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कश्मीर और संतरा: ठंडी वादियों में खट्टे-मीठे फल की खेती और व्यापार की नई इबारत

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जब हम कश्मीर की बागवानी की बात करते हैं, तो आमतौर पर सेब, अखरोट और केसर जैसे उत्पाद सबसे पहले ज़ेहन में आते हैं। लेकिन अब घाटी में एक नया कृषि अध्याय लिखा जा रहा है — संतरे (Orange / Citrus) की खेती का। पहले यह सोचा जाता था कि संतरे जैसे फल केवल गर्म या उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों, जैसे कि नागपुर, असम, सिक्किम या मध्य प्रदेश में ही उग सकते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन, वैज्ञानिक नवाचार और बागवानी विस्तार कार्यक्रमों की मदद से अब जम्मू-कश्मीर के कुछ विशेष इलाकों में संतरे की खेती सफलतापूर्वक की जा रही है। यह परिवर्तन राजौरी, पुंछ, उधमपुर, कठुआ, रियासी, और डोडा जैसे क्षेत्रों में साफ़ देखा जा सकता है, जहाँ सर्दियों की ठंडक और ऊँचाई संतरे की कुछ खास किस्मों के लिए उपयुक्त साबित हो रही है।

कश्मीर में संतरे की खेती: संभावनाओं का उगता सूरज

जम्मू संभाग और दक्षिणी कश्मीर के कुछ हिस्सों में वैज्ञानिकों और बागवानी विभाग के सहयोग से सिट्रस प्लांटेशन शुरू किया गया है। यहाँ सतगुड़ा, नागपुर संतरा, किन्नू और मोसंबी जैसी किस्मों की पायलट प्रोजेक्ट के तहत खेती की जा रही है।

राजौरी और पुंछ जैसे सीमावर्ती जिलों में ऐसी ढलानदार भूमि है, जहाँ जलनिकासी अच्छी होती है, और गर्मियों में हल्का तापमान संतरे की खेती के लिए मुफीद है। इन इलाकों में सीमित सिंचाई संसाधनों के बावजूद संतरे की फसलें ज़मीन की जलधारण क्षमता और मौसम के सहयोग से धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही हैं।

कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) द्वारा किसानों को बीज वितरण, रोग प्रबंधन, ग्राफ्टिंग तकनीक, और फल संरक्षण के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इससे किसानों का उत्साह बढ़ा और संतरे की खेती को नकदी फसल के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।

संतरे का व्यापार और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

हालांकि कश्मीर में संतरे का उत्पादन अभी प्रारंभिक स्तर पर है, लेकिन व्यापारिक दृष्टिकोण से यह बेहद संभावनाशील है। मौजूदा समय में संतरे की मांग घरेलू उपभोग, जूस उत्पादन, कैंडी और बेकरी उद्योग में लगातार बढ़ रही है। यदि राज्य स्तर पर संतरे की प्रोसेसिंग यूनिट्स, कोल्ड स्टोरेज, और पैकेजिंग सुविधाओं का विकास किया जाए, तो कश्मीर में संतरे का व्यापार एक महत्वपूर्ण बागवानी उत्पाद के रूप में स्थापित हो सकता है।

स्थानीय बाजारों जैसे उधमपुर, जम्मू, श्रीनगर और अनंतनाग में संतरे की मांग बनी रहती है। यदि किसानों को संगठित कर FPOs (Farmer Producer Organizations) के तहत जोड़ा जाए, तो वे खुद अपने ब्रांड के नाम से संतरे बेच सकते हैं, जिससे बिचौलियों की भूमिका घटेगी और मुनाफा सीधे किसानों को मिलेगा।

चुनौतियां

कश्मीर में संतरे की खेती को लेकर कुछ तकनीकी और व्यावसायिक चुनौतियाँ भी हैं। मौसम में अचानक गिरावट, पाले की मार, कीट और रोग नियंत्रण की सीमित जानकारी, और प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी मुख्य समस्याएं हैं। इसके अतिरिक्त, फलों के परिपक्व होने के समय पर अचानक बर्फबारी या बारिश उत्पादन को नुकसान पहुँचा सकती है। व्यापार की दृष्टि से सबसे बड़ी चुनौती स्थिर आपूर्ति श्रृंखला और बाजार तक ताजे फल पहुँचाने की है।

समाधान और आगे की रणनीति

  1. जलवायु-उपयुक्त किस्मों का चयन और उनकी रोपाई
  1. ICAR, SKUAST-K और KVKs के साथ साझेदारी में प्रशिक्षण कार्यक्रम
  1. संतरे की वैल्यू एडिशन यूनिट्स (जूस, कैंडी, स्किन के प्रोडक्ट्स आदि)
  1. कृषक उत्पादक कंपनियों (FPCs) के माध्यम से निर्यात की संभावनाएं
  1. स्थानीय ब्रांड निर्माण और GI टैग के लिए प्रयास

कश्मीर में संतरे की खेती एक नई क्रांति की दस्तक है। यह सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि घाटी की बदलती कृषि सोच, वैज्ञानिक नवाचार और आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता कदम है। यदि सरकार, कृषि विशेषज्ञ, और किसान मिलकर इस दिशा में निवेश करें, तो आने वाले समय में कश्मीर का संतरा भी “कश्मीरी सेब” की तरह ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बन सकता है। यह बदलाव न केवल कृषि की विविधता को बढ़ाएगा, बल्कि सीमावर्ती जिलों में रोज़गार, पोषण और महिला सशक्तिकरण का नया अध्याय भी लिखेगा।

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