संकेतों की राजनीति में लुप्त हुए दो दिग्गज, न सम्मान, न विदाई — क्या भारतीय क्रिकेट इस साज़िशी दौर को झेल पाएगा? 2025 का यह साल भारतीय क्रिकेट के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज होगा। दो महाबली, दो स्तंभ — विराट कोहली और रोहित शर्मा — टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह गए, लेकिन जिस तरह से यह विदाई हुई, उसने न सिर्फ लाखों फैंस को दुखी किया, बल्कि पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता को भी उजागर कर दिया। न विदाई मैच, न बोर्ड का भावनात्मक संदेश, न मीडिया ब्रीफिंग — सिर्फ खामोशी, इशारे और खिलाड़ियों की आंखों में छलकता दर्द। एक ऐसा अंत, जो गौरवशाली नहीं, बल्कि अपमानजनक साजिश की तरह महसूस हुआ।
सूत्रों के अनुसार, बीसीसीआई ने इंग्लैंड दौरे से पहले कप्तान रोहित शर्मा को यह संकेत दे दिया था कि अब उनकी कप्तानी खत्म मानी जाए और उनकी टीम में जगह पक्की नहीं रही। यह संकेत एक खिलाड़ी के मनोबल को तोड़ने के लिए काफी था — वह खिलाड़ी जो भारत को 2023 वनडे वर्ल्ड कप के फाइनल में ले गया, जिसने टीम को लगातार 10 मैच जितवाए, जिसने विदेशी सरज़मीं पर टेस्ट क्रिकेट में ओपनर के रूप में भारत को मजबूती दी, और हाल ही में भारत को T20 वर्ल्ड कप जितवाया। जब ऐसे खिलाड़ी को कोई सम्मान नहीं दिया जाता, तब यह केवल ‘तकनीकी फैसला’ नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक गिरावट बन जाती है — जहाँ चापलूसी और ‘ब्रैंडिंग’ अनुभव और समर्पण पर भारी पड़ जाती है।
रोहित शर्मा ने टेस्ट क्रिकेट में 59 मैच खेले, 52.92 की औसत से 3,974 रन बनाए और 12 शतक लगाए। वह घरेलू और विदेशी पिचों पर भारत के सबसे भरोसेमंद ओपनर बने। कप्तानी में उन्होंने भारत को 2023 में वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल तक पहुँचाया और ICC रैंकिंग में भारत को #1 बनाया। टी20 वर्ल्ड कप 2024 की जीत ने उनके नेतृत्व की मुहर और पुख्ता कर दी। बावजूद इसके, उन्हें एक तरह से बाहर कर दिया गया — ऐसा रवैया जिसने उनके आत्मसम्मान को तोड़ दिया।
स्टार स्पोर्ट्स को दिए इंटरव्यू में रोहित का बयान आज भी क्रिकेट प्रेमियों के दिलों को चीर रहा है: “हमने ये कप्तानी थाली में परोसकर नहीं पाई। टेस्ट क्रिकेट में अपना नाम बनाने के लिए पसीना बहाना पड़ता है।” यह केवल आत्मगौरव नहीं था, यह उस चोट की परछाईं थी जो उन्हें सिस्टम से मिली। वही सिस्टम जिसके लिए उन्होंने सब कुछ दिया, वह सिस्टम आज उन्हें पहचानने से इनकार कर रहा था।
वहीं विराट कोहली ने 123 टेस्ट में 9,230 रन बनाए, 30 शतक जड़े और कप्तानी में 68 टेस्ट में से 40 में भारत को जीत दिलाई। यह उपलब्धि उन्हें भारत का सबसे सफल टेस्ट कप्तान बनाती है। उनकी कप्तानी में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को दो बार उसी की ज़मीन पर हराया — एक ऐसी उपलब्धि जिसे हासिल करने में दशकों लगे थे। विराट की बल्लेबाज़ी और नेतृत्व दोनों ने एक पीढ़ी को प्रेरणा दी। लेकिन जब उन्हें आखिरी मैच खेलने का मौका तक नहीं दिया गया, तो यह क्रिकेट से ज्यादा ‘संवेदनहीनता’ का संदेश बन गया।
विराट कोहली ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा: “14 साल पहले जब पहली बार टेस्ट की सफेद जर्सी पहनी, तब सोचा नहीं था कि यह सफर इतना कुछ सिखाएगा… मैंने इसे अपना सब कुछ दिया और इसने मुझे कल्पना से कहीं अधिक लौटाया… मैं जा रहा हूँ, दिल में अपार आभार लेकर — इस खेल के लिए, उन लोगों के लिए जिनके साथ मैदान साझा किया, और उन सभी के लिए जिन्होंने मुझे देखा, सराहा। #269, साइनिंग ऑफ़।”
ऑस्ट्रेलिया दौरे से माहौल में बदलाव दिखने लगा था। ड्रेसिंग रूम का माहौल अब पहले जैसा नहीं रहा। युवा खिलाड़ियों का व्यवहार बदल चुका था, उनमें वह विनम्रता नहीं थी जो विराट-रोहित जैसे सीनियर खिलाड़ियों के सामने दिखाई देती थी। कोच के रूप में गौतम गंभीर के तेवर पहले दिन से सख्त और ‘नो-नॉनसेंस’ वाले थे, पर उनमें वह संवेदनशीलता नदारद दिखी जो एक टीम को जोड़कर रखती है। गंभीर की नीति अनुशासन के नाम पर आक्रामक दमन बन गई, जिसमें अनुभव को अहमियत नहीं दी गई।
दोनों खिलाड़ियों के संन्यास के बाद दुनिया भर से सराहना और भावनात्मक संदेश आए। उनके आदर्श सचिन तेंदुलकर, कोच गंभीर, भारतीय सेना के DGMO लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई और UK के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक तक ने उन्हें सलाम किया। सोशल मीडिया भावनाओं से भरा पड़ा था, लेकिन बीसीसीआई की ओर से अब तक कोई औपचारिक विदाई समारोह तक की घोषणा नहीं हुई है। यह मौन बहुत कुछ कहता है — और वह कुछ, बहुत कड़वा है।
सवाल केवल विराट और रोहित की विदाई का नहीं है, सवाल उस संस्कृति का है जो अपने ही नायकों को चुपचाप किनारे लगा देती है। क्या यह रवैया भारतीय क्रिकेट को भीतर से खोखला नहीं कर देगा? क्या यह वही खेल है जिसमें भावनाओं, त्याग और समर्पण को सर्वोच्च माना जाता था?
क्या विराट और रोहित जैसे खिलाड़ी, जो अब भी वनडे खेल रहे हैं, 2027 वर्ल्ड कप की टीम में सिर्फ ‘उम्र’ की वजह से जगह नहीं पाएंगे, भले ही वे रन बनाते रहें? क्या चोटों से जूझते जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद शामी 2027 तक खुद को फिट रख पाएंगे? और क्या शुभमन गिल, केएल राहुल, रुतुराज गायकवाड़ जैसी नई पीढ़ी वो निरंतरता, अनुभव और जिम्मेदारी ले पाएगी, जो इन दिग्गजों ने सालों तक निभाई?
भारतीय क्रिकेट अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ केवल रन, स्ट्राइक रेट या फिटनेस नहीं, बल्कि सिस्टम का चरित्र निर्णायक होगा। क्या यह सिस्टम खिलाड़ियों को सम्मान और विदाई देने वाला रहेगा, या केवल ‘मैनेज करने योग्य’ चेहरे तलाशता रहेगा?
बात केवल विराट और रोहित की विदाई की नहीं है, यह उस क्रिकेट संस्कृति की भी बात है जो बड़े योगदान देने वालों को अंततः खामोशी में ढकेल देती है। सचिन तेंदुलकर भी जबरदस्ती संन्यास के लिए झोंक दिए गए थे लेकिन उनका कम से कम इतना सम्मान हुआ कि आखिरी टेस्ट सीरीज दी गई, और अपने होम ग्राउंड मुंबई के वानखेड़े मैदान में करियर का समापन हुआ, सम्मानित किया गया, उन्हें स्पीच द्वारा लोगों को धन्यवाद देने का मौका मिला।
लेकिन राहुल द्रविड, वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, हरभजन सिंह, गौतम गंभीर, मुनाफ पटेल, जाहिर खान समेत कई मैच विजेताओं के साथ जो हुआ वो शर्मनाक था, जिन्हें विदाई के रूप में आखिरी मैच नहीं नसीब हुआ। सहवाग जैसा मैच विजेता एक आखिरी मैच रिटायरमेंट के लिए अपने होमग्राउंड दिल्ली में मांगता रहा लेकिन उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल दिया गया। यह सिर्फ विदाई नहीं, एक चेतावनी है — भारतीय क्रिकेट के लिए। महान खिलाड़ियों का अपमान बीसीसीआई की गंदी मानसिकता और राजनीति को दर्शाती है।
2012 में बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के दौरान अपना अंतिम टेस्ट खेलने के बाद, द्रविड़ ने बिना किसी विदाई मैच के संन्यास ले लिया। सहवाग को भी बिना विदाई मैच के संन्यास लेना पड़ा, उन्होंने 2015 में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की थी। गंभीर ने भी बिना विदाई मैच खेले ही संन्यास ले लिया। युवराज सिंह ने 2019 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की, बिना किसी विदाई मैच के। महेंद्र सिंह धोनी और सुरेश रैना को भी बिना खेले संन्यास लेना पड़ा था। रोहित शर्मा और विराट कोहली दोनों ने हाल ही में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लिया, बिना किसी विदाई मैच के। इन मैच विजेताओं के साथ ऐसी बदसलूकी और बेइज्जती क्रिकेट जगत के लिए शर्मनाक है।