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पंजाब में बाढ़ का पानी घटा, किसान लौटे टूटे घरों और बर्बाद खेतों की ओर

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चंडीगढ़, 25 सितंबर 2025 

पंजाब में हाल ही में आई भीषण बाढ़ का पानी अब उतरने लगा है और गाँवों में लोग वापस लौटने लगे हैं। लेकिन वापसी पर उन्हें राहत के बजाय हकीकत की कड़वी तस्वीर दिख रही है। जिन घरों को छोड़कर वे सुरक्षित स्थानों या राहत शिविरों में गए थे, वे अब टूटे-फूटे, दरकी हुई दीवारों और कीचड़ से भरे हुए मिले हैं। कई परिवारों के पास अपने घरों को फिर से खड़ा करने के लिए संसाधन नहीं हैं, और उन्हें यह डर सताने लगा है कि आने वाले महीनों में वे कहाँ और कैसे रहेंगे। जिन गलियों में पहले रौनक थी, वहां अब सिर्फ मलबा और बदबूदार पानी की निशानियाँ हैं।

किसानों के लिए स्थिति और भी गंभीर है। जिन खेतों से उन्हें अपने परिवार का पेट भरना था, वे अब बर्बादी की तस्वीर बन चुके हैं। सतलुज और अन्य नदियों के उफान से हजारों एकड़ कृषि भूमि या तो पूरी तरह जलमग्न हो चुकी है या फिर उस पर मोटी परत में रेत और मलबा जम गया है। कुछ खेतों को तो नदी ही अपने साथ बहा ले गई। किसानों का कहना है कि अब इन खेतों को खेती योग्य बनाने में महीनों लगेंगे और लाखों रुपये का खर्च आएगा। कई परिवारों के लिए यह नुकसान जीवनभर की जमा पूंजी के बराबर है। बुआई का मौसम बीत जाने से उनकी आमदनी पर भी सीधा असर पड़ेगा और कर्ज़ चुकाना और भी कठिन हो जाएगा।

गाँवों में लौटने के बाद सबसे बड़ी चुनौती अब पुनर्निर्माण और जीविका की है। लोग अपने घरों से मलबा निकाल रहे हैं, दीवारों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं और वहीं सोने-बैठने को मजबूर हैं। बिजली और पीने के पानी जैसी मूलभूत सुविधाएँ अब भी कई इलाकों में बहाल नहीं हो पाई हैं। पशुओं के लिए चारे की कमी है और बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। मच्छरों के प्रकोप को रोकने के लिए प्रशासन ने दवाओं का छिड़काव शुरू किया है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि राहत कार्यों की गति पर्याप्त नहीं है।

राज्य सरकार ने बाढ़ प्रभावित जिलों में गिरदावरी यानी नुक़सान का सर्वेक्षण शुरू किया है, ताकि किसानों और ग्रामीणों को मुआवज़ा दिया जा सके। साथ ही यह घोषणा भी की गई है कि बाढ़ से प्रभावित किसानों को मुफ्त बीज और अन्य सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। लेकिन लोगों का कहना है कि जब तक स्थायी पुनर्वास और बुनियादी ढांचे के सुधार की योजनाएँ नहीं बनेंगी, तब तक हर साल उन्हें यही स्थिति झेलनी पड़ेगी। कई गाँवों के लोगों ने सेना और राज्यपाल से सीधे दखल देने की मांग की है, क्योंकि उनका मानना है कि यह संकट स्थानीय प्रशासन की क्षमता से बाहर है।

पंजाब की यह बाढ़ केवल प्राकृतिक आपदा नहीं रही, बल्कि इसने राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था और लाखों परिवारों के जीवन को हिला दिया है। जिन किसानों की ज़मीन बाढ़ में चली गई या बंजर हो गई, उनके लिए यह केवल एक मौसम की बर्बादी नहीं, बल्कि भविष्य का गहरा संकट है। अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि राज्य और केंद्र सरकार मिलकर किस तरह राहत और पुनर्वास की योजनाएँ लागू करती हैं और किसानों को उनकी खोई उम्मीद वापस दिला पाती हैं।

 

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