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मन की जीत ही असली जीत: खुशहाल जीवन का सूत्र

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नई दिल्ली 2 सितंबर 2025

हर इंसान का जीवन केवल सांस लेने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह भीतर से संतुष्ट और प्रसन्न भी रहना चाहता है। असली प्रसन्नता, शांति और सुख का मतलब यह नहीं है कि हमारे पास ढेर सारा पैसा हो, आलीशान मकान हो या बाहरी दुनिया हमें सफल मानती हो। बल्कि यह उस मनःस्थिति का नाम है जब इंसान भीतर से संतुलित, संतुष्ट और स्थिर होता है। प्रसन्नता का अर्थ है रोज़मर्रा की छोटी-छोटी बातों में भी मुस्कुराहट और खुशी ढूँढ लेना। शांति का मतलब है मन का अशांत न होना और नकारात्मक विचारों से दूर रहना। जबकि सुख का मतलब है शरीर और मन का स्वस्थ होना, रिश्तों का संतुलन और जीवन में संतोष का अनुभव करना। जैसा कि महात्मा बुद्ध ने कहा था – “शांति भीतर से आती है, इसे बाहर मत खोजो।”

आधुनिक जीवनशैली और बढ़ती मानसिक समस्याएँ

आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में इंसान खुद को पीछे छूटता हुआ महसूस करता है। प्रतियोगिता इतनी बढ़ गई है कि लोग अपनी तुलना दूसरों से करते-करते अपनी खुशी खो बैठते हैं। मोबाइल और सोशल मीडिया ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। नौकरी और पढ़ाई का दबाव, रिश्तों में असुरक्षा, नींद की कमी, गलत खानपान और व्यायाम न करने से अवसाद और एंजायटी जैसी समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। अकेलापन और परिवार-समाज से दूरी भी इंसान को भीतर से तोड़ देती है। यही कारण है कि मानसिक बीमारियाँ, जो पहले छिपी रहती थीं, अब बहुत आम हो चुकी हैं। स्वामी विवेकानंद ने इस स्थिति पर सटीक कहा था – “हम वही हैं जो हमारे विचारों ने हमें बनाया है, इसलिए सोच को सकारात्मक बनाइए।”

अवसाद और एंजायटी से बचने के लिए संतुलित दिनचर्या

एक नियमित और संतुलित दिनचर्या इंसान को मानसिक शांति देती है। अगर समय पर सोने-जागने की आदत डाली जाए, संतुलित भोजन लिया जाए और रोज़ाना थोड़ी देर पैदल चला जाए तो मन और शरीर दोनों हल्के महसूस करते हैं। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि व्यायाम के दौरान शरीर से ‘हैप्पी हार्मोन’ यानी सेरोटोनिन और डोपामिन निकलते हैं, जो स्वाभाविक रूप से तनाव और अवसाद को कम करते हैं। जो लोग सुबह की शुरुआत व्यायाम, योग या थोड़े से ध्यान से करते हैं, वे दिनभर अधिक ऊर्जावान और सकारात्मक बने रहते हैं। आचार्य चाणक्य ने भी कहा था – “स्वस्थ शरीर ही जीवन का पहला सुख है।”

ध्यान और प्राणायाम से मानसिक शांति

ध्यान और प्राणायाम भारत की प्राचीन धरोहर हैं। रोज़ाना केवल 10 से 15 मिनट का ध्यान मन के अस्थिर विचारों को स्थिर करने में मदद करता है। गहरी सांस लेने की तकनीक यानी प्राणायाम से एंजायटी और बेचैनी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह अभ्यास न केवल दिमाग को शांति देता है बल्कि शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने कहा था कि “श्वास पर नियंत्रण, मन पर नियंत्रण है।” यही कारण है कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में भी योग और ध्यान विश्वभर में मानसिक स्वास्थ्य का सबसे सशक्त उपाय माने जा रहे हैं। पतंजलि योगसूत्र में भी कहा गया है – “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” यानी योग मन की चंचलता को रोकने का मार्ग है।

सकारात्मक सोच और आभार व्यक्त करने की शक्ति

मनुष्य का दृष्टिकोण उसकी पूरी जिंदगी बदल सकता है। अगर इंसान हर परिस्थिति में नकारात्मकता ढूँढेगा तो प्रसन्नता कभी नहीं मिलेगी। वहीं यदि वही इंसान छोटी-छोटी चीज़ों में भी आभार व्यक्त करना सीखे, तो वह भीतर से हल्का और संतुष्ट महसूस करेगा। दिन की शुरुआत तीन ऐसी चीज़ें लिखने से की जा सकती है जिनके लिए हम आभारी हैं। यह आदत धीरे-धीरे मन को नकारात्मक विचारों से मुक्त करती है और जीवन को नए नजरिए से देखने में मदद करती है। यही सकारात्मक सोच डिप्रेशन और एंजायटी की सबसे बड़ी दवा है। महात्मा गांधी ने कहा था – “खुशी तब है जब आपके विचार, आपके शब्द और आपके कर्म एक सामंजस्य में हों।”

परिवार, रिश्तों और संवाद का महत्व

अकेलापन किसी भी मानसिक बीमारी की जड़ है। जब इंसान अपने परिवार और दोस्तों से कट जाता है, तो अवसाद और भी गहरा हो जाता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने अपनों के साथ समय बिताएँ, उनसे खुलकर बातचीत करें और अपनी परेशानियाँ साझा करें। कई बार मन की उलझनें सिर्फ बातचीत करने से ही हल्की हो जाती हैं। रिश्तों में प्रेम, सम्मान और संवाद बनाए रखना मानसिक स्वास्थ्य के लिए उतना ही आवश्यक है जितना शरीर के लिए पौष्टिक भोजन। संत कबीर ने कहा था – “सुख में सुमिरन सब करे, दुख में करे न कोय; जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय।” यानी जीवन के हर पल रिश्तों और ईश्वर से जुड़े रहना ही सच्चा सहारा है।

तकनीक से दूरी और पेशेवर मदद की अहमियत

सोशल मीडिया और लगातार मोबाइल स्क्रीन पर समय बिताना न केवल नींद खराब करता है बल्कि मन को भी अस्थिर बना देता है। इसलिए ज़रूरी है कि दिन का कम से कम एक घंटा मोबाइल और इंटरनेट से दूर रहकर प्रकृति या अपने शौक के साथ बिताया जाए। साथ ही, अगर अवसाद लंबे समय तक बना रहता है और जीवन को प्रभावित करने लगे तो मनोचिकित्सक या काउंसलर की मदद लेना समझदारी है। मानसिक रोग भी किसी शारीरिक रोग की तरह ही इलाज योग्य हैं, इसलिए इसमें हिचकिचाना नहीं चाहिए। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था – “मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वह स्वयं को पहचान ले।”

अंदरूनी खुशी ही असली सुख है

आख़िरकार, इंसान की असली खुशी, शांति और सुख बाहर की चीज़ों पर निर्भर नहीं करते बल्कि उसके भीतर के संतुलन और सोच पर निर्भर करते हैं। जब हम अपने विचारों पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं, अपने शरीर का ख्याल रखते हैं और रिश्तों को महत्व देते हैं, तब जीवन स्वतः ही प्रसन्नता से भर उठता है। अवसाद और एंजायटी जैसी समस्याएँ आधुनिक जीवन की उपज हैं, लेकिन योग, ध्यान, संतुलित जीवनशैली और सकारात्मक सोच से इन्हें आसानी से दूर किया जा सकता है। असली जीवन का उद्देश्य यही है कि हर पल को शांति और संतोष के साथ जिया जाए। जैसा कि रामकृष्ण परमहंस ने कहा था – “सच्चा सुख भीतर है, उसे बाहर मत ढूँढो।”

वैज्ञानिक तथ्यों और आधुनिक मनोविज्ञान का दृष्टिकोण

आधुनिक मनोविज्ञान भी यही मानता है कि इंसान की खुशी केवल बाहरी साधनों से नहीं, बल्कि उसकी सोच और जीवनशैली से जुड़ी होती है। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि जब इंसान व्यायाम करता है या ध्यान करता है, तो उसके मस्तिष्क से सेरोटोनिन, डोपामिन और एंडोर्फिन जैसे रसायन निकलते हैं, जिन्हें “हैप्पी हार्मोन” कहा जाता है। ये हार्मोन तनाव और चिंता को कम करके मन को प्रसन्न बनाते हैं। इसी तरह कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरैपी (CBT) जैसी आधुनिक उपचार विधियाँ यह सिखाती हैं कि कैसे इंसान अपनी नकारात्मक सोच को पहचानकर उसे सकारात्मक विचारों में बदल सकता है। इससे अवसाद और एंजायटी दोनों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। यानी हमारी प्राचीन परंपराएँ और आधुनिक विज्ञान, दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि असली खुशी और शांति भीतर से आती है, और इसे साधना और अभ्यास से पाया जा सकता है।

 

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