Home » Science & Tech » हुनर, हिकमत और होश की मिसाल: मुस्लिम युवा वैज्ञानिक बना रहे हैं भारत का इनोवेशन इंजन

हुनर, हिकमत और होश की मिसाल: मुस्लिम युवा वैज्ञानिक बना रहे हैं भारत का इनोवेशन इंजन

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

नई सोच, नई साइंस: अब लैब में भी दिख रही है कौम की चमक

वो दौर गुजर चुका जब साइंस और मुस्लिम समाज के बीच केवल कुछ नामों तक सीमित रिश्ता हुआ करता था। आज भारत की प्रयोगशालाओं, विश्वविद्यालयों और रिसर्च संस्थानों में मुस्लिम युवा वैज्ञानिकों की गूंज है। उनके प्रयोग, शोध और तकनीकी समाधान देश की समस्याओं को हल करने की दिशा में बड़ा योगदान दे रहे हैं। ये युवा वैज्ञानिक आधुनिक विज्ञान की दुनिया में अपनी जगह बना रहे हैं – रूढ़ियों को तोड़कर, सीमाओं को लांघकर।

कृषि से क्वांटम तक – हर फील्ड में दिख रही है मुस्लिम प्रतिभा की मौजूदगी

पुणे की डॉ. उम्मे कुलसूम ने फसल सुरक्षा जैव तकनीक में शोध कर किसानों की आमदनी को दोगुना करने में मदद की। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से निकले डॉ. तौसीफ रिज़वी ने क्वांटम कम्युनिकेशन पर ऐसा रिसर्च पेपर प्रकाशित किया जिसे अमेरिकी डिफेंस सेक्टर तक ने सराहा। वहीं हैदराबाद की डॉ. हिबा नसीर AI और जलवायु परिवर्तन की इंटरफेस पर काम कर रही हैं, और उनका मॉडल अब G20 क्लाइमेट इनोवेशन शोकेस में चुना गया है।

रिसर्च नहीं रुकता – फेलोशिप, पेटेंट और प्रॉब्लम सॉल्विंग में नई उड़ान

जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र अब्दुल समद अंसारी को हाल ही में ब्रेन स्ट्रोक डिटेक्शन चिप के लिए पेटेंट मिला है। IIT मद्रास में पीएचडी कर रहे मो. दानिश हाइड्रोजन फ्यूल स्टोरेज टेक्नोलॉजी में भारत के पहले मुस्लिम शोधकर्ता बने हैं। डॉ. रईसा आफरीन, जो श्रीनगर की रहने वाली हैं, उन्होंने Women in Science Fellowship जीती और लद्दाख में महिलाओं की स्वास्थ्य पर जलवायु प्रभाव का अध्ययन कर रही हैं।

ये सभी नाम इस बात की मिसाल हैं कि अब मुस्लिम समाज में सिर्फ पढ़ने की चाह नहीं, नवाचार की चाह भी पनप रही है।

संस्थान भी बढ़ा रहे हैं भरोसा – मुसलमान युवाओं को मिल रहा है मंच

CSIR, ISRO, DRDO, DBT और UGC जैसे राष्ट्रीय वैज्ञानिक निकाय अब मुस्लिम समाज से जुड़े वैज्ञानिकों और छात्रों को आगे लाने के लिए इंक्लूसिव रिसर्च मॉडल्स और मेंटरशिप प्रोग्राम चला रहे हैं। हाल ही में बेंगलुरु में हुई National Young Innovators Conference में 7 मुस्लिम छात्रों को विशेष नवाचार सम्मान मिला, जिनमें 4 छात्राएं थीं।

‘सोच बदलो, साइंस बनाओ’ – मुस्लिम समाज में नई चेतना का प्रसार

अब मुस्लिम घरों में “इंजीनियर बनो” से आगे बढ़कर “वैज्ञानिक बनो, शोध करो” की बातें होने लगी हैं। धार्मिकता के साथ विज्ञान को जोड़ने वाली सोच – जहां इल्म (ज्ञान) को इंसान की सबसे बड़ी नेमत समझा गया – फिर से ज़िंदा हो रही है। रातों की नींद और लैब की गंध अब मुस्लिम युवाओं के सपनों में शामिल हो चुकी है।

आँकड़ों की ज़ुबानी – ये बदलाव सिर्फ भावना नहीं, हकीकत है

  1. 2023 से 2025 के बीच CSIR फेलोशिप पाने वाले मुस्लिम छात्रों की संख्या में 38% की बढ़ोतरी
  1. मुस्लिम महिला शोधकर्ताओं की भागीदारी दोगुनी हुई
  1. Top 100 यूजीसी नेट साइंस रैंकिंग में 2024 में 9 मुस्लिम छात्र-छात्राएं शामिल
  1. ISRO के युवा विज्ञान मिशन में 2025 की टॉप 10 इनोवेशन में 2 मुस्लिम छात्रों के प्रोजेक्ट शामिल

 मुस्लिम समाज में विज्ञान की ये उठती लहर है भारत की असली पूँजी

आज के मुस्लिम युवा वैज्ञानिक न सिर्फ लैब में काम कर रहे हैं, बल्कि वे समाज, पर्यावरण और राष्ट्र निर्माण की मूल चुनौतियों पर अपने समाधान ला रहे हैं। वे बताते हैं कि इस्लामी परंपरा और आधुनिक विज्ञान विरोध नहीं, पूरक हैं – जहाँ हुनर भी है, हिकमत भी है, और इंसानियत का मकसद भी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *