2014 और उससे पहले का कश्मीर – अशांति, हड़तालें, कर्फ्यू और जली हुई किताबों की तस्वीरों से भरा हुआ था। छात्र-छात्राएं कभी स्कूल तक नहीं पहुँच पाते थे, और जो पढ़ भी लेते थे, उनके पास करियर की कोई स्पष्ट दिशा नहीं थी। शिक्षा एक बाधा लगती थी, प्रेरणा नहीं। लेकिन 2025 के इस नए कश्मीर में हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। अब किताबें जलती नहीं, बल्कि दीवारों पर टंगी होती हैं, प्रयोगशालाओं में खुलती हैं और डिजिटल स्क्रीन पर आगे बढ़ती हैं। आज का कश्मीरी छात्र सिर्फ ज्ञान के लिए नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और राष्ट्र निर्माण के लिए पढ़ रहा है। उसका स्वाभिमान अब शांति से जुड़ा है, पहचान राष्ट्र से और सपना एक समृद्ध भविष्य से।
शिक्षा की रोशनी घाटी तक: विश्वविद्यालयों से लेकर पहाड़ी स्कूलों तक
मोदी सरकार की प्राथमिकता रही है कि कश्मीर के हर बच्चे को शिक्षा की पहुँच मिले, चाहे वह बनिहाल की पहाड़ी में हो या हंदवाड़ा के किसी दूरस्थ गांव में। श्रीनगर और जम्मू में आधुनिकतम AIIMS, IIM और नए सरकारी मेडिकल कॉलेज सिर्फ संस्थान नहीं, कश्मीर के युवाओं का सपना हैं। PM SHRI स्कूलों और डिजिटल स्मार्ट कक्षाओं के माध्यम से अब हजारों छात्र STEM शिक्षा से जुड़ रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर, बाबा गुलाम शाह बादशाह यूनिवर्सिटी, और क्लस्टर यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों में छात्रों की उपस्थिति में अब अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। सबसे अहम, शिक्षकों की संख्या और गुणवत्ता में भी बड़ा सुधार हुआ है। शिक्षा अब कश्मीर में रोज़मर्रा का हिस्सा बन चुकी है – किताबें यहाँ अब क्रांति की नहीं, समर्पण की भाषा बोल रही हैं।
रोजगार की नई उम्मीदें: हुनर और अवसर का संगम
एक समय था जब कश्मीर के युवाओं के लिए रोजगार का मतलब या तो सरकारी नौकरी था या फिर हताशा। लेकिन आज, केंद्र सरकार की ‘मिशन यूथ’, ‘परवाज़’, ‘तेजस्विनी’, ‘Mumkin’ जैसी योजनाओं ने युवाओं को नौकरी खोजने वाला नहीं, नौकरी देने वाला बना दिया है। Jammu & Kashmir Employment Portal पर 3.70 लाख से अधिक युवाओं का पंजीकरण इस बात का प्रमाण है कि अब कश्मीर के युवा संभावनाओं को पहचान रहे हैं। Rozgar Mela में नियुक्ति पत्र से लेकर स्टार्टअप इनक्यूबेटरों तक, अब हर मंच पर कश्मीरी युवाओं की उपस्थिति है। अब उन्हें सिर्फ सरकारी नौकरी की चिंता नहीं—उनकी नज़र व्यापार, डिजिटल मार्केटिंग, टूरिज्म मैनेजमेंट और फार्मा इंडस्ट्री तक है।
स्वास्थ्य सेवाओं में युवाओं की भागीदारी: सेवा से नेतृत्व तक
कश्मीर का युवा अब सिर्फ डॉक्टर बनने का सपना नहीं देखता, वह स्वास्थ्य व्यवस्था का अंग बन चुका है। SEHAT योजना के तहत हजारों युवाओं ने आयुष्मान कार्ड के जरिए अपने घरों में इलाज संभव होते देखा है। मेडिकल छात्रों के लिए AIIMS जम्मू और श्रीनगर में आधुनिक लैब्स और सर्जिकल ट्रेनिंग सुविधाएं एक नई क्रांति का संकेत हैं। कश्मीरी युवतियां अब नर्सिंग, फार्मेसी और पैरामेडिकल सेवाओं में उत्कृष्टता प्राप्त कर रही हैं। ग्रामीण इलाकों में हेल्थ वैन चलाने वाले स्वयंसेवकों की टीम में अधिकतर युवा हैं, जो टीकाकरण से लेकर टीबी जांच तक हर मोर्चे पर सक्रिय हैं। स्वास्थ्य अब उनके लिए नौकरी नहीं, मिशन बन चुका है।
खेलों में चमकते सितारे: बर्फ़ से भरती ताक़त, मैदान से बनती पहचान
गुलमर्ग आज सिर्फ एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन नहीं, भारत की ‘विंटर स्पोर्ट्स कैपिटल’ बन चुका है। कश्मीर के लड़के-लड़कियाँ अब स्कीइंग, स्नो बोर्डिंग, आइस हॉकी, फ्री स्टाइल और मार्शल आर्ट्स में देश के लिए पदक ला रहे हैं। Khelo India Yuva Games, राष्ट्रीय युवा महोत्सव और खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी स्पर्धाओं में कश्मीर के युवाओं की मौजूदगी एक बड़े बदलाव का संकेत है। पहले जहाँ खेल को समय की बर्बादी समझा जाता था, आज वही खेल छात्रवृत्ति, पहचान और आत्मविश्वास का स्रोत है। खेल अब एक करियर बन चुका है, और युवा इसे दिल से स्वीकार कर चुके हैं।
डिजिटल कनेक्टिविटी से वैश्विक सोच तक: इंटरनेट से लेकर अंतरराष्ट्रीय छात्रवृत्ति तक
2025 में कश्मीर का युवा अब इंटरनेट की सीमाओं में नहीं, संभावनाओं की ऊँचाइयों में सोचता है। ‘डिजिटल इंडिया’ पहल के अंतर्गत हर कॉलेज और स्कूल में हाई-स्पीड इंटरनेट, स्मार्ट क्लासरूम और डिजिटल लाइब्रेरी उपलब्ध हैं। छात्र Google, Coursera, SWAYAM, और अन्य ग्लोबल प्लेटफॉर्म्स से सर्टिफिकेशन ले रहे हैं। कई छात्र Fulbright, Chevening और Commonwealth स्कॉलरशिप के ज़रिए विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं। जहाँ पहले वैश्विक प्रतिस्पर्धा का कोई ज़िक्र तक नहीं था, आज उसी कश्मीर के छात्रों का नाम MIT, Oxford और Tokyo University की लिस्ट में दिखाई देता है।
मुख्यधारा में समर्पण: राष्ट्रवाद और नेतृत्व की पुनर्परिभाषा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आरंभ किए गए ‘वतन को जानो’ और ‘Viksit Bharat Yuva Connect’ जैसे कार्यक्रमों ने कश्मीरी युवाओं को सिर्फ शिक्षा ही नहीं, एक पहचान दी है। अब वह दिल्ली जाते हैं, राजघाट पर राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देते हैं, और दिल्ली विश्वविद्यालय, IIM अहमदाबाद और IIT बॉम्बे जैसे संस्थानों में संवाद करते हैं। यह सिर्फ भ्रमण नहीं—यह मनोविज्ञानिक पुल है, जो उन्हें भारत की आत्मा से जोड़ता है। युवा अब राष्ट्रवाद को ‘एकता में विविधता’ के रूप में देखते हैं—जहाँ उनकी बोली, पहनावा और सोच भारत की विविधता में शामिल होती है।
महिला शक्ति का उदय: तेजस्विनी से लेकर रिसर्च लैब तक की उड़ान
जहाँ पहले कश्मीर में लड़कियों की शिक्षा रुढ़ियों और असुरक्षा के कारण सीमित थी, वहीं आज वे नेतृत्व में हैं। ‘तेजस्विनी योजना’ के तहत सैकड़ों युवतियाँ स्वरोज़गार कर रही हैं—कोई बेकरी चला रही है, कोई मोबाइल रिपेयरिंग में पारंगत है, तो कोई डिजिटल आर्टिस्ट बन चुकी है। श्रीनगर की फातिमा कुरैशी को हाल ही में ISRO के प्रोजेक्ट में इंटर्नशिप मिली—जो ये साबित करता है कि आज की कश्मीरी बेटी सिर्फ कक्षा में नहीं, अंतरिक्ष में भी अपनी पहचान बना रही है।
आंकड़ों की ज़बान में परिवर्तन की सच्चाई
- शिक्षा में ग्रॉस एनरोलमेंट रेट 2015 के मुकाबले 43% बढ़ा है।
- युवाओं की बेरोजगारी दर 2020 के 24% से घटकर 2025 में 13% तक आ गई है।
- खेल छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाले युवाओं की संख्या तीन गुना हुई है।
- महिला उच्च शिक्षा नामांकन में 60% तक इज़ाफा हुआ है।
- डिजिटल प्रशिक्षण लेने वाले छात्रों की संख्या 4.6 लाख से अधिक पहुँच चुकी है।
कश्मीर का युवा अब केवल उम्मीद नहीं, नेतृत्व है
15 अगस्त 2025 को जब लाल किले से प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करेंगे, तब देश की निगाहें सिर्फ दिल्ली पर नहीं, कश्मीर पर भी होंगी। क्योंकि अब कश्मीर सिर्फ ‘विवाद का विषय’ नहीं, ‘विकास का प्रतीक’ बन चुका है। कश्मीरी युवा अब तलवार नहीं, टैबलेट थामे हुए हैं; अब वे नारे नहीं, नवाचार बोलते हैं; अब वे अलगाव नहीं, अभिन्नता की बात करते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और खेलों में उनके कदम तेज़ हैं, और दिल में राष्ट्र प्रेम। इस स्वतंत्रता दिवस पर, उन्हें सलाम जो अब सिर्फ “कश्मीरी” नहीं, “हिंदुस्तानी” कहलाना पसंद करते हैं।