नई दिल्ली 19 जुलाई 2025
महाराष्ट्र की राजनीति में ज़ुबानी जंग एक बार फिर तेज़ हो गई है — और इस बार मैदान है हिंदी भाषियों का मुद्दा। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे के हालिया बयान, जिसमें उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से हिंदी भाषियों को “समंदर में डुबोकर मारने” की धमकी दी, ने राजनीति को उबाल पर ला दिया है। इसके जवाब में भाजपा सांसद और झारखंड से सीनियर नेता डॉ. निशिकांत दुबे ने दो टूक लहजे में चेतावनी दी — “पटक-पटककर मारेंगे।”
दोनों नेताओं के तीखे शब्द अब मराठी बनाम हिंदीभाषी बहस को एक नई ऊंचाई पर ले जा चुके हैं। राज ठाकरे ने मुंबई में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि “बाहरी” लोग यानी हिंदी भाषी प्रदेशों से आने वाले लोग महाराष्ट्र की सांस्कृतिक और प्रशासनिक पहचान को कमजोर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि “मुंबई में मराठी नहीं बचा तो हम समंदर में डुबोकर मारेंगे।”
इस पर निशिकांत दुबे का पलटवार तगड़ा था। उन्होंने कहा, “बिहार, झारखंड, पूर्वांचल से आए लोग मेहनतकश हैं, देश की अर्थव्यवस्था में रीढ़ हैं। जो लोग हिंदी भाषियों को धमकाएंगे, उन्हें हम पटक-पटककर जवाब देंगे।” दुबे ने ये भी कहा कि मुंबई की चमक हिंदी भाषियों की मेहनत से है, और इस देश में कोई किसी को समंदर में नहीं डुबो सकता।
यह विवाद सिर्फ भाषाई या क्षेत्रीय अस्मिता तक सीमित नहीं रहा। अब यह संविधान, नागरिक अधिकारों और भारत की संघीय एकता की परिभाषा पर भी बहस को जन्म दे रहा है। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर जबरदस्त बहस छिड़ गई है। जहां MNS समर्थक इसे “मराठी मानुस” की रक्षा की बात बता रहे हैं, वहीं देश के अन्य हिस्सों से लोग इसे संविधान और एकता के खिलाफ बयानबाज़ी बता रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि महाराष्ट्र में आगामी निकाय चुनावों के मद्देनज़र ये बयान चुनावी ध्रुवीकरण की रणनीति हो सकते हैं। लेकिन इससे देश के अंदरूनी सामाजिक ताने-बाने पर असर पड़ सकता है।
राज ठाकरे के इस बयान की निंदा करते हुए कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने भी कहा, “मुंबई सबकी है। ये धमकी देना कि समंदर में डुबो देंगे — ये न सिर्फ असंवैधानिक है बल्कि महाराष्ट्र की सहिष्णुता की भावना के खिलाफ भी है।”
इसी बीच बीजेपी के भीतर भी राज ठाकरे के बयान को लेकर असहजता देखी गई है, क्योंकि MNS को बीजेपी ने कई मौकों पर अप्रत्यक्ष समर्थन दिया है। हालांकि, निशिकांत दुबे के तीखे तेवर से संकेत है कि हिंदी भाषी भाजपा नेता अब खामोश नहीं रहने वाले।
ये टकराव आने वाले दिनों में और उग्र रूप ले सकता है, खासकर तब जब देश में क्षेत्रीय अस्मिता बनाम राष्ट्रीय एकता का सवाल तेज होता जा रहा है।