्रैक किए गए आतंकी फंडिंग चैनल: 5 बड़े अंतरराष्ट्रीय लिंक,
  1. VDG की मदद से रोके गए हमले: 12 से अधिक मामलेA,

 एक अदृश्य युद्ध में हमारी विजयी सेना

कश्मीर में आज़ादी के इस पावन दिन पर, जब भारत के करोड़ों नागरिक तिरंगा लहराते हुए झूम रहे हैं, उस क्षण का असली श्रेय उन्हें जाता है — जो कंधों पर कंधे मिलाकर बिना थके, बिना रुके, देश की रक्षा के लिए खड़े हैं। उनकी जीत किसी विजय जुलूस में नहीं, बल्कि घाटी में पसरे सन्नाटे में दिखती है; वह सन्नाटा जो आतंकवाद के डर से नहीं, बल्कि सुरक्षाबलों की विजय से उपजा है। खुफिया एजेंसियाँ, सेना, पुलिस और लोकल नेटवर्क — सभी मिलकर अब घाटी को केवल शांत नहीं, बल्कि विकसित बनाने की ओर ले जा रहे हैं। यह केवल आज़ादी की रक्षा नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य की नींव है। और जब अगला स्वतंत्रता दिवस आएगा, तब शायद घाटी सिर्फ बर्फीली नज़र नहीं आएगी — वह मुस्कुराती हुई, सुरक्षित और आत्मनिर्भर कश्मीर की तस्वीर बनेगी।

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