मुंबई 29 सितंबर 2025
महाराष्ट्र के अहिल्यनगर में “I Love Mohammad” के मुद्दे ने हिंसक रूप ले लिया है। सूचना है कि पुलिस ने इलाक़े में लाठी चार्ज किया और करीब 30 लोगों को हिरासत में लिया गया है। आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने राजमार्ग को ब्लॉक किया था, जिस पर पुलिस ने बल प्रयोग कर खुली कार्रवाई की।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, स्थानीय लोगों ने इस वाक्य को सार्वजनिक जगहों पर लिखने की अनुमति मांगी थी, पर तुरंत ही उस पर नफ़रत का आरोप लगाकर इसे संवेदनशील मामला बना दिया गया। लोगों के इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन को पुलिस और प्रशासन ने सख्ती से दबा दिया।
घटना स्थल की सूचना से पता चलता है कि प्रदर्शनकारियों ने “I Love Mohammad” के पोस्टर, बैनर और नारों के साथ शांतिपूर्वक मार्च निकालने की योजना बनाई थी। लेकिन पुलिस प्रशासन की प्रतिक्रिया पहले से तैयार थी — जैसे ही भीड़ ने सड़क पर जामा किया, पुलिस ने लाठियों से हमला किया और कई लोगों को धर दबोचा।
हिरासत में लिए गए लोगों में युवा, छात्र और स्थानीय निवासी शामिल हैं। पुलिस का कहना है कि ये लोग सार्वजनिक व्यवस्था भंग कर रहे थे और कानून तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन विरोधियों का आरोप है कि यह साहिबों की चुप्पी और राज्य की चाटुकारिता का नतीजा है — बयानबाज़ी पर कानून का भय दिखा कर उन आवाजों को दबाने की कोशिश।
इसके बाद तेज़ गहमागहमी हुई— प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच भिड़ंत हुई, सड़कों पर भगदड़ मची। राजमार्ग अवरुद्ध हो गया जिससे वाहनों की लंबी कतारें लग गईं। प्रशासन ने फोर्स बढ़ाई और इलाके में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया।
यह मामला सिर्फ़ एक वाक्य तक सीमित नहीं है — यह इस बात का प्रतीक बन गया है कि भारत में बोलने की आज़ादी किस कदर खतरे में है। जहाँ एक लाइन “I Love Mohammad” लिखने पर प्रकरण दर प्रकरण ज़ब्ती लगाई जा सकती है, वहाँ लोकतंत्र और बहुमत की सत्ता किस तरह छोटे–छोटे आंदोलनों को दबा देती है, ये बखूबी दिख रहा है।
कांग्रेस, मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी दलों ने इस घटना की निंदा की है। उन्होंने मांग की है कि हिरासत में लिए गए सभी लोगों को तत्काल रिहा किया जाए और इस तरह की दमनकारी कार्रवाई को लेकर निष्पक्ष जांच हो। साथ ही कहा गया है कि राज्य सरकार को सार्वजनिक आंदोलन और अभिव्यक्ति की आज़ादी को संरक्षित करना चाहिए, न कि उन्हें कुचलना चाहिए।
यह मामला अब सिर्फ़ अहिल्यनगर तक सीमित नहीं रह गया — यह पूरे महाराष्ट्र और देश भर में सवाल खड़ा कर गया है कि क्या भारत में शब्दों की आज़ादी- आज़ादी ही बची है या सरकार के हाथ में कलम से ज़्यादा लाठी ही ज़्यादा वजन रखती है?