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CSDS के पूर्व निदेशक प्रो. संजय कुमार से बातचीत – हृषिका जैन और कृतिका शर्मा, मीडिया साइकोलॉजी, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, दिल्ली एनसीआर
नई दिल्ली 15 अगस्त 2025
भारत जब अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, तो तिरंगे की ऊंची उड़ान न केवल आज़ादी के गौरवशाली अतीत को सलाम कर रही है, बल्कि भविष्य की जिम्मेदारियों का एहसास भी करा रही है। स्वतंत्रता केवल अधिकार नहीं, बल्कि एक सतत लोकतांत्रिक वादा है — कि हर नागरिक की आवाज़ मायने रखती है। इसी भावना को समझने के लिए, हमने बातचीत की प्रोफेसर संजय कुमार से, जो प्रख्यात राजनीतिक वैज्ञानिक और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) के पूर्व निदेशक रह चुके हैं। भारतीय चुनावों और मतदाता व्यवहार पर दशकों के शोध अनुभव के साथ, वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की यात्रा पर गहरी और ईमानदार दृष्टि रखते हैं।
भारत की सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी चुनौती
प्रो. कुमार के अनुसार भारत की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताकत उसकी लचीलापन (resilience) और लोगों की लगातार, उत्साही भागीदारी है।
“अगर आप देखें तो लोग चुनावों में बहुत उत्साह से हिस्सा लेते हैं। चुनाव समय पर होते हैं और पिछले आठ दशकों से भारत एक क्रियाशील लोकतंत्र है — यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।”
लेकिन इस ताकत के साथ गंभीर चुनौतियां भी हैं। प्रो. कुमार इन्हें “दो M” — मसल पावर और मनी पावर — के रूप में पहचानते हैं।
“लोकतंत्र की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं है, जितनी हम उम्मीद करते हैं। हमारे कई निर्वाचित प्रतिनिधियों पर आपराधिक मामले हैं और चुनाव जीतने के लिए बड़ी मात्रा में, अक्सर अवैध, धन खर्च किया जाता है। चुनावों के दौरान बहुत सारा काला धन प्रवाहित होता है। यही भारतीय चुनावों की दो सबसे बड़ी चिंताएं हैं।”
मतदाता भागीदारी में आए बदलाव: आज का मतदाता भारत के लोकतांत्रिक विकास का प्रमाण है। आज मतदान प्रतिशत आज़ादी के शुरुआती वर्षों की तुलना में कहीं अधिक है।
“सबसे सकारात्मक बदलाव महिलाओं की भागीदारी में आया है,” प्रो. कुमार बताते हैं। “शुरुआती चुनावों में महिलाएं कम वोट डालती थीं, लेकिन अब वे बड़ी संख्या में मतदान कर रही हैं। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत शुभ संकेत है।”
यह बदलाव दर्शाता है कि लोग राजनीति और शासन प्रक्रिया से अधिक जुड़ रहे हैं, जिससे लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत हो रही हैं।
आज़ादी के बाद लोकतंत्र का विकास और युवाओं के लिए सीख : हमने पूछा कि आज़ादी के बाद भारतीय लोकतंत्र का विचार कैसे विकसित हुआ और युवा पीढ़ी इससे क्या सीख सकती है।
“मुझे लगता है कि भारतीय लोकतंत्र पहले की तुलना में आज कहीं अधिक मजबूत है,” वे कहते हैं। “लेकिन युवाओं ने राजनीति में उतनी रुचि नहीं दिखाई, जितनी उन्हें दिखानी चाहिए थी। पिछले 10 वर्षों में इसमें कुछ बदलाव आया है, लेकिन मेरी राय में छात्रों को राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी लेनी चाहिए, राजनीति में भाग लेना चाहिए और इससे अधिक जुड़ना चाहिए, जितना वे पिछले दशक में कर रहे थे।”
लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका : डिजिटल युग में मीडिया की ताकत और प्रभाव पहले से कहीं अधिक है। प्रो. कुमार इसकी अहमियत मानते हैं, लेकिन वर्तमान भूमिका को लेकर चिंतित हैं।
“मीडिया बहुत ताकतवर है और जनमत निर्माण में इसका गहरा असर पड़ता है,” वे कहते हैं। “लेकिन दुर्भाग्य से, मीडिया वह रचनात्मक भूमिका नहीं निभा रहा जो उसे निभानी चाहिए।”
वे मानते हैं कि मीडिया के प्रति सम्मान में कमी आई है और जनता के बीच यह धारणा बढ़ रही है कि कई मीडिया संस्थान किसी एक राजनीतिक दल के पक्ष में हैं।
“एक समय था जब मीडिया का बहुत सम्मान होता था, लेकिन अब यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।”
सुधार — बदलाव का असली रास्ता : जहां कई लोग चुनावी सुधार के लिए नए कानूनों की बात करते हैं, प्रो. कुमार मानते हैं कि सबसे बड़ा बदलाव नागरिकों के हाथ में है।
“हम मतदाता सबसे ताकतवर हैं। मतदाता की ताकत को कम मत आंकिए,” वे जोर देकर कहते हैं। “अगर हम एक दिन तय कर लें कि हम किसी भी दागी पृष्ठभूमि वाले या बेहिसाब पैसा खर्च करने वाले उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे, तो सुधार अपने आप आ जाएगा। इसके लिए किसी कानून की जरूरत नहीं होगी।”
स्वतंत्रता दिवस पर संदेश : प्रो. कुमार की बातें भारत की लोकतांत्रिक उपलब्धियों का उत्सव भी हैं और जिम्मेदारियों की गंभीर याद भी। वे मानते हैं कि लोकतंत्र का भविष्य सिर्फ नेताओं पर नहीं, बल्कि 90 करोड़ से अधिक मतदाताओं की समझदारी और सजगता पर निर्भर है।
जैसे भारत अपनी 80वीं स्वतंत्रता वर्षगांठ की ओर बढ़ रहा है, उनका संदेश स्पष्ट है — सही वोट डालना और लोकतंत्र की रक्षा करना ही सच्चा देशभक्ति है।