नई दिल्ली 11 सितम्बर 2025
बिहार में हुए Special Intensive Revision (SIR) के पहले चरण ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को गंभीर चुनौती दी। 65 लाख नाम कटने, जिंदा लोगों को मृत घोषित करने और हाशिए के समुदायों के वोटरों के अधिकारों पर सवाल उठने के बाद अब आयोग पूरे देश में मतदाता सूची संशोधन शुरू करने जा रहा है। यह कदम जरूरी है, लेकिन इसके सामने कई गंभीर चुनौतियाँ हैं—भरोसा बनाए रखना, प्रक्रिया को पारदर्शी करना और आयोग की साख पर लगे कलंक को धोना।
बिहार SIR की चोट और राष्ट्रीय विवाद
बिहार में SIR तेज़ी से लागू की गई थी, लेकिन इसके परिणामस्वरूप मतदाता सूची में भारी गड़बड़ियां सामने आईं। विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे “मतदाता घोटाला” कहा। 65 लाख नाम काटे गए, जिनमें गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर आयोग को निर्देश दिए कि हटाए गए नामों की पूरी सूची सार्वजनिक की जाए और गलत तरीके से हटाए गए मतदाताओं को बहाल किया जाए। इस विवाद ने जनता में गहरी असंतोष की भावना पैदा की और सवाल उठाए कि क्या आयोग निष्पक्ष है।
पूरे देश में SIR लागू करना: चुनौतीपूर्ण कार्य
अब जब आयोग पूरे देश में वोटर सूची संशोधन करने जा रहा है, चुनौती पहले से कई गुना अधिक है। प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में समान स्तर की पारदर्शिता और निगरानी सुनिश्चित करनी होगी। DEOs, EROs, AEROs और BLOs की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी। किसी भी तरह की त्रुटि, चाहे वह नाम कटना हो या फर्जी जोड़ना, पूरे देश में विश्वासघात का कारण बन सकती है।
कांग्रेस और राहुल गांधी का दबाव: भरोसा कैसे कायम होगा?
जैसा कि लगातार कांग्रेस और राहुल गांधी चुनाव आयोग पर सवाल उठाते रहे हैं, पोल खोल में लगे रहे हैं और आयोग की निष्पक्षता पर संदेह जताते रहे हैं, ऐसे में आम जनता का भरोसा बहाल करना और भी मुश्किल हो गया है। आज लोग चुनाव आयोग को वोट चोरी का अड्डा बताते हैं। बिहार की SIR में हुई गड़बड़ियों और विपक्ष के लगातार हमलों के बाद यह सवाल गूंज रहा है कि क्या आयोग वास्तव में निष्पक्ष और पारदर्शी है या फिर राजनीतिक दबाव में काम कर रहा है।
आयोग की साख पर लगे कलंक को धोना
चुनाव आयोग अब यह साबित करना चाहता है कि SIR केवल पारदर्शिता और सटीकता के लिए है, न कि किसी राजनीतिक एजेंडे के लिए। इसके लिए जरूरी है कि तैयारियों की समीक्षा, प्रशिक्षण, डिजिटलाइज़ेशन और दस्तावेजी प्रक्रिया की निगरानी बेहद कड़ी हो। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन, हटाए गए नामों की पुनः बहाली और प्रत्येक मतदाता के अधिकार की सुरक्षा ही आयोग के कलंक को धोने का एकमात्र तरीका है।
लोकतंत्र की असली परीक्षा
बिहार SIR ने स्पष्ट कर दिया कि लोकतंत्र सिर्फ कानून और नियमों से नहीं चलता, बल्कि जनता के भरोसे और विश्वास से चलता है। अब जब पूरे देश में SIR लागू हो रहा है, चुनाव आयोग के सामने यह चुनौती है कि वह भरोसा बहाल करे, प्रक्रिया में पारदर्शिता लाए और लोकतंत्र की रीढ़ को मज़बूत बनाए। यदि यह प्रयास सफल रहा, तो आयोग की साख फिर से स्थायी रूप से मजबूत हो सकती है; यदि नहीं, तो यह घोटाला देशभर में लोकतंत्र के लिए चेतावनी बनकर रह जाएगा।