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उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: हर महत्वपूर्ण सवाल का जवाब, जानिए प्रक्रिया, उम्मीदवार और चुनाव का महत्व

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नई दिल्ली 8 सितम्बर 2025

भारत में उपराष्ट्रपति का पद राष्ट्रपति के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक जगह मानी जाती है। इस बार 9 सितंबर 2025 को भारत के 17वें उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव होने वाला है, जिसमें सत्तारूढ़ NDA की ओर से सीपी राधाकृष्णन और विपक्ष की तरफ से पी सुदर्शन रेड्डी मैदान में हैं। इस चुनाव की पूरी प्रक्रिया, वोटिंग के नियम-कायदे और संभावित परिणाम को लेकर जनता में गहरी उत्सुकता है।

उपराष्ट्रपति चुनाव में संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित व मनोनीत सदस्य वोट डालते हैं। इस बार कुल 781 सांसद वोट डाल सकेंगे, जिनमें राज्यसभा के 233 निर्वाचित सदस्य, 12 मनोनीत सदस्य और लोकसभा के 543 निर्वाचित सदस्य शामिल हैं। मतदान गुप्त और आनुपातिक प्रतिनिधित्व विधि के तहत सिंगल ट्रांसफरेबल वोटिंग सिस्टम से होगा। मतपत्र पर उम्मीदवारों के नाम हिंदी और अंग्रेजी दोनों में होते हैं, और मतदाता को अपनी प्राथमिकता 1, 2, 3… के अंक देकर वोट देना होता है।

चुनाव में वोटिंग सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक संसद भवन के वसुधा कक्ष में होती है। मतगणना उसी दिन शाम 6 बजे से शुरू होती है और विजेता का ऐलान कर दिया जाता है। उम्मीदवार को जीतने के लिए कुल वैध मतों का बहुमत यानी 50% से अधिक वोट लेना ज़रूरी होता है। यदि पहले राउंड में कोई उम्मीदवार बहुमत नहीं पाता, तो सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है और उसके वोट दूसरे उम्मीदवारों को ट्रांसफर किए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कोई उम्मीदवार बहुमत हासिल नहीं कर लेता।

इस चुनाव में डाक मतपत्र की अनुमति नहीं है, सिवाय उन सांसदों के जो जेल में हैं या जो प्रिवेंटिव डिटेंशन में हैं। इस बार बारामूला से शेख अब्दुल रशीद और खडूर साहिब से अमृतपाल सिंह जेल में होने के कारण पोस्टल बैलट के जरिए मतदान कर पाएंगे। मतदान पूरी तरह से गुप्त होता है, और कोई भी बिना अपने मत की गोपनीयता भंग किए किसी की मदद नहीं ले सकता।

उपराष्ट्रपति चुनाव दल-बदल विरोधी कानून से मुक्त होता है, क्योंकि यह किसी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़ा नहीं जाता। इस वजह से उम्मीदवारों को वोट देते समय सांसद स्वतः अपनी मर्जी से वोटिंग कर सकते हैं, और किसी पार्टी का दबाव या व्हिप नहीं होता। हालांकि, मतपत्र की वैधता के लिए कुछ स्पष्ट नियम हैं, जैसे उम्मीदवार के नाम के सामने प्राथमिकता 1 का अंक होना अनिवार्य है। यदि मतपत्र पर किसी भी तरह की अस्पष्टता या दुरुपयोग पाया जाता है, तो उसे रद्द कर दिया जाता है।

उपराष्ट्रपति बनने के लिए उम्मीदवार की उम्र कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए और वह संसद के सदस्य बनने के लिए पात्र होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, उम्मीदवार को भारत का नागरिक होना चाहिए और वह सरकार के किसी लाभकारी पद पर नहीं होना चाहिए। इसके लिए पर्चा दाखिल करते समय 20 निर्वाचकों के समर्थन के दस्तखत और 15 हजार रुपये की जमानत राशि राजपत्रित रिटर्निंग अधिकारी को जमा कराना होता है।

उपराष्ट्रपति को नियमित वेतन सीधे तौर पर नहीं मिलता, लेकिन राज्यसभा के सभापति के रूप में उन्हें कई सुविधाएं और मानदेय दिया जाता है। 2018 के संशोधन के बाद उनकी वेतन राशि लगभग चार लाख रुपये मासिक है। इसके अलावा, उपराष्ट्रपति को बड़ा आवास, दैनिक भत्ता, यात्रा अलाउंस, मुफ्त चिकित्सा सुविधा समेत कई अन्य सरकारी सुविधाएं भी मिलती हैं। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें पेंशन भी दी जाती है, जो लगभग मासिक दो लाख रुपये के आस-पास होती है। साथ ही पूर्व उपराष्ट्रपति और उनके परिवार को कई सुरक्षा एवं प्रशासनिक सहायता प्रदान की जाती है।

इस बार NDA ने अपने उम्मीदवार के रूप में चंद्रपुर पोन्नुसामी राधाकृष्णन को मैदान में उतारा है, जो महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल रह चुके हैं और कई राज्यों में प्रशासनिक अनुभव रखते हैं। वहीं विपक्ष की ओर से पी सुदर्शन रेड्डी उम्मीदवार हैं, जो आंध्र प्रदेश के पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज रह चुके हैं। दोनों उम्मीदवारों की राजनीतिक और प्रशासनिक पृष्ठभूमि, और उनके चुनावी अभियान इस चुनाव की महत्वपूर्ण कड़ी होंगे।

अंत में, उपराष्ट्रपति चुनाव का नतीजा न सिर्फ संवैधानिक तौर पर बल्कि राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि भारत की राजनीति में इस पद की प्रभावी भूमिका रहती है। इस बार का चुनाव संसद के लिए भी एक राजनीतिक संकेत होगा, और देश की राजनीतिक दिशा को प्रभावित कर सकता है।

 

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