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बासमती पर संकट: भारत-पाकिस्तान की बाढ़ से वैश्विक बाजार में उठी आपूर्ति की चिंता

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नई दिल्ली 9 सितम्बर 2025

दुनिया भर में मशहूर बासमती चावल की खुशबू और स्वाद अब बाजार में महंगे दाम के साथ नजर आ सकता है। वजह है भारत और पाकिस्तान में हालिया बाढ़, जिसने धान की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। दोनों देश मिलकर वैश्विक बासमती निर्यात का बड़ा हिस्सा संभालते हैं, ऐसे में बाढ़ का असर न केवल किसानों और व्यापारियों पर पड़ेगा, बल्कि दुनिया भर के उपभोक्ताओं तक इसकी मार पहुंचने वाली है।

भारत-पाकिस्तान की फसलों को भारी नुकसान

रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत और पाकिस्तान के कई राज्यों में बाढ़ ने धान की बासमती किस्मों की हजारों हेक्टेयर फसलें बर्बाद कर दी हैं। खेतों में खड़ी फसलें डूब गईं और जो बची भी, उसकी गुणवत्ता पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। खासकर हरियाणा, पंजाब और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थिति बेहद खराब बताई जा रही है। यह क्षेत्र दुनिया को उच्च गुणवत्ता वाला बासमती चावल उपलब्ध कराता है।

वैश्विक बाजार में आपूर्ति संकट की आशंका

भारत और पाकिस्तान बासमती चावल के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हैं। ऐसे में उत्पादन में कमी सीधा असर निर्यात पर डालेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में वैश्विक बाजार में बासमती की आपूर्ति घट सकती है, जिससे दामों में तेजी तय मानी जा रही है। यूरोप, खाड़ी देश और अमेरिका जैसे बाजार, जहां भारतीय और पाकिस्तानी बासमती की बड़ी खपत है, वहां उपभोक्ताओं को महंगे दाम पर चावल खरीदना पड़ सकता है।

किसानों और व्यापारियों पर दोहरी मार

बाढ़ से प्रभावित किसानों के सामने फसल बर्बादी की समस्या तो है ही, साथ ही उन्हें बाजार में संभावित गिरावट और लागत वसूली की चुनौती भी झेलनी होगी। वहीं निर्यातक कंपनियों को समय पर डिलीवरी करने और वैश्विक अनुबंध निभाने में मुश्किलें आने वाली हैं। इससे न केवल आर्थिक नुकसान होगा, बल्कि व्यापारिक भरोसे पर भी असर पड़ सकता है।

सरकारों के लिए नई चुनौती

भारत और पाकिस्तान दोनों के सामने अब कृषि क्षेत्र को संभालने और आपूर्ति संतुलन बनाए रखने की चुनौती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों देशों को एक ओर किसानों को राहत पैकेज देना होगा और दूसरी ओर निर्यात अनुबंधों को पूरा करने के लिए वैकल्पिक रणनीतियां बनानी होंगी। अन्यथा, यह संकट दोनों देशों की साख पर चोट कर सकता है। कुल मिलाकर, बासमती चावल का संकट सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अब वैश्विक रसोई तक पहुंचने वाला है। आने वाले दिनों में दुनियाभर में खाने की थाली महंगी होना लगभग तय माना जा रहा है।

 

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