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ज्ञान से शक्ति तक: आज़ादी के 78 वर्षों में भारत की विज्ञान और तकनीक की अद्वितीय उड़ान

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विज्ञान का भारत निर्माण में ऐतिहासिक योगदान 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तब देश की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी व्यवस्था नवजात अवस्था में थी। वैज्ञानिक आधारभूत ढांचे की कमी, अनुसंधान के लिए पर्याप्त संस्थानों की अनुपस्थिति और वैश्विक स्तर पर तकनीकी पिछड़ापन भारत के सामने एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में विज्ञान को राष्ट्रनिर्माण के प्रमुख औजार के रूप में देखा गया था — और इस दृष्टिकोण ने भारत को उस मार्ग पर अग्रसर किया जहाँ वैज्ञानिक सोच, स्वदेशी नवाचार और तकनीकी आत्मनिर्भरता केंद्र में रहे। आज़ादी के बाद भारत ने न केवल विज्ञान के लगभग हर क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की, बल्कि अपनी तकनीकी उपलब्धियों से वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान भी बनाई है।

विज्ञान संस्थानों की आधारशिला और प्रारंभिक युग (1947–1970) स्वतंत्र भारत की वैज्ञानिक विकास यात्रा की शुरुआत प्रसिद्ध वैज्ञानिकों और दूरदर्शी नेताओं की जोड़ी से हुई। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी को ‘नई भारत की आत्मा’ कहा और ‘Scientific Temper’ को राष्ट्र की मानसिकता में समाहित करने की वकालत की। इस काल में विज्ञान को संस्थागत रूप देने के लिए भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) जैसे संस्थानों की नींव रखी गई। 1958 में भारत ने पहली बार विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति की घोषणा की। इस काल में परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अनुसंधान और भारी उद्योगों को प्राथमिकता दी गई। डॉ. होमी जहांगीर भाभा, डॉ. विक्रम साराभाई और प्रो. सी.एन.आर. राव जैसे वैज्ञानिकों ने भारत को आत्मनिर्भर विज्ञान राष्ट्र बनाने का सपना देखा और उसे साकार करने की दिशा में कार्य किया।

अंतरिक्ष विज्ञान और ISRO की स्वर्ण यात्रा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना 1969 में हुई, जिसका लक्ष्य था – देश को अंतरिक्ष तकनीक में आत्मनिर्भर बनाना और सामाजिक-आर्थिक विकास में इसका उपयोग करना। प्रारंभ में रोहिणी और SLV जैसी परियोजनाओं से शुरुआत हुई, और फिर INSAT और IRS सैटेलाइट्स ने दूरसंचार, मौसम, कृषि और मानचित्रण में क्रांति ला दी। 1994 में PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) के सफल प्रक्षेपण ने भारत को अंतरिक्ष लॉन्चिंग की तकनीक में अग्रणी बना दिया। 2008 में चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी की खोज कर भारत को वैश्विक वैज्ञानिक मानचित्र पर प्रतिष्ठित कर दिया। 2014 में मंगलयान (Mangalyaan या MOM) के माध्यम से भारत विश्व का पहला ऐसा देश बना जिसने पहली ही कोशिश में मंगल पर यान भेजा और वह भी सबसे कम लागत में। 2023 में चंद्रयान-3 की सफलता ने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बना दिया। और अब 2025 में गगनयान मिशन के ज़रिए भारत अपना पहला मानव को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर चुका है। ISRO अब केवल एक स्पेस एजेंसी नहीं बल्कि भारत की तकनीकी क्षमता, नवाचार और आत्मविश्वास का प्रतीक बन चुका है।

परमाणु शक्ति और ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत ने प्रारंभ से ही शांति-उद्देश्यों के लिए इस तकनीक का विकास किया। 1974 में पोखरण-I और 1998 में पोखरण-II परीक्षणों के माध्यम से भारत ने दुनिया को अपनी आत्मनिर्भर परमाणु शक्ति का परिचय दिया। ‘अटॉमिक एनर्जी एक्ट’ के तहत भारत ने BARC, IGCAR जैसे संस्थानों के माध्यम से स्वदेशी तकनीक से नाभिकीय रिएक्टर बनाए। 2020 के दशक में भारत ने Thorium आधारित रिएक्टरों पर भी अनुसंधान तेज किया है, जो भारत के विशाल थोरियम भंडार को देखते हुए भविष्य में ऊर्जा संकट का समाधान बन सकते हैं। वर्तमान में देश की कुल ऊर्जा का लगभग 3% परमाणु स्रोतों से आता है और इसमें उल्लेखनीय विस्तार की योजना बनाई जा रही है।

सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटल क्रांति का नेतृत्व 1990 के दशक में जब भारत ने आर्थिक उदारीकरण किया, तब सूचना प्रौद्योगिकी (IT) को विशेष बढ़ावा मिला। बैंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और नोएडा जैसे शहर वैश्विक IT हब में बदल गए। TCS, Infosys, Wipro, HCL जैसी कंपनियों ने भारत को ‘सॉफ्टवेयर सुपरपावर’ बना दिया। Y2K संकट से लेकर कोविड महामारी तक भारतीय IT पेशेवरों ने वैश्विक सिस्टम को संबल प्रदान किया। ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम के तहत भारत में ई-गवर्नेंस, डिजिटल भुगतान, आधार कार्ड, और डिजिलॉकर जैसी सेवाएं आम आदमी तक पहुँचीं। UPI, RuPay और BHIM जैसी स्वदेशी तकनीकों ने डिजिटल लेनदेन को आसान और भरोसेमंद बनाया। आज भारत में प्रति दिन 40 करोड़ से अधिक डिजिटल ट्रांज़ैक्शन हो रहे हैं – यह चीन और अमेरिका से भी आगे है।

रक्षा अनुसंधान और स्वदेशी हथियार प्रणाली DRDO (Defence Research and Development Organisation) की स्थापना 1958 में हुई और तब से यह भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्यरत है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत DRDO ने अग्नि, पृथ्वी, ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें, तेजस लड़ाकू विमान, अर्जुन टैंक, और अत्याधुनिक रडार व ड्रोन्स विकसित किए हैं। 2023 में INS विक्रांत जैसे स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर के जलावतरण ने नौसेना को नई शक्ति दी। भारत आज रक्षा निर्यातक देशों में भी सम्मिलित हो चुका है। UAVs, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट और साइबर वॉरफेयर टेक्नोलॉजी में भारत अब विश्व के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है। ISRO और DRDO के सहयोग से अंतरिक्ष आधारित निगरानी और मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी भारत में विकसित हो रहे हैं।

जैव प्रौद्योगिकी और वैक्सीन क्षेत्र में नेतृत्व कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने अपनी जैव तकनीकी ताकत का वैश्विक परिचय दिया। भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ने कोविड वैक्सीन कोवाक्सिन और कोविशील्ड का निर्माण कर न केवल देश को सुरक्षित किया बल्कि ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल के तहत दर्जनों देशों को मुफ्त टीके भेजे। बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (BIRAC) और DBT ने अनेक स्टार्टअप्स और बायोटेक इनोवेशन को सहायता दी है। इंसुलिन, वैक्सीन, और जेनेटिक डिसऑर्डर के लिए भारत अब अपनी खुद की तकनीकों पर काम कर रहा है। जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) और जीनोम सीक्वेंसिंग में भी भारत अग्रणी बन रहा है।

कृषि विज्ञान और खाद्य तकनीक में आत्मनिर्भरता हरित क्रांति के बाद भारत में कृषि अनुसंधान संस्थानों ने उन्नत बीज, रोग प्रतिरोधक किस्में और जल संरक्षण तकनीकों पर जोर दिया। आईसीएआर (ICAR) की निगरानी में भारत ने गेंहू, चावल, दालें और बागवानी में विश्व स्तर पर अग्रणी स्थान प्राप्त किया। 2020 के बाद ‘डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन’, ड्रोन आधारित खेती, सैटेलाइट मॉनिटरिंग, और किसान मोबाइल ऐप्स ने कृषि को तकनीकी बना दिया है। जैविक खेती, जीएम फसलें और सटीक कृषि (Precision Agriculture) पर भी अनुसंधान तेज किया गया है।

स्वास्थ्य तकनीक और आयुष का पुनरुद्धार AIIMS, ICMR और CSIR के संस्थानों ने स्वास्थ्य अनुसंधान को नई ऊंचाई दी है। डिजिटल हेल्थ मिशन, टेलीमेडिसिन, और e-Sanjeevani जैसी पहलें ग्रामीण क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचा रही हैं। आयुर्वेद, योग और सिद्ध पद्धति पर आधारित अनुसंधान को भी प्रोत्साहन मिला है। आयुष मंत्रालय ने SWASTH, AYUSHMANSA, और आयुष ग्रिड जैसी योजनाओं के तहत विज्ञान आधारित परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को सुदृढ़ किया है।

नवाचार, स्टार्टअप्स और भविष्य की तकनीकों की दिशा में भारत 2025 तक भारत में 1 लाख से अधिक स्टार्टअप्स पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें से सैकड़ों यूनिकॉर्न बन चुके हैं। NITI Aayog के AIM (Atal Innovation Mission), स्टार्टअप इंडिया, और Tinkering Labs जैसी योजनाओं ने युवाओं को वैज्ञानिक नवाचार की दिशा में प्रेरित किया है। AI, ब्लॉकचेन, क्वांटम कंप्यूटिंग, 5G और अब 6G पर भारत में तेजी से कार्य हो रहा है। Bhabha Atomic Centre, IITs, IISERs, और NISER जैसे संस्थान भविष्य की तकनीकों पर अनुसंधान कर रहे हैं।

विज्ञान संचार और जनमानस में वैज्ञानिक चेतना विज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय, विज्ञान प्रसार, विज्ञान भारती, और वैज्ञानिक पत्रिकाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत सरकार ने हर साल 28 फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’, 11 मई को ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ और पूरे वर्ष ‘विज्ञान मेले’ आयोजित कर विज्ञान को जीवन से जोड़ने का प्रयास किया है।

विज्ञान से आत्मनिर्भर और वैश्विक भारत का निर्माण 15 अगस्त 2025 को जब हम आज़ादी के 79 वर्ष पूर्ण कर रहे हैं, तो यह गर्व का विषय है कि भारत अब विज्ञान के क्षेत्र में केवल अनुगामी नहीं, बल्कि मार्गदर्शक बन चुका है। अंतरिक्ष से लेकर समुद्र तक, परमाणु से लेकर डेटा तक – भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियाँ हमें यह दिखाती हैं कि यदि नीति, नियत और नवाचार का मेल हो, तो विकास अवश्यंभावी है। भारत आज ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना से विज्ञान का उपयोग संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए कर रहा है। यही स्वतंत्र भारत की वैज्ञानिक चेतना की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

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