बिहार के सबसे चर्चित शिक्षक और यूट्यूबर स्टार खान सर का एक हालिया भावनात्मक वीडियो इस समय सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से धूम मचा रहा है। इस वीडियो में खान सर ने बिहार की जातिगत असमानता और समाज में गहराई तक पैठे भेदभाव की उस दर्दनाक सच्चाई को उजागर किया है, जिसे सुनकर प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का हृदय दहल जाता है। उन्होंने 1970 के दशक की एक ऐसी मार्मिक घटना का ज़िक्र किया है, जिसमें दर्शाया गया कि जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर राज्य की सर्वोच्च सत्ता की कुर्सी पर आसीन थे, तब भी समाज के कुछ रूढ़िवादी और अहंकारी तबकों ने उनके परिवार की जाति को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। खान सर ने वीडियो में विस्तार से बताया कि जब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने, तो उनके पिता जी अत्यंत प्रसन्नता से गांव में मिठाई बाँट रहे थे और लोगों से अपने बेटे की उपलब्धि साझा कर रहे थे।
लेकिन उसी गांव के एक ऊँची जाति के सम्भ्रांत व्यक्ति ने उन्हें बुलाकर अहंकारपूर्वक आदेश दिया कि ‘हमारा दाढ़ी बनाना है, घर पर आ जाना।’ जब कर्पूरी जी के पिता मिठाई बाँटने के कारण थोड़ा देर से उसके घर पहुँचे, तो उस आदमी ने गुस्से में उन्हें लाठी-डंडों से बेरहमी से पीट दिया और अपमानजनक लहजे में कहा कि ‘तुम्हारा बेटा मुख्यमंत्री बन गया तो तुम लोग अपनी औकात भूल गए? नाई हो, अपनी औकात में रहो।’ यह घटना यह दर्शाती है कि उस दौर में जातिगत संघर्ष किस भयावह स्तर पर था, जहाँ एक पिता अपने बेटे की उपलब्धि पर खुशियाँ मना रहा था, वहीं समाज का एक हिस्सा उसे उसकी जाति याद दिलाने और अपमानित करने के लिए हिंसा का सहारा ले रहा था।
पद, प्रतिष्ठा से ऊपर जाति: जातीय जंजीरों की कठोरता का आईना
खान सर ने इस दर्दनाक प्रसंग को केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं बताया, बल्कि इसे उस दौर के पूरे सामाजिक ढाँचे की कड़वी सच्चाई कहा। उन्होंने जोर देकर कहा कि बिहार में उस समय जातीय संघर्ष किस स्तर का था, जहाँ पद, प्रतिष्ठा या उपलब्धि सब कुछ बेमानी था, क्योंकि सबसे ऊपर जाति की दीवार खड़ी थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि उस समय जाति की जंजीरें इतनी मजबूत थीं कि किसी व्यक्ति की मेहनत या प्रतिभा से ज़्यादा उसके जन्म और जाति का ठप्पा मायने रखता था।
खान सर ने आगे विश्लेषण करते हुए कहा कि उस समय ऊँची जातियों के लोग यह बर्दाश्त नहीं कर पाते थे कि कोई पिछड़ी जाति या वंचित वर्ग का आदमी मुख्यमंत्री जैसा इतना बड़ा पद पा ले। उन्हें यह लगता था कि इस तरह की सफलता से समाज की पुरानी, स्थापित दीवारें हिल रही हैं और उनके पारंपरिक वर्चस्व को खतरा पैदा हो रहा है। उन्होंने आज के दौर से तुलना करते हुए कहा कि “अब के दौर में किसी का बेटा अगर सिपाही भी बन जाए, तो लोग उलझने से डरते हैं। लेकिन तब के समय में मुख्यमंत्री का बेटा भी जाति के अहंकार से हार गया था।” यह ऐतिहासिक कहानी यह दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि बिहार का समाज किस हद तक जातीय रूप से बँटा हुआ था, और सत्ता भी जाति के आगे बेबस थी।
विरासत और संघर्ष: आज भी धीमी है मानसिकता में बदलाव की रफ्तार
खान सर ने इस ऐतिहासिक और दर्दनाक प्रसंग को आज के समाज से जोड़ते हुए कहा कि यद्यपि आज हालात पहले जैसे नहीं रहे, और कानूनी व सामाजिक बदलाव आए हैं, लेकिन मानसिकता में बदलाव की रफ्तार आज भी बहुत धीमी है। उन्होंने कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं को उस दौर में वंचितों की आवाज़ बताया, जिन्होंने सामाजिक न्याय और समान अवसर की लड़ाई को केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि अपने जीवन का उद्देश्य बनाया था। लेकिन विडंबना यह है कि उनके अपने परिवार को भी उसी गहरे भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिसके खिलाफ कर्पूरी ठाकुर ने अपना पूरा जीवन संघर्ष किया। खान सर का यह बयान बिहार के जातिगत इतिहास का आईना बन गया है, जिसने लाखों युवाओं को इस बात पर सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कैसे एक समाज, जो खुद को सभ्य और शिक्षित कहता है, अब भी अपने अतीत के गहरे जख्मों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है।
सोशल मीडिया पर इस वीडियो के वायरल होने के बाद हजारों लोगों ने इसे साझा करते हुए कहा है कि “कर्पूरी ठाकुर का सम्मान केवल उनके नाम से नहीं, बल्कि उनके संघर्ष की विरासत से होना चाहिए।” कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस वीडियो को “सच्चाई का आईना” बताया है, जो आज की पीढ़ी को उस दौर की सामाजिक ऊँच-नीच से परिचित कराता है, ताकि भविष्य में एक ऐसा समाज बनाया जा सके जहाँ किसी की औकात उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके कर्म और मेहनत से तय हो। निष्कर्षतः, खान सर का यह वीडियो इस बात को स्थापित करता है कि बदलाव आया है, लेकिन पूरी तरह नहीं, और आज भी बिहार को जात से नहीं, बल्कि इंसानियत से ऊपर उठना बाकी है।