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क्या है कांग्रेस की ‘बूथ रक्षक’ योजना? राहुल गांधी का नया दांव ? चार राज्यों में शुरू हुआ पायलट प्रोजेक्ट

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नई दिल्ली, 23 सितंबर 

कांग्रेस ने बूथ स्तर पर चुनावी गड़बड़ियों और कथित वोट चोरी को रोकने के लिए एक नई रणनीति बनाई है, जिसे नाम दिया गया है ‘बूथ रक्षक योजना’। राहुल गांधी की अगुवाई में पार्टी ने इसे चार राज्यों की पाँच लोकसभा सीटों पर पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लॉन्च किया है। योजना का मकसद साफ है—बूथ स्तर पर ऐसे प्रशिक्षित कार्यकर्ता तैयार करना जो मतदाता सूची पर निगरानी रखें, वोटरों के नाम जोड़ने-घटाने में होने वाली गड़बड़ियों को पकड़ें और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करें।

कांग्रेस का दावा है कि हाल के चुनावों में पार्टी की कई सीटें बहुत कम अंतर से हारीं और इसमें बड़ी भूमिका मतदाता सूची की खामियों की रही। इसी अनुभव के आधार पर यह योजना बनाई गई है। बूथ रक्षक यानी वोट रक्षक को यह जिम्मेदारी दी जाएगी कि वे हर बूथ की मतदाता सूची को बारीकी से जांचें—कहीं मृत व्यक्तियों के नाम तो दर्ज नहीं, कहीं एक ही व्यक्ति का नाम अलग-अलग जगहों पर तो नहीं, कहीं पात्र मतदाताओं के नाम छूट तो नहीं गए। इसके लिए उन्हें चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले फॉर्म 6, 7 और 8 की प्रक्रिया भी सिखाई जा रही है।

यह पायलट प्रोजेक्ट जिन सीटों पर चल रहा है, उनमें जयपुर ग्रामीण और अलवर (राजस्थान), जनजीर-चांपा (छत्तीसगढ़), मुरैना (मध्य प्रदेश) और बांसगांव (उत्तर प्रदेश) शामिल हैं। इन क्षेत्रों को इसलिए चुना गया क्योंकि यहां कांग्रेस बहुत कम अंतर से हारी थी। पार्टी का मानना है कि यदि बूथ स्तर पर सतर्कता रही होती तो परिणाम बदल सकते थे।

कांग्रेस की रणनीति यह है कि हर 10 बूथ पर एक ‘बूथ रक्षक’ नियुक्त होगा, जो स्थानीय बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) के साथ मिलकर काम करेगा। इनके लिए प्रशिक्षण कार्यशालाएँ चल रही हैं और पार्टी हाईकमान खुद इस पर नजर रख रहा है। राहुल गांधी की पहल पर इसे ‘वोट चोरी के खिलाफ लड़ाई’ का पहला ठोस कदम बताया जा रहा है।

हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि योजना तभी सफल होगी जब इसे ईमानदारी और निरंतरता के साथ लागू किया जाए। विपक्षी दल इसे महज़ कांग्रेस का चुनावी स्टंट करार दे रहे हैं, लेकिन पार्टी का कहना है कि यह लोकतंत्र को बचाने का असली अभियान है।

निष्कर्ष यही है कि कांग्रेस की ‘बूथ रक्षक योजना’ सिर्फ एक संगठनात्मक प्रयोग नहीं, बल्कि बूथ स्तर से लोकतंत्र को मज़बूत करने का दावा है। अब देखना यह होगा कि पायलट प्रोजेक्ट कितनी सफलता हासिल करता है और क्या यह रणनीति वाकई वोट चोरी रोकने में मददगार साबित हो पाती है।

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