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एक्सक्लूसिव: अलीगढ़ से अमेरिका तक, मुस्लिम छात्रों की ग्लोबल उड़ान

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कभी पिछड़ेपन, पहचान के भय और सीमित संसाधनों के दायरे में सिमटे मुस्लिम छात्र आज दुनिया की शीर्ष यूनिवर्सिटियों में अपनी काबिलियत का परचम लहरा रहे हैं। वर्षों तक सामाजिक दबाव और आर्थिक बेड़ियों से जूझने के बावजूद अब वे हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज, मलेशिया की इस्लामिक यूनिवर्सिटी, कतर फाउंडेशन और खाड़ी देशों के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में अपनी बौद्धिक मौजूदगी दर्ज करवा रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, मलेशिया और मध्य-पूर्व की यूनिवर्सिटियों में भारतीय मुस्लिम छात्रों की भागीदारी में पिछले तीन वर्षों में 25% की उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह सिर्फ शैक्षणिक उपलब्धि नहीं, बल्कि यह मुस्लिम समाज के भीतर उठते आत्मविश्वास, वैश्विक सोच और प्रतिस्पर्धात्मक तैयारी का प्रमाण है – एक ऐसी पीढ़ी का आगमन, जो दीन और दुनिया दोनों को साथ लेकर नए भारत की दिशा तय कर रही है।

AMU, Jamia, और Hyderabad Central University – अंतरराष्ट्रीय उड़ान की सीढ़ियाँ

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU), जामिया मिल्लिया इस्लामिया और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से हर साल सैकड़ों मुस्लिम छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश जा रहे हैं। इन संस्थानों में पिछले पांच वर्षों में GRE, IELTS और TOEFL की तैयारी के लिए स्पेशल स्कॉलरशिप व सपोर्ट प्रोग्राम्स शुरू किए गए हैं।

आफरीन जहां, जो AMU से बायोटेक्नोलॉजी में टॉपर रही हैं, अब University of Toronto, कनाडा में रिसर्च स्कॉलर हैं। उनका कहना है – “पहले हम सोचते थे कि विदेश केवल अमीरों का सपना है। अब मेहनत, स्कॉलरशिप और सही गाइडेंस से यह सपना सच्चाई बन रहा है।”

स्कॉलरशिप और डिजिटल तैयारी ने खोले नए दरवाज़े

सरकार और प्राइवेट संस्थानों द्वारा दी जाने वाली स्कॉलरशिप – जैसे MOMA स्कॉलरशिप, फुलब्राइट, चीविंग, रोहिंटन नरीमन स्कॉलरशिप और जमील ट्रस्ट – ने मुस्लिम छात्रों के लिए बड़ी राहत दी है। इनसे न केवल फीस और रहने की लागत कवर होती है, बल्कि स्टूडेंट को वीज़ा, सेटलमेंट और रिसर्च नेटवर्क भी मिलता है।

अब छात्र Zoom और YouTube से इंटरव्यू की तैयारी करते हैं, SOP लिखना सीखते हैं, और GitHub या ResearchGate पर अपने प्रोजेक्ट्स अपलोड कर रहे हैं। दिल्ली के अब्दुल समद कहते हैं – “असली बदलाव तब आया जब हमें यकीन हुआ कि हम भी वहाँ पढ़ सकते हैं जहाँ दुनिया के सबसे तेज़ दिमाग पढ़ते हैं।”

दुनिया को दिया जवाब – मुसलमान सिर्फ पहचान नहीं, प्रतिभा भी हैं

भारतीय मुस्लिम छात्रों ने विदेशों में टॉप रैंकिंग हासिल कर कई पूर्वाग्रह तोड़े हैं। फैजान इलाही, जो पहले मदरसे में पढ़े थे, अब हार्वर्ड केनेडी स्कूल से पब्लिक पॉलिसी में मास्टर्स कर रहे हैं। उन्होंने वहां ‘मुस्लिम इन इंडिया’ पर प्रेजेंटेशन देकर 14 देशों के छात्रों के बीच भारत की विविधता की चर्चा कराई।

इसी तरह हिना खालिद ने University of Oxford में मुस्लिम महिलाओं पर समाजशास्त्र में रिसर्च की और उनकी रिपोर्ट को UN ने सम्मानित किया। ये उपलब्धियाँ दिखाती हैं कि भारतीय मुसलमान अब केवल भारतीय विमर्श का हिस्सा नहीं, बल्कि वैश्विक चर्चा का भी केंद्र बन रहे हैं।

समाज में बदली सोच – “इमीग्रेशन नहीं, एम्पावरमेंट है यह”

पहले विदेश पढ़ने को कुछ तबकों में ‘पश्चिमीकरण’ या ‘वतन छोड़ना’ माना जाता था। लेकिन अब माता-पिता स्वयं अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने में गर्व और आशा महसूस कर रहे हैं। कई छात्र तो पढ़ाई पूरी करके वापस लौटकर भारत में समाज सेवा, स्टार्टअप और अकादमिक मार्गदर्शन कर रहे हैं। फरीदाबाद के शाह नवाज ने ऑस्ट्रेलिया से MBA कर लौटने के बाद 30 मुस्लिम छात्रों के लिए विदेश शिक्षा गाइडेंस सेंटर शुरू किया है, जहां वे फ्री में काउंसलिंग देते हैं।

नतीजा – मुसलमानों की पहचान अब शिक्षा और प्रतिभा के आईने में

विदेशों में पढ़ाई करने वाले मुस्लिम छात्रों की यह लहर अब एक आंदोलन का रूप लेती जा रही है। वे न केवल अपनी पहचान को गरिमा दे रहे हैं, बल्कि भारत का चेहरा भी दुनिया के सामने नए रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं – ऐसा चेहरा जो मेहनती है, आधुनिक है, और गर्व से कहता है: “हम भारतीय मुसलमान हैं, और हम विश्व पटल पर योगदान देने आए हैं।”

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके 10 भारतीय मुस्लिम छात्रों की प्रेरक सूची, जिनकी मेहनत और लगन ने न केवल उनकी किस्मत बदली बल्कि वे पूरी दुनिया में भारतीय मुस्लिम समाज की नई तस्वीर पेश कर रहे हैं।

फैज़ान इलाही – हार्वर्ड केनेडी स्कूल (USA)

राज्य: बिहार | पृष्ठभूमि: मदरसा और सरकारी स्कूल

कोर्स: Master in Public Policy

विशेषता: हार्वर्ड में उन्होंने “मुस्लिम Representation in Indian Democracy” पर रिसर्च किया, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खूब सराहा गया।

भावना: “पहचान तब बनती है जब आप दुनिया से संवाद करना सीखते हैं। अब मैं वतन लौटकर बदलाव लाऊँगा।”

आफरीन जहां – University of Toronto (Canada)

राज्य: उत्तर प्रदेश (अलीगढ़)

कोर्स: Ph.D. in Biotechnology

विशेषता: भारतीय मसालों में कैंसर रोधी तत्वों पर रिसर्च कर रही हैं।

सम्मान: कनाडा रिसर्च काउंसिल स्कॉलरशिप की पहली भारतीय मुस्लिम महिला रिसीपिएंट।

भावना: “हिजाब मेरे लिए रुकावट नहीं, मेरी पहचान और आत्मबल है।”

हिना खालिद – University of Oxford (UK)

राज्य: दिल्ली | कोर्स: M.Phil. in Sociology

विशेषता: मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक गतिशीलता पर रिसर्च; उनकी थीसिस को UN Women ने प्रकाशित किया।

भावना: “एक लड़की अगर सोच ले, तो वह किताबों से पूरी दुनिया जीत सकती है।”

शहवाज़ अंसारी – MIT (Massachusetts Institute of Technology, USA)

राज्य: महाराष्ट्र (औरंगाबाद)

कोर्स: Robotics Engineering

विशेषता: इन्होंने ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के लिए कम लागत वाला रोबोट विकसित किया, जिसे WHO के इनोवेशन फोरम में पेश किया गया।

भावना: “हमारे समाज को सिर्फ मदद नहीं, मॉडल चाहिए – और मैं वही बनना चाहता हूँ।”

मरियम सिद्दीक़ी – Australian National University (ANU)

राज्य: केरल

कोर्स: Environmental Law

विशेषता: दक्षिण भारत में वेटलैंड संरक्षण पर काम कर चुकी हैं। ANU में सस्टेनेबल गवर्नेंस पर रिसर्च कर रही हैं।

भावना: “मेरी पढ़ाई मेरे समाज और पर्यावरण दोनों के लिए समर्पित है।”

समीर इकराम – University of British Columbia (Canada)

राज्य: उत्तर प्रदेश (मुरादाबाद)

कोर्स: Artificial Intelligence & Ethics

विशेषता: Facial Recognition Algorithms में Bias Reduction पर काम कर रहे हैं।

भावना: “टेक्नोलॉजी में मुस्लिमों की आवाज़ जितनी मजबूत होगी, भविष्य उतना न्यायसंगत होगा।”

नाज़िमा यूसुफ़ – Sciences Po, Paris (France)

राज्य: जम्मू-कश्मीर

कोर्स: International Human Rights Law

विशेषता: उन्होंने कश्मीर में महिलाओं के अधिकारों पर डॉक्यूमेंटेशन किया जिसे यूरोपीय यूनियन ने समर्थन दिया।

भावना: “मैं अपनी आवाज़ से दुनिया को बता रही हूँ कि हम भी समाधान का हिस्सा हैं, समस्या नहीं।”

उमर नज़ीर – National University of Singapore (NUS)

राज्य: तमिलनाडु (रामनाथपुरम)

कोर्स: Data Analytics & Public Health

विशेषता: मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में स्वास्थ्य डेटा पर आधारित पॉलिसी सुझाव तैयार कर रहे हैं।

भावना: “मुझे सीखना है ताकि मैं वापस लौटकर अपने लोगों के लिए कुछ कर सकूं।”

सायरा खान – University of Cambridge (UK)

राज्य: राजस्थान (कोटा)

कोर्स: Literature & Interfaith Studies

विशेषता: उन्होंने ‘इस्लामी साहित्य में भारत दर्शन’ पर रिसर्च की, जिसे इंटरफेथ डायलॉग के लिए उपयोग किया जा रहा है।

भावना: “मज़हब की गहराई समझना हो तो किताबों और संवाद दोनों की ज़रूरत होती है।”

क़ासिम रहमान – Stanford University (USA)

राज्य: पश्चिम बंगाल (कोलकाता)

कोर्स: Social Entrepreneurship

विशेषता: उन्होंने ‘SkillUp’ नामक एक NGO मॉडल तैयार किया जो स्लम एरिया के मुस्लिम युवाओं को रोजगारपरक शिक्षा देता है।

भावना: “मैं सीखा हुआ वापस लाकर अपने मोहल्ले की गलियों को अवसरों से जोड़ना चाहता हूँ।”

इन छात्रों ने क्या दिखाया?

  1. हिजाब, टोपी, कुरान की शिक्षा – ये अब रुकावट नहीं, मूल्यों की पहचान बन चुकी है।

 

  1. अंतरराष्ट्रीय शिक्षा मंच पर मुस्लिम छात्र प्रतिस्पर्धा नहीं, सहयोग का मॉडल बनकर उभर रहे हैं।

 

  1. ये छात्र विदेश जाकर ‘ब्रेन ड्रेन’ नहीं कर रहे, बल्कि ‘ब्रेन गेन’ करके लौट रहे हैं।

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