जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती जिले पुंछ को अक्सर सिर्फ सुरक्षा और सामरिक दृष्टिकोण से देखा जाता है, लेकिन यह ज़िला अब एक नई कहानी लिख रहा है – कृषि समृद्धि की कहानी। समुद्रतल से ऊँचाई, पहाड़ी और अर्ध-शुष्क भौगोलिक संरचना, सीमित सिंचाई साधनों और LOC के तनावपूर्ण माहौल के बावजूद पुंछ का किसान अपने परिश्रम, जिजीविषा और बदलती सरकारी नीतियों की बदौलत कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन ला रहा है। पुंछ की भूमि परंपरागत रूप से मक्का, गेहूं, बाजरा, चना, सरसों जैसी फसलों की खेती के लिए जानी जाती रही है, लेकिन हाल के वर्षों में यहाँ की कृषि विविधता और नवाचार ने विशेषज्ञों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। अब यहाँ के किसान न केवल दलहन, तिलहन और मौसमी सब्जियाँ उगा रहे हैं, बल्कि बागवानी के क्षेत्र में भी उन्होंने सेब, अखरोट, नाशपाती और आड़ू जैसी नकदी फसलों की ओर रुख किया है।
सरकार द्वारा पुंछ जिले में कृषि के विकास हेतु उठाए गए कदमों में कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) पुंछ की भूमिका अहम रही है। यह केंद्र किसानों को फसल चक्र, बीज चयन, कीटनाशक नियंत्रण, जैविक खेती, पॉलीहाउस तकनीक और जल संरक्षण के उपायों पर नियमित प्रशिक्षण दे रहा है। इसके साथ-साथ किसानों को आधुनिक कृषि यंत्र, ट्रैक्टर, थ्रेशर, स्प्रिंकलर, और ड्रिप सिंचाई जैसी सुविधाएं सब्सिडी पर दी जा रही हैं, जिससे खेती की लागत घट रही है और उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है। हाल ही में कृषि मंत्री जाविद डार ने फलों के लिए विशेष बीमा योजना शुरू करने की घोषणा की है, जो प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई में किसानों के लिए सुरक्षा कवच साबित होगी। इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकार द्वारा PM-Fasal Bima Yojana, किसान क्रेडिट कार्ड (KCC), और कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के ज़रिए किसानों को आर्थिक और तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ठोस प्रयास किए जा रहे हैं।
हालाँकि चुनौतियाँ अभी भी कम नहीं हैं। सीमावर्ती क्षेत्र में खेती करने वाले किसानों को LOC के तनाव, अघोषित गोलीबारी, मौसम की मार, और विपणन की कमी जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। सिंचाई की सुविधाएं सीमित हैं, और आधुनिक कृषि तकनीकें अब भी प्रत्येक किसान तक नहीं पहुँच पाई हैं। सड़क नेटवर्क और कोल्ड स्टोरेज की कमी के चलते किसान अक्सर अपनी उपज को उचित दाम पर नहीं बेच पाते। फिर भी, इन चुनौतियों के बीच पुंछ का कृषक वर्ग सरकार की योजनाओं और अपनी मेहनत के बल पर न सिर्फ टिके रहने में सफल रहा है, बल्कि धीरे-धीरे आगे भी बढ़ रहा है।
अब समय है कि पुंछ की कृषि शक्ति को राष्ट्रीय विमर्श में लाया जाए। सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘गार्डन बेल्ट’ का विकास कर बागवानी को बढ़ावा दिया जाए, किसानों को FPO (Farmer Producer Organizations) के माध्यम से संगठित कर बाजार से जोड़ा जाए, और ‘फार्म टू मार्केट’ सड़कों के विकास में प्राथमिकता दी जाए। साथ ही युवाओं को एग्री स्टार्टअप्स के लिए प्रोत्साहित कर खेती को उद्यमिता का रूप दिया जाए। पुंछ के गांवों में कृषि पर्यटन (Agri-Tourism) का विकास कर राज्य की संस्कृति, खेती-बाड़ी और सीमांत जीवन को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाया जा सकता है।
पुंछ अब सिर्फ सुरक्षा का ही नहीं, बल्कि विकास और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन रहा है। यदि सरकार, समाज और किसान मिलकर इस दिशा में प्रयासरत रहें, तो वह दिन दूर नहीं जब पुंछ जिला जम्मू-कश्मीर की आर्थिक रीढ़ के रूप में जाना जाएगा। यह केवल एक ज़िले की कृषि की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक सीमावर्ती समाज के पुनरुत्थान, संघर्ष और संकल्प की प्रेरणादायक गाथा है – जो यह बताती है कि जब नीति, नीयत और प्रयास एक दिशा में हों, तो सीमाएं भी समृद्धि के रास्ते खोल सकती हैं।