वॉशिंगटन / बीजिंग, 26 सितम्बर 2025। अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से चल रही तनातनी के बाद आखिरकार टिक-टॉक डील पर सहमति बन गई है। यह समझौता उस कानूनी और राजनीतिक विवाद का अंत माना जा रहा है, जिसमें अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर टिक-टॉक पर बैन लगाने की धमकी दी थी। अब इस समझौते के तहत कंपनी के डेटा प्रबंधन, स्वामित्व ढांचे और पारदर्शिता को लेकर बड़े बदलाव होंगे।
डील के मुताबिक टिक-टॉक का अमेरिकी संचालन अब एक अलग इकाई के तहत किया जाएगा, जिसमें अमेरिकी निवेशकों की बहुमत हिस्सेदारी होगी। यह कदम अमेरिकी सरकार की उस चिंता को दूर करने के लिए उठाया गया है कि चीन की बाइटडांस कंपनी के पास अमेरिकी यूजर्स का संवेदनशील डेटा रहता है। अमेरिकी वाणिज्य विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि इस डील से अमेरिकी यूजर्स के डेटा को सुरक्षित रखने के लिए नई साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल और ऑडिट सिस्टम लागू किए जाएंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस समझौते का स्वागत किया है और कहा है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और डिजिटल स्वतंत्रता के बीच सही संतुलन स्थापित करेगा। “हम चाहते थे कि अमेरिकी नागरिकों का डेटा पूरी तरह सुरक्षित रहे, और यह डील हमें यही आश्वासन देती है,” व्हाइट हाउस के बयान में कहा गया।
चीनी सरकार ने भी इस समझौते को सकारात्मक बताया है और कहा है कि इससे दोनों देशों के बीच डिजिटल व्यापार और सहयोग को नई दिशा मिलेगी। बीजिंग ने कहा कि यह समझौता यह साबित करता है कि बातचीत और कूटनीति के जरिए विवादों को हल किया जा सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह डील सोशल मीडिया और टेक इंडस्ट्री के लिए ऐतिहासिक है। यह न केवल अन्य चीनी कंपनियों के लिए मिसाल बनेगी बल्कि उन सभी वैश्विक टेक कंपनियों को भी संकेत देगी जो डेटा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को लेकर विवादों में फंसी हुई हैं। विश्लेषक मानते हैं कि इससे अन्य देशों में भी डेटा लोकलाइजेशन और यूजर प्राइवेसी पर सख्त नीतियां अपनाने का दबाव बढ़ सकता है।
टिक-टॉक के सीईओ ने अपने बयान में कहा, “हम खुश हैं कि यह विवाद खत्म हुआ। हमारा फोकस यूजर्स के अनुभव को और सुरक्षित और बेहतर बनाने पर रहेगा।” अब सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि नया मॉडल कब तक लागू होगा और क्या यह वास्तव में अमेरिकी सरकार और आम उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा चिंताओं को दूर कर पाएगा।