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₹43.13 करोड़ के ट्रेजरी घोटाले में बवंडर: मुख्य आरोपी की हिरासत में रहस्यमय मौत, SP और DM संदेह के घेरे में

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चित्रकूट/ नई दिल्ली 19 अक्टूबर 2025

मुंह खोलने के पहले ही मुख्य आरोपी की हिरासत में संदिग्ध मौत

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट ज़िले में हुए ₹43.13 करोड़ के बहुचर्चित ट्रेजरी घोटाले ने अब एक भयावह और रहस्यमय मोड़ ले लिया है, जिससे पूरे प्रशासनिक तंत्र में भूचाल आ गया है। इस सनसनीखेज घोटाले का मुख्य आरोपी संदीप श्रीवास्तव रविवार को इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज में पुलिस हिरासत के दौरान संदिग्ध परिस्थितियों में दम तोड़ गया। यह मौत महज एक व्यक्ति की सामान्य मृत्यु नहीं है; यह एक प्रशासनिक विफलता, कानूनी लापरवाही और बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रही है, जिसने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया है। अब सवालों के घेरे में सिर्फ वह पुलिस टीम नहीं है जिसने आरोपी को पकड़ा था, बल्कि ज़िले के सर्वोच्च अधिकारी—ज़िलाधिकारी (DM) और पुलिस अधीक्षक (SP)—भी हैं, क्योंकि गंभीर कानूनी मानकों का उल्लंघन करते हुए आरोपी को 24 घंटे से अधिक समय तक बिना वारंट के कोतवाली में रखा गया था। यह कस्टोडियल डेथ (हिरासत में मौत) का मामला है, जिसकी अनिवार्य रूप से मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए, और इस घटना ने घोटाले की जड़ों पर पर्दा डालने की आशंकाओं को गहरा दिया है।

मौत या पर्दा डालने की साज़िश: क्या उच्च अधिकारियों तक पहुँच रहे थे घोटाले के तार?

इस पूरी घटना ने अब प्रशासन के शीर्ष स्तर पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है: क्या यह मौत केवल एक संयोग थी, या फिर किसी बड़े नेटवर्क को बचाने की सोची-समझी साज़िश? सूत्रों के हवाले से यह जानकारी सामने आई है कि मुख्य आरोपी संदीप श्रीवास्तव ने पुलिस पूछताछ के दौरान कुछ ऐसे गहन राज़ और अहम जानकारियां उजागर की थीं, जो इस करोड़ों के घोटाले की जड़ों को ट्रेजरी क्लर्क और छोटे कर्मचारियों से ऊपर ले जाकर उच्च प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों तक पहुँचा सकती थीं। यह ₹43.13 करोड़ का वित्तीय खेल किसी एक क्लर्क या ट्रेजरी कर्मचारी की पहुँच और अकेले के बूते से परे था, और उसकी मृत्यु ने उन सभी संभावित साक्ष्यों और गवाहों को हमेशा के लिए दफ़न कर दिया है। इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान हुई आरोपी की इस रहस्यमय मौत के बाद पुलिस और प्रशासनिक विभाग में अफ़रा-तफ़री मच गई है, और पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से पहले ही विपक्ष ने इस मौत को हत्या करार देते हुए सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है।

अखिलेश यादव का कड़ा बयान: ‘इतना बड़ा घोटाला कोई अकेला नहीं कर सकता’—सियासी हलचल तेज

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस पूरे मामले पर बेहद कड़ी और आक्रामक प्रतिक्रिया दी है, जिसने प्रदेश की सियासत में हलचल तेज कर दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर तीखी टिप्पणी करते हुए लिखा: “चित्रकूट ट्रेजरी में हुए करोड़ों के घोटाले के मुख्य आरोपी की हिरासत में मौत एक बेहद गंभीर और नैतिक रूप से विचलित करने वाला मुद्दा है। इतना बड़ा वित्तीय घोटाला कोई अकेले नहीं कर सकता; इसमें ज़ाहिर तौर पर कई प्रभावशाली लोगों की साठगाँठ और संलिप्तता के उजागर होने की पूरी संभावना थी। इसीलिए हम मांग करते हैं कि इसे सामान्य मौत न मानकर निष्पक्ष न्यायिक जांच होनी चाहिए और सभी दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।” अखिलेश यादव के इस बयान ने विपक्षी दलों को एक मंच पर ला दिया है। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सहित पूरे विपक्ष ने इस रहस्यमय मौत को “राजकीय संरक्षण प्राप्त साज़िश” करार दिया है, जिसका एकमात्र उद्देश्य असली गुनहगारों को बचाना है।

प्रशासन की कार्यशैली पर गहरे सवाल और कानूनी कटघरा

इस मामले में पुलिस और ज़िला प्रशासन की कार्यशैली न सिर्फ संदेह के दायरे में है, बल्कि सीधे कानूनी कटघरे में है। घोटाले के मुख्य आरोपी को पकड़ने के बाद, उसे बिना किसी न्यायिक वारंट के कोतवाली में रखना और लगातार 24 घंटे से अधिक समय तक पूछताछ करना पुलिस मैनुअल और कानूनी प्रक्रिया का सीधा और अक्षम्य उल्लंघन है। कानूनी विशेषज्ञों ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि यह सीधे तौर पर कस्टोडियल डेथ का मामला है, और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, इसकी जांच अनिवार्य रूप से मजिस्ट्रेट के अधीन और एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा होनी चाहिए। वहीं, सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, ट्रेजरी घोटाले की फाइलों में कई प्रभावशाली अधिकारियों और नेताओं के नाम सामने आने की आशंका थी। इस मौत ने, भले ही अनजाने में या जानबूझकर, उन सभी प्रभावशाली लोगों को “सुरक्षित” कर दिया है, क्योंकि अब उनके विरुद्ध बोलने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण मुँह हमेशा के लिए बंद हो चुका है।

जनता और विपक्ष का तीखा हमला: अब ₹43.13 करोड़ का हिसाब कौन देगा?

समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बसपा—इन तीनों प्रमुख विपक्षी दलों ने एक सुर में सरकार से दो महत्त्वपूर्ण और बुनियादी सवाल पूछे हैं: “अगर आरोपी निर्दोष था, तो उसे न्याय क्यों नहीं मिला? और अगर वह दोषी था, तो सच्चाई सामने आने से पहले ही उसकी रहस्यमय मौत क्यों हुई?” विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह घटना उत्तर प्रदेश में एक खतरनाक ट्रेंड की ओर इशारा करती है, जहाँ “सच बोलने वाले मुंहों को हमेशा के लिए बंद किया जा रहा है।” प्रदेश में कस्टोडियल डेथ के बढ़ते मामलों के बीच, जनता और मीडिया अब प्रशासन से सीधे यह पूछ रहे हैं कि अगर मुख्य आरोपी ही मर गया, तो ₹43.13 करोड़ के सरकारी खजाने की लूट का हिसाब कौन देगा? क्या इस संदिग्ध मौत से असली और बड़े गुनहगार कानून के हाथ से बच निकलेंगे? इस घटना ने प्रशासन और सत्ता पर जनता के भरोसे को हिलाकर रख दिया है।

न्याय की मांग तेज और राजनीतिक तूफान का खतरा

अब जबकि यह संवेदनशील मामला तेज़ी से गरमाता जा रहा है, जनता, विपक्ष, और मीडिया—सभी मिलकर एक निष्पक्ष, स्वतंत्र और न्यायिक जांच की तत्काल मांग कर रहे हैं। अगर प्रदेश सरकार ने इस मामले की गहन और पारदर्शी जांच के लिए जल्द कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की, तो यह चित्रकूट तक सीमित रहने वाला मामला नहीं रहेगा; बल्कि यह लखनऊ (सत्ता केंद्र) से लेकर दिल्ली (राष्ट्रीय राजनीति) तक एक बड़ा राजनीतिक तूफान बन सकता है। यह घटना सत्ता की पारदर्शिता, कानून के शासन और मानवाधिकारों के सम्मान पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है। जनता की स्पष्ट मांग है: न्याय हो—न केवल आरोपी की संदिग्ध मौत पर, बल्कि ₹43.13 करोड़ की सरकारी खजाने की लूट के असली गुनहगारों पर भी सख्त कार्रवाई हो।

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