वॉशिंगटन 4 अक्टूबर 2025
अमेरिका में जारी सरकारी शटडाउन का सीधा असर अब देश की आर्थिक और श्रम संबंधी रिपोर्टों पर भी दिखाई देने लगा है। लेबर डिपार्टमेंट और अन्य एजेंसियों द्वारा जारी होने वाले कई महत्वपूर्ण आंकड़े, जिनमें बहुप्रतीक्षित जॉब्स रिपोर्ट भी शामिल है, फिलहाल टाल दिए गए हैं। यह रिपोर्ट अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिति को समझने का सबसे अहम पैमाना मानी जाती है, क्योंकि इसमें रोजगार दर, बेरोजगारी के आंकड़े और वेतन वृद्धि जैसी जानकारी होती है। इसके स्थगित होने से निवेशकों, नीति निर्माताओं और आम जनता, सभी के बीच गहरी अनिश्चितता पैदा हो गई है।
जॉब्स रिपोर्ट क्यों अहम है?
अमेरिकी श्रम विभाग की मासिक जॉब्स रिपोर्ट न केवल अमेरिका के भीतर बल्कि पूरी दुनिया के आर्थिक बाजारों के लिए निर्णायक भूमिका निभाती है। यह रिपोर्ट दिखाती है कि देश में कितनी नौकरियाँ पैदा हुईं, बेरोजगारी दर किस स्थिति में है और औसत वेतन वृद्धि कितनी हुई। फेडरल रिज़र्व (अमेरिकी केंद्रीय बैंक) भी अपनी ब्याज दरों की नीति तय करने में इन आंकड़ों का इस्तेमाल करता है। अब रिपोर्ट टलने का मतलब है कि फेडरल रिज़र्व के पास भी अधूरी जानकारी होगी, जिससे मौद्रिक नीति के फैसलों पर असर पड़ सकता है। इस स्थिति से स्टॉक मार्केट और वैश्विक निवेशकों में चिंता और ज्यादा गहरी हो गई है।
शटडाउन का दायरा और असर
शटडाउन की वजह से हजारों सरकारी कर्मचारी वेतन के बिना घर बैठने को मजबूर हैं। कई विभागों में रोज़मर्रा का कामकाज ठप पड़ा हुआ है। इससे पहले भी अमेरिका में शटडाउन हुए हैं, लेकिन इस बार हालात ज्यादा संवेदनशील हैं क्योंकि महंगाई और वैश्विक अस्थिरता पहले से ही अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल रही है। अब जब श्रम और आर्थिक आंकड़े उपलब्ध नहीं होंगे, तो सरकार और कारोबारी जगत दोनों ही अंधेरे में फैसले लेने को मजबूर होंगे। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि डेटा का न आना अपने आप में अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डालता है, क्योंकि बाजार “अनिश्चितता” को सबसे बड़ा खतरा मानता है।
राजनीतिक टकराव और जनता पर बोझ
इस शटडाउन की वजह अमेरिकी राजनीति में चल रहा टकराव है। कांग्रेस में बजट पर सहमति न बन पाने के कारण कई विभागों की फंडिंग रुक गई है। रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच यह गतिरोध लगातार गहराता जा रहा है। इसका खामियाजा सीधा जनता को भुगतना पड़ रहा है—नौकरी चाहने वाले युवाओं से लेकर निवेशक और कारोबारी, सब प्रभावित हो रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय तक शटडाउन रहने से अमेरिका के क्रेडिट रेटिंग पर भी असर पड़ सकता है, जिससे डॉलर पर दबाव और बढ़ जाएगा।
वैश्विक असर और आगे का रास्ता
अमेरिका की आर्थिक स्थिति का असर पूरी दुनिया पर पड़ता है। भारत जैसे देशों के लिए भी यह चिंता का विषय है क्योंकि अमेरिकी बाजार में मंदी का असर आईटी सेक्टर, निर्यात और विदेशी निवेश पर सीधे तौर पर पड़ सकता है। वहीं यूरोप और एशिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था पहले से ही धीमी है, ऐसे में अमेरिका से आने वाला नकारात्मक संदेश वैश्विक मंदी के खतरे को और गहरा सकता है। फिलहाल, विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि अमेरिकी नेतृत्व जल्दी कोई समाधान निकाल लेगा, ताकि शटडाउन खत्म हो और सामान्य कामकाज बहाल हो सके।