15 अगस्त केवल स्वतंत्रता का उत्सव नहीं, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि भारत ने किन क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की ओर निर्णायक कदम उठाए हैं। स्वास्थ्य सेवा का क्षेत्र उन प्रमुख स्तंभों में रहा है, जहाँ आज़ादी के बाद भारत ने एक लंबी यात्रा तय की—गरीबी, कुपोषण और संक्रामक बीमारियों से जूझते देश से लेकर विश्व के चिकित्सा पर्यटन (Medical Tourism) का केंद्र बनने तक। आज भारत न केवल अपने नागरिकों को आधुनिक इलाज उपलब्ध करा रहा है, बल्कि दुनिया के कई देशों से लोग भारत में इलाज के लिए आ रहे हैं। यह सिर्फ़ तकनीक की नहीं, बल्कि नीति, प्रतिबद्धता और सेवा की जीत है।
स्वास्थ्य का प्रारंभिक परिदृश्य (1947–1970): एक चुनौतीपूर्ण शुरुआत जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब देश में न डॉक्टरों की संख्या पर्याप्त थी, न अस्पतालों की पहुंच, और न ही दवाओं की व्यवस्था। औसत जीवन प्रत्याशा मात्र 32 वर्ष थी। भारत हर साल मलेरिया, हैजा, तपेदिक और चेचक जैसी बीमारियों से लाखों नागरिकों को खो देता था। उस समय भारत ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) की स्थापना को प्राथमिकता दी। 1951 में पहला पंचवर्षीय योजना प्रारंभ हुआ जिसमें स्वास्थ्य एक केंद्रीय मुद्दा बना।
इस दौर में भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR), और राष्ट्रीय क्षयरोग संस्थान जैसे संस्थानों की स्थापना ने आधार तैयार किया। चेचक उन्मूलन, पोलियो नियंत्रण और मलेरिया पर नियंत्रण जैसे अभियानों ने सामाजिक स्वास्थ्य की दिशा में बदलाव की नींव रखी।
जनसंख्या नियंत्रण और मातृ-शिशु स्वास्थ्य की पहल (1970–1990) इस काल में भारत ने परिवार नियोजन, टीकाकरण, और मातृत्व देखभाल पर विशेष ध्यान दिया। ‘हम दो हमारे दो’ का नारा इसी दौर में चर्चित हुआ। पहली बार राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का मसौदा 1983 में आया। इस समय में आंगनवाड़ी सेवाओं, टीकाकरण कार्यक्रम, और ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की नियुक्ति से मातृत्व और शिशु मृत्यु दर में गिरावट आने लगी। मिशनरी और सरकार दोनों स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा को बढ़ावा मिला।
स्वास्थ्य क्षेत्र में ढांचा और योजना आधारित विस्तार (1990–2010) 1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के साथ स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण भी बढ़ा। निजी अस्पतालों, डायग्नोस्टिक सेंटर और मेडिकल कॉलेजों का विकास हुआ। इसी दौरान राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) 2005 में प्रारंभ किया गया। ASHA कार्यकर्ताओं की भर्ती और संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हुईं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY), जननी सुरक्षा योजना (JSY), और आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं के लिए एम्बुलेंस नेटवर्क का विस्तार इसी काल की उपलब्धियाँ थीं। मेडिकल शिक्षा में निजी क्षेत्र की भूमिका भी बढ़ी।
आयुष्मान भारत और सार्वभौमिक स्वास्थ्य की दिशा (2010–2025) वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) के तहत 50 करोड़ से अधिक भारतीयों को सालाना ₹5 लाख तक मुफ्त स्वास्थ्य बीमा मिला। इस योजना के तहत लाखों गंभीर बीमारियों का मुफ्त इलाज संभव हुआ। ‘हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर’ के रूप में 1.5 लाख प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को अपग्रेड करने की योजना ने जमीनी स्वास्थ्य ढांचे को पुनर्जीवित किया। इसी दौर में डिजिटल हेल्थ मिशन, ई-संजीवनी, और टेलीमेडिसिन जैसे कदमों ने स्वास्थ्य सेवाओं को मोबाइल फोन और इंटरनेट तक पहुंचा दिया। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने न केवल दो स्वदेशी टीके (कोविशील्ड और कोवाक्सिन) विकसित किए, बल्कि ‘वैक्सीन मैत्री’ के माध्यम से 70 से अधिक देशों को टीके भेजे।
चिकित्सा पर्यटन में भारत की वैश्विक पहचान आज भारत विश्व का चिकित्सा पर्यटन हब बन चुका है। अफ्रीका, मध्य एशिया, खाड़ी देशों और दक्षिण एशिया से लाखों लोग भारत के मल्टी-सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों में इलाज कराने आते हैं। इसके पीछे कई प्रमुख कारण हैं—भारत में इलाज की लागत अमेरिका, यूरोप या खाड़ी देशों की तुलना में 60–80% तक कम है, फिर भी गुणवत्ता वैश्विक मानकों के अनुरूप होती है। आधुनिक तकनीक, अनुभवी चिकित्सक, उत्कृष्ट नर्सिंग और तेज़ रिकवरी के लिए प्रसिद्ध भारत, विदेशी मरीजों के लिए एक भरोसेमंद विकल्प बन चुका है।
भारत के प्रमुख और विश्व प्रसिद्ध अस्पतालों में निम्नलिखित नाम शामिल हैं:
- AIIMS (All India Institute of Medical Sciences) – नई दिल्ली समेत देशभर में अनेक शाखाएँ
- Apollo Hospitals – चेन्नई, हैदराबाद, दिल्ली, बेंगलुरु
- Medanta – The Medicity – गुरुग्राम
- Fortis Healthcare – दिल्ली-NCR, मुंबई, बैंगलुरु
- Narayana Health – बेंगलुरु और देश के अन्य हिस्सों में
- Tata Memorial Hospital – कैंसर इलाज के लिए, मुंबई
- Max Healthcare – दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, हैदराबाद
- BLK-Max Super Speciality Hospital – नई दिल्ली
- Manipal Hospitals – बेंगलुरु, पुणे, दिल्ली
- Leelavati Hospital – मुंबई
- Kokilaben Dhirubhai Ambani Hospital – मुंबई
- केजीएमसी (King George’s Medical college) – लखनऊ
- Yashoda Hospitals – गाजियाबाद के नेहरूनगर, कौशांबी एवं इंदिरापुरम में
- Medicent Super Speciality Hospital and Research Centre – बोकारो, झारखंड
2024 तक भारत में हर साल लगभग 25 लाख विदेशी मरीज इलाज के लिए आते थे और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। मेडिकल वीज़ा प्रक्रिया को सरल बनाने से भी इस क्षेत्र को बढ़ावा मिला है।
आयुष, योग और परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों का पुनरुत्थान भारत ने न केवल एलोपैथी बल्कि आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (AYUSH) को भी औपचारिक संस्थागत ढांचे में विकसित किया। आयुष मंत्रालय की स्थापना, राष्ट्रीय आयुष मिशन, और योग को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाना भारत की सांस्कृतिक चिकित्सा शक्ति का प्रतीक है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून), पतंजलि और आयुर्वेदिक ब्रांड्स का पुनर्जीवन, और आयुषमान भारत डिजिटल मिशन के तहत आयुष आधारित सेवाओं को तकनीक से जोड़ना इस क्षेत्र की बड़ी उपलब्धियाँ हैं।
स्वास्थ्य शिक्षा और मेडिकल शोध संस्थानों की प्रगति आज भारत में 700 से अधिक मेडिकल कॉलेज हैं जो इसे विश्व में मेडिकल शिक्षा में अग्रणी बनाते हैं। AIIMS की संख्या अब बढ़कर दो दर्जन से अधिक हो गई है। NEET के माध्यम से पारदर्शी चयन प्रणाली, डिजिटल मेडिकल रजिस्ट्रेशन, और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की जगह राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) का गठन शिक्षा सुधार का हिस्सा है। ICMR, CSIR, NIB, DBT जैसे संस्थानों ने टीके, दवाइयाँ, रोगों की जेनेटिक प्रोफाइलिंग, और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
डिजिटल हेल्थ और भविष्य की दिशा भारत अब AI आधारित डायग्नोसिस, रोबोटिक सर्जरी, हेल्थ डेटा एनालिटिक्स, और टेलीमेडिसिन में अग्रणी बन रहा है। ‘आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन’ के तहत नागरिकों को हेल्थ ID, डिजिटल मेडिकल रिकॉर्ड, और ऑनलाइन सलाह की सुविधा दी जा रही है। 5G तकनीक के साथ दूर-दराज़ के इलाकों में लाइव ऑपरेशन, विशेषज्ञ सलाह और मेडिकल इमरजेंसी का तेज़ समाधान अब संभव हो पाया है।
सेवा, समर्पण और विज्ञान से जनस्वास्थ्य का नवभारत भारत की स्वास्थ्य गाथा सिर्फ़ चिकित्सा नहीं, बल्कि यह सेवा, समर्पण, और विज्ञान आधारित नीतियों की कहानी है। जहाँ एक समय भारत बीमारियों का घर माना जाता था, वहीं आज वह जीवनदायिनी सेवाओं का केंद्र बन चुका है। भारत में सस्ता, उत्तम, और भरोसेमंद इलाज उपलब्ध होने के कारण विश्वभर से लाखों लोग हर वर्ष यहाँ चिकित्सा सेवा प्राप्त करने आते हैं। यह बदलती तस्वीर 15 अगस्त 2025 को गर्व से कहती है—भारत न केवल आत्मनिर्भर हुआ है, बल्कि उसने दुनिया को भी चिकित्सा की नई राह दिखाई है।