नई दिल्ली, 18 अक्टूबर 2025
दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के डॉ. भीमराव अंबेडकर कॉलेज परिसर में गुरुवार दोपहर एक ऐसी बेहद शर्मनाक और अशोभनीय घटना घटी, जिसने भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों की गरिमा और सुरक्षा पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। यह घटना तब घटी जब डीयूएसयू (दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन) की संयुक्त सचिव और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की पदाधिकारी दीपिका झा ने खुलेआम कॉलेज के अनुशासन समिति के संयोजक और वाणिज्य विभाग के फैकल्टी सदस्य प्रोफेसर सुजीत कुमार को प्रिंसिपल के कार्यालय के भीतर थप्पड़ जड़ दिया। इस घटना की गंभीरता को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि यह सब दिल्ली पुलिस के जवानों की प्रत्यक्ष उपस्थिति में हुआ, जिन्होंने हस्तक्षेप करने के बजाय मौन साक्षी बने रहना पसंद किया, जिससे यह कृत्य तुरंत सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से वायरल हो गया और शिक्षक संगठनों, छात्र गुटों तथा सोशल मीडिया पर व्यापक आक्रोश की लहर दौड़ गई, जिसे कई शिक्षक संगठनों ने शैक्षणिक संस्थान की गरिमा पर सीधा और नियोजित प्रहार करार दिया है।
घटना का भयावह विवरण: अनुशासन की जांच पर मॉब अटैक और हिंसा का कारण
यह विवादास्पद और निंदनीय घटना दोपहर लगभग 4 बजे कॉलेज के प्रिंसिपल कार्यालय के अत्यंत संवेदनशील और आधिकारिक क्षेत्र में हुई। प्रोफेसर सुजीत कुमार, जो न केवल वाणिज्य विभाग के फैकल्टी सदस्य हैं, बल्कि कॉलेज की अनुशासन समिति (Disciplinary Committee) के संयोजक के रूप में कैंपस में हाल ही में हुई हिंसा और अव्यवस्था की घटनाओं की जिम्मेदारी से जांच कर रहे थे, वे इस हमले के सीधे शिकार बने। डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (डीटीएफ) जैसे शिक्षक संगठनों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, दीपिका झा के नेतृत्व में लगभग 50 छात्रों का एक बड़ा और आक्रामक समूह, जिसमें डीयूएसयू अध्यक्ष आर्यन मान भी शामिल थे, कॉलेज में अनधिकृत तरीके से जबरन घुस आया। इस समूह का मुख्य उद्देश्य प्रोफेसर कुमार के खिलाफ था और वे उन पर इस्तीफे के लिए दबाव बना रहे थे। विवाद तब भड़का जब झा और उनके समर्थकों ने बिना अनुमति के प्रिंसिपल की बैठक में प्रवेश किया।
डीटीएफ ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि “झा ने प्रोफेसर कुमार को दो बार थप्पड़ मारा, जबकि प्रिंसिपल कार्यालय में मौजूद पुलिसकर्मी मूकदर्शक बने रहे, जिसने अपराधियों को खुला संरक्षण दिया।” प्रोफेसर कुमार ने बाद में पुष्टि की कि यह तनाव इसलिए बढ़ा क्योंकि वह कैंपस हिंसा की जांच कर रहे थे, जिसमें एबीवीपी से जुड़े छात्रों का नाम आया था, और एक छात्र को कॉलेज यूनियन अध्यक्ष पर हमले के आरोप में निलंबित किए जाने के बाद यह हमला नियोजित प्रतिशोध का रूप ले चुका था।
दीपिका झा का पक्ष: आक्रामक बचाव और ‘शराब’ का आरोप — महिला सुरक्षा का दांव
इस घटना पर चारों ओर से घिरने के बाद, दीपिका झा ने अपने बचाव में एक विवादास्पद और आक्रामक सफाई दी है, जिसमें उन्होंने अपने कृत्य को ‘क्रोध के आवेश में आवेगी प्रतिक्रिया’ बताया है और साथ ही प्रोफेसर पर ही दुर्व्यवहार का आरोप लगा दिया है। झा ने मीडिया को दिए अपने बयान में कहा कि वे कॉलेज में छात्रों की गंभीर शिकायत पर गई थीं, जहाँ छात्रों ने प्रोफेसर कुमार पर राजनीतिक पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर दुर्व्यवहार और शारीरिक हमले का आरोप लगाया था।
उन्होंने दावा किया कि प्रिंसिपल के कार्यालय में, पुलिस की उपस्थिति के बावजूद, प्रोफेसर सुजीत ने उन्हें धमकाया और अशोभनीय अपशब्दों का इस्तेमाल किया। झा ने आगे कहा कि प्रोफेसर की लगातार धमकियां, घूरना और अशोभनीय टिप्पणियां बताती हैं कि वे शराब के नशे में थे, और पुलिस द्वारा हस्तक्षेप न किए जाने पर ही उन्होंने आवेगी प्रतिक्रिया दी, जिसके लिए उन्हें खेद है। हालाँकि उन्होंने अपने थप्पड़ मारने के कृत्य के लिए ‘खेद’ व्यक्त किया, लेकिन उन्होंने तुरंत ही महिला छात्राओं की सुरक्षा का दांव चलते हुए अपने उद्देश्य को जायज ठहराया और प्रोफेसर के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग भी कर दी, जिससे यह मामला आपराधिक हिंसा बनाम महिला सुरक्षा के राजनीतिक विवाद में बदल गया है।
राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और आक्रोश की लहर: ‘मॉबोक्रेसी’ और ‘गुंडागर्दी’ का आरोप
इस शर्मनाक घटना ने पूरे देश के शिक्षक और छात्र संगठनों में व्यापक आक्रोश और रोष पैदा कर दिया है। दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (डीयूटीए) ने इस कृत्य की कड़ी निंदा करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन से तत्काल जांच और कड़ी कार्रवाई की मांग की है। डीयूटीए ने अपने आधिकारिक पत्र में स्पष्ट किया है कि “एक वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य पर ड्यूटी के दौरान हमला करना शैक्षणिक संस्थान की गरिमा और उसके मूल मूल्यों पर एक सीधा प्रहार है,” और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (डीटीएफ) ने तो इसे “मॉबोक्रेसी (भीड़तंत्र)” और “एबीवीपी-प्रायोजित गुंडागर्दी” करार दिया है, और चेतावनी दी है कि यदि अपराधियों को तुरंत दंडित नहीं किया गया तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिंसा का चक्र फैल सकता है।
नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) ने इसे “एबीवीपी-प्रायोजित गुंडागर्दी” का स्पष्ट उदाहरण बताया, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी ने कहा कि “पुलिस की मौजूदगी में प्रोफेसर पर यह हमला शैक्षणिक समुदाय की गरिमा पर किया गया एक कायरतापूर्ण हमला है।” सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर वीडियो वायरल होने के बाद हजारों यूजर्स ने आक्रोश जताया, जहाँ टिप्पणी की गई कि “यह एबीवीपी सिखाती नहीं है। अगर लिंग उलट दिया जाए तो सोशल मीडिया पर कितना बड़ा हंगामा मचे!”
यूनिवर्सिटी की कार्रवाई और राजनीतिक तनाव का निष्कर्ष
इस घटना के एक दिन बाद, चौतरफा राजनीतिक और सामाजिक दबाव के चलते दिल्ली यूनिवर्सिटी प्रशासन ने शुक्रवार को एक छह सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है, जिसे घटना की निष्पक्ष और त्वरित जांच करने का जिम्मा सौंपा गया है। प्रोफेसर कुमार ने भी सार्वजनिक रूप से खुलासा किया है कि इस घटना के बाद उन पर कॉलेज प्रशासन द्वारा इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाया गया था, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या कॉलेज प्रशासन राजनीतिक दबाव में काम कर रहा था।
कॉलेज प्रशासन ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन कैंपस में किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए सुरक्षा व्यवस्था को तत्काल बढ़ा दिया गया है। यह घटना स्पष्ट रूप से डीयू में छात्र संगठनों के बीच बढ़ते हुए खतरनाक तनाव और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को उजागर करती है, जो अब हिंसक और आपराधिक रूप लेने लगी है, जहाँ एक प्रोफेसर की गरिमा को सरेआम कुचला गया है। अब पूरे देश की नजरें दिल्ली यूनिवर्सिटी की इस जांच रिपोर्ट पर टिकी हैं कि क्या शैक्षणिक गुंडागर्दी करने वाली दीपिका झा को कड़ी सज़ा मिलती है, या सत्ता के संरक्षण में उन्हें छूट मिल जाती है।