Home » National » भरोसे के नाम: भारतीय मुस्लिम डॉक्टरों की नई पीढ़ी, जो सेवा को बना रही है इबादत

भरोसे के नाम: भारतीय मुस्लिम डॉक्टरों की नई पीढ़ी, जो सेवा को बना रही है इबादत

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

डॉक्टर बनना अब ख्वाब नहीं, हकीकत है – और ये नाम इसकी ज़िंदा मिसाल हैं

एक समय था जब डॉक्टर बनने का सपना मुस्लिम समाज में या तो धन की सीमाओं से टकरा कर टूट जाता था, या फिर मज़हबी सोच के नाम पर महिलाओं को दबा दिया जाता था। लेकिन आज वही समाज अपने डॉक्टरों पर गर्व कर रहा है — और उनमें से चंद नाम हैं: डॉ. काजी गजवान अहमद, डॉ. मोहम्मद एहसान उज़ ज़मान, डॉ. मजीद तालिकोटी, डॉ. कौसर उस्मान, डॉ. सैयद अल्तहफ, डॉ. आफरीन मुबीन शेख, डॉ. आसिफ अहमद निजामी, डॉ. अमीर जहां, डॉ. जैनब रहमान, डॉ. सोहेल अब्बास, डॉ. शमीम अंसारी, डॉ. सुहैब खान, डॉ. तसनीम रिज़वी और डॉ. रईस अहमद खान।

इनमें से कोई कैंसर स्पेशलिस्ट है, कोई हार्ट ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट, कोई गायनोलॉजिस्ट, कोई पीडियाट्रिशियन, तो कोई ऑर्थोपेडिक्स और न्यूरो सर्जरी का माहिर। ये डॉक्टर देश के टॉप सरकारी और प्राइवेट संस्थानों में कार्यरत हैं, और कई तो अब ग्लोबल हेल्थ इनीशिएटिव्स का हिस्सा भी बन चुके हैं। ये साबित करते हैं कि अब मुस्लिम डॉक्टर न केवल मरीजों को बचा रहे हैं, बल्कि समाज को भी एक नई सोच दे रहे हैं।

हिजाब में सेवा – जब नज़ाकत और विशेषज्ञता साथ चलें

जहाँ स्टीरियोटाइप्स अक्सर मुस्लिम महिलाओं को सिर्फ घरेलू दायरे में देखने की कोशिश करते हैं, वहीं चेन्नई की डॉ. सारा इलियास, पटना की डॉ. नजमा फातिमा, और लखनऊ की डॉ. हलीमा परवीन जैसे नाम उस सोच को ध्वस्त कर रहे हैं। ये महिलाएं हिजाब में ऑपरेशन थिएटर चलाती हैं, ओपीडी संभालती हैं और गाँव-गाँव जाकर स्वास्थ्य सेवाएं देती हैं। वे न केवल प्रोफेशनल हैं, बल्कि मुस्लिम समाज की लड़कियों के लिए प्रेरणा भी हैं। हिजाब इनकी पहचान है, लेकिन पेशेवर सफलता इनकी पहचान का विस्तार बन चुकी है।

टेक्नोलॉजी और इनोवेशन – इलाज से आगे की उड़ान

पटना के डॉ. मुश्ताक रहमान द्वारा विकसित AI आधारित हेल्थ प्लेटफॉर्म ‘Sehati.AI’ अब कई राज्यों के सरकारी अस्पतालों में रोग पहचान और सलाह में मदद कर रहा है। वहीं केरल के डॉ. तौसीफ खान ने ग्रामीण इलाकों के लिए पोस्ट-सर्जरी केयर ट्रैकिंग ऐप तैयार किया है। दिल्ली की डॉ. रुबीना आरिफ ने मदर एंड चाइल्ड डिजिटल केयर नेटवर्क की शुरुआत की, जिससे हजारों महिलाओं को गर्भकाल और प्रसव की जानकारी समय पर मिल रही है। इन सबका मकसद साफ़ है – इलाज को सस्ता, तेज़, और हर इंसान की पहुँच में लाना।

सेवा का विस्तार – गाँव, गलियों और झुग्गियों तक

भोपाल की आफरीन युसूफ ने सिर्फ खुद को फिजियोथेरेपिस्ट नहीं बनाया, बल्कि ‘आपा सेवा मिशन’ के ज़रिए 45 मुस्लिम युवतियों को हेल्थकेयर ट्रेनिंग दी और उन्हें नौकरियों से जोड़ा। लखनऊ की डॉ. फ़रीन नसीम हर शुक्रवार को मोबाइल यूनिट लेकर स्लम इलाकों में जाती हैं और बुजुर्गों की फ्री जांच करती हैं। ये नज़ारे आज आम हो रहे हैं – डॉक्टर अब अस्पताल की चारदीवारी से निकलकर समाज की हर गली तक पहुँच रहे हैं।

फ्री हेल्थ कैंप्स – सेवा की ज़कात में मिला है भरोसा

दिल्ली की डॉ. उम्मे सलमा ने ‘सेहत की रौशनी’ पहल के तहत झुग्गियों में हफ्तावार हेल्थ कैंप लगाए, जिसमें अब तक 6000 महिलाएं और 3000 बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं। मुस्लिम डॉक्टरों की टीम अब न सिर्फ इलाज करती है, बल्कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने, महिलाओं को पोषण की जानकारी देने और बच्चों का टीकाकरण सुनिश्चित करने में भी लगी है। उनके लिए यह सिर्फ पेशा नहीं – “इल्म की जकात” और समाज की इबादत है।

आँकड़े गवाही दे रहे हैं – ये बदलाव केवल बातें नहीं

2025 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मेडिकल कॉलेजों में मुस्लिम छात्रों की संख्या में 42% वृद्धि हुई है। 2024 की NEET परीक्षा में टॉप 500 में 34 मुस्लिम छात्र-छात्राएं शामिल रहे। देश के 10 से अधिक राज्यों में मुस्लिम हेल्थ स्टार्टअप्स को सरकारी ग्रांट और CSR सहयोग मिला है। यह संकेत है कि अब मुस्लिम समाज न सिर्फ इलाज कर रहा है, बल्कि हेल्थकेयर सिस्टम का भविष्य तैयार कर रहा है।

सेवा, संवेदना और संकल्प – मुस्लिम डॉक्टरों की नई सोच का त्रिकोण

आज के मुस्लिम डॉक्टर सिर्फ मरीज का इलाज नहीं करते – वे उससे जुड़ते हैं, उसे समझते हैं और समाज को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी भी उठाते हैं। उनकी डिग्री अब सिर्फ ज्ञान का प्रमाणपत्र नहीं, बल्कि समर्पण की शपथ बन चुकी है। वे जान चुके हैं कि स्टेथोस्कोप की हर धड़कन में एक उम्मीद होती है, और हर सफल इलाज से उनके मजहब को नहीं, उनकी इंसानियत को इबादत मिलती है।

भारतीय मुस्लिम डॉक्टरों की यह पीढ़ी अब माइनॉरिटी नहीं, बल्कि “मेजर कंट्रीब्यूटर” है – स्वास्थ्य सेवा में, समाज निर्माण में और आने वाली नस्लों को उम्मीद देने में। यह सिर्फ पेशा नहीं – एक ख़ामोश क्रांति है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *