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केंद्र शासित बन कर नवजीवन मिला जम्मू-कश्मीर की स्वास्थ्य व्यवस्था को

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जम्मू-कश्मीर का स्वास्थ्य क्षेत्र एक नई स्वतंत्रता का अनुभव कर रहा है—स्वास्थ्य सेवाओं की निर्बाध पहुँच, आधुनिक तकनीक और बेहतर चिकित्सा ढाँचे की स्वतंत्रता। पाँच वर्षों में केंद्र शासित प्रदेश रहे जम्मू-कश्मीर ने न केवल अवसंरचना के स्तर पर, बल्कि चिकित्सीय सेवाओं की गुणवत्ता, बीमा सुरक्षा, मातृत्व देखभाल, और डिजिटल स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऐतिहासिक छलांग लगाई है। जहाँ कभी घाटी के दूरस्थ क्षेत्रों में इलाज के लिए सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी, वहीं अब मोबाइल हेल्थ यूनिट, टेलीमेडिसिन और एम्बुलेंस नेटवर्क ने पहाड़ों और दर्रों के बीच इलाज को घर-द्वार तक पहुँचा दिया है।

मेडिकल सर्विस: एम्स से लेकर मातृ एवं शिशु अस्पताल तक

जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा अब पुराने दिनों की कमी और बदहाली को पीछे छोड़ चुका है। दक्षिण कश्मीर के अवंतिपोरा में निर्माणाधीन AIIMS कश्मीर, और पहले से कार्यरत AIIMS जम्मू अब UT में सुपर स्पेशलिटी सेवाओं की रीढ़ बन चुके हैं। इसके साथ ही अनंतनाग, बारामुला, डोडा, राजौरी, ऊधमपुर और कठुआ जैसे इलाकों में सात नए सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरू किए गए हैं, जिससे अब MBBS और अन्य स्वास्थ्य शिक्षा सीटों की संख्या में भारी इज़ाफा हुआ है। अनंतनाग में ₹86 करोड़ की लागत से बन रहा 250-बेड का मातृ एवं शिशु अस्पताल आने वाले वर्षों में शिशु मृत्यु दर और मातृ स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।

टेलीमेडिसिन और डिजिटल स्वास्थ्य की क्रांति: SEHAT ऐप और AI एक्स-रे स्कैनिंग

केंद्र की ‘डिजिटल इंडिया’ योजना के तहत जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य सेवाएं अब स्मार्टफोन और टैबलेट की स्क्रीन पर आ चुकी हैं। SEHAT ऐप, जो मरीजों को डॉक्टर से परामर्श, डिजिटल प्रिस्क्रिप्शन और मेडिकल रिकॉर्ड जैसी सुविधाएं मुहैया कराता है, अब गाँव-गाँव तक सक्रिय है। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने 100 AI-आधारित पोर्टेबल एक्स-रे मशीनों को अस्पतालों में भेजा है ताकि टीबी, निमोनिया जैसी बीमारियों की स्क्रीनिंग जल्दी और सटीक तरीके से की जा सके। टेलीमेडिसिन सेवाएं अब बांदीपोरा से पूंछ तक की पहाड़ियों में बसे परिवारों के लिए वरदान बन चुकी हैं, जहाँ विशेषज्ञों की नियमित उपलब्धता पहले एक सपना थी।

आयुष्मान भारत-सेहत योजना: स्वास्थ्य बीमा में अभूतपूर्व विस्तार

15 अगस्त 2025 तक जम्मू-कश्मीर में Ayushman Bharat – SEHAT Scheme के तहत 85 लाख से अधिक लाभार्थियों को गोल्डन कार्ड जारी हो चुके हैं, जिससे वे ₹5 लाख तक का मुफ्त इलाज करा सकते हैं। पहले जहाँ इलाज के खर्च की वजह से लोग कर्ज में डूबते थे, अब वे सरकारी और पंजीकृत निजी अस्पतालों में सर्जरी, डायलिसिस, ICU और कैंसर जैसी महंगी चिकित्सा सेवाएं मुफ्त प्राप्त कर रहे हैं। हालाँकि निजी अस्पतालों के कुछ हिस्सों ने योजना से असंतोष व्यक्त किया है, लेकिन सरकार का दावा है कि भुगतान व्यवस्था को और पारदर्शी और समयबद्ध बनाया जा रहा है।

अनुसंधान, प्रयोगशालाएं और AI से सुसज्जित स्वास्थ्य सेवाएँ

J&K सरकार अब स्वास्थ्य को सिर्फ सेवा नहीं, बल्कि शोध और सटीकता का केंद्र मान रही है। 98 नई जल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाएँ बनाई गई हैं ताकि पानी जनित रोगों को समय रहते रोका जा सके। SKIMS और GMCs को अब शोध के लिए विशेष अनुदान दिया जा रहा है, और AIIMS में न्यूरो-इमेजिंग, कैंसर बायोप्सी व पोर्टेबल स्कैनिंग डिवाइसेज़ पर शोध चल रहा है। Project Sarathi के तहत मरीजों को अस्पताल में सहायता देने के लिए प्रशिक्षित छात्र-स्वयंसेवकों को तैनात किया गया है, जिससे पंजीकरण से दवा मिलने तक की औसत समयावधि 4.2 घंटे से घटकर 2.8 घंटे हो गई है।

मानसिक स्वास्थ्य और नशा मुक्ति की चुनौतियां

जम्मू-कश्मीर में मानसिक स्वास्थ्य और नशा संबंधी समस्याएं अब सामाजिक चिंता का विषय बन चुकी हैं। एक अनुमान के अनुसार UT में लगभग 10–13 लाख युवा किसी न किसी रूप में नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे हैं, जिसमें सबसे खतरनाक है इंजेक्शन द्वारा हीरोइन का उपयोग। इससे Hepatitis C और HIV संक्रमण तेजी से बढ़ा है। मनोचिकित्सकों की कमी, मानसिक अस्पतालों में स्टाफ का अभाव, और सामाजिक वर्जनाओं के कारण लोग इलाज से बचते हैं। हालांकि, SKIMS, GMC Srinagar और कुछ NGO ने मोबाइल नशा मुक्ति यूनिट्स शुरू की हैं, लेकिन इस दिशा में और बड़े कदमों की ज़रूरत है।

स्टाफिंग और संसाधनों की कमी: अधूरी परियोजनाओं की हकीकत

एक तरफ जहाँ भवन खड़े हो चुके हैं, मशीनें पहुँच रही हैं, वहीं दूसरी तरफ अस्पतालों में डॉक्टर, विशेषज्ञ और तकनीशियन की भारी कमी है। रिपोर्ट के अनुसार GMC Srinagar और SKIMS में 60% तक पद खाली हैं। MRI, CT स्कैन और डायलिसिस मशीनें कई जिलों में हैं तो सही, लेकिन इन्हें चलाने वाला प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है। PET स्कैन जैसी आवश्यक सुविधाएँ अब भी सीमित हैं। बिना मानव संसाधन के यह सारी मशीनें और इमारतें ‘स्वास्थ्य’ नहीं दे सकतीं—सिर्फ प्रतीक बन सकती हैं।

ग्रामीण और जनजातीय स्वास्थ्य मिशन: सेवा के आखिरी छोर तक पहुंच

UT प्रशासन ने आदिवासी बहुल इलाकों जैसे डोडा, किश्तवाड़, उड़ी और बडगाम में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर, मोबाइल मेडिकल वैन, और 108 एम्बुलेंस सेवाओं को सशक्त किया है। ‘बस्तर ट्राइबल हेल्थ मिशन’ की तर्ज पर जम्मू-कश्मीर ने भी हज़ारों की आबादी को अब चिकित्सा सेवाओं से जोड़ दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य कार्यकर्ता (ASHA, ANM) अब सिर्फ टीकाकरण नहीं करतीं, बल्कि प्रसवपूर्व जांच, ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग और पोषण परामर्श भी दे रही हैं।

बीमारियों का बदलता स्वरूप: टीबी से लेकर ब्रेन फॉग तक

स्वतंत्रता के 78 वर्षों बाद भी जम्मू-कश्मीर की स्वास्थ्य चुनौतियाँ रुकी नहीं हैं। जहाँ एक ओर राज्य अब TB‑free बनने की ओर अग्रसर है, वहीं दूसरी ओर पोस्ट कोविड ब्रेन फॉग, नवजात जटिलताएँ, गैस्ट्रो इन्फेक्शन, और हेपेटाइटिस A जैसे नये खतरे सामने आए हैं। AIIMS Delhi की स्टडी में कश्मीर के सैकड़ों मरीज ब्रेन फॉग और याददाश्त की समस्याओं से जूझते पाए गए। साथ ही टूरिस्ट सीज़न में अमरनाथ यात्रा के दौरान हृदयाघात के मामले, एलर्जी और वायरल संक्रमण तेजी से बढ़ते हैं, जिससे स्वास्थ्य तंत्र पर मौसमी दबाव भी पड़ता है।

उम्मीदों और हकीकत के बीच संतुलन की ज़रूरत

15 अगस्त 2025 तक जम्मू-कश्मीर की स्वास्थ्य व्यवस्था ने जितनी प्रगति की है, वह सराहनीय है। लेकिन इसे ‘स्वस्थ जम्मू-कश्मीर’ बनाने का सपना तभी पूरा होगा जब ढाँचे के साथ-साथ सेवा, मानव संसाधन, संवेदनशीलता और निगरानी में भी समान ऊर्जा लगाई जाए। सरकारी अस्पतालों को बेहतर बनाना, निजी अस्पतालों की भागीदारी को फिर से मज़बूत करना, और योजनाओं को सही अर्थों में जमीनी स्तर पर पहुँचाना—यही स्वतंत्र भारत के इस सुंदर राज्य के लिए सबसे बड़ा स्वास्थ्य उत्सव होगा।

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