नई दिल्ली 17 सितम्बर 2025
देशभर में लगातार बिगड़ती हवा की गुणवत्ता पर सुप्रीम कोर्ट ने आज कड़ा रुख अपनाया है। सर्वोच्च अदालत ने साफ कहा है कि अब केवल वाद-विवाद और रिपोर्टों से हालात नहीं संभलेंगे, बल्कि ठोस कदमों की ज़रूरत है। अदालत ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को चेतावनी देते हुए निर्देश दिया है कि तीन हफ्तों के भीतर एक ठोस और कारगर कार्ययोजना अदालत के सामने पेश करें, नहीं तो कड़ी कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार रहें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि दिल्ली-एनसीआर समेत कई महानगरों में सांस लेना तक दूभर हो चुका है और यह स्थिति नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट चेतावनी दी कि यह मामला केवल कानून या औपचारिकताओं का नहीं बल्कि लोगों की जान से जुड़ा है। अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें अक्सर कागज़ी घोड़े दौड़ाकर अपनी जिम्मेदारी से बचती हैं लेकिन अब अदालत इस पूरे मुद्दे पर जवाबदेही तय करेगी। बीते वर्षों में दिवाली के बाद से लेकर पूरे सर्दियों के मौसम में हवा ज़हर से भी जहरीली हो चुकी है। पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर लगातार खतरनाक श्रेणी में बने रहते हैं, गाड़ियों का धुआं, उद्योगों से निकलता कचरा और पराली जलाने का धुआं हर साल लाखों लोगों को अस्पताल पहुँचा रहा है, फिर भी जिम्मेदार एजेंसियां सिर्फ बहाने बनाती रही हैं।
अदालत ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग और प्रदूषण बोर्डों से कहा है कि अगले तीन हफ्तों में एक निश्चित और परिणामकारी कार्ययोजना पेश करें जिसमें स्पष्ट हो कि कैसे पराली जलाने, औद्योगिक धुएं और वाहन प्रदूषण पर तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों स्तरों पर रोक लगाई जाएगी। अदालत ने यह भी कहा कि अगर एजेंसियां सिर्फ आधे-अधूरे कदम दिखाने आईं तो कोर्ट सीधे अफसरों पर जवाबदेही तय करेगा और आवश्यक हुआ तो दंडात्मक कार्यवाही भी करेगा। जजों ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि हवा के इस जहर से राहत मिले, क्योंकि नागरिकों के जीवन के अधिकार के साथ समझौता नहीं किया जा सकता।
यह सख्त रुख ऐसे समय पर आया है जब दिल्ली और उत्तर भारत के कई हिस्से सितंबर के महीने में ही प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। एनसीआर में एयर क्वालिटी इंडेक्स लगातार गंभीर श्रेणी के करीब पहुंच रहा है और प्रदूषण से जुड़ी बीमारियां जैसे अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर और हार्ट अटैक बढ़ते जा रहे हैं। विशेषज्ञ पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि अगर हालात काबू में नहीं आए तो आने वाले महीनों में हालात महामारी जैसे हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह सख्ती साफ दिखाती है कि अब वायु प्रदूषण से निपटने में अदालत ही जनजीवन की आखिरी उम्मीद बन चुकी है।
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