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UNGA 80: डोनाल्ड ट्रम्प का निशाना ‘ग्लोबलिस्ट संस्थाएँ’, विदेशी नीति रिकॉर्ड को दुनिया के सामने पेश करेंगे

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न्यूयॉर्क, 23 सितंबर 

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का पूरा फोकस उन बहुपक्षीय वैश्विक संस्थाओं पर हमला करने पर है, जिन्हें वे “ग्लोबलिस्ट” कहकर पुकारते हैं। उनके मुताबिक, यही संस्थाएँ दुनिया की समस्याओं को हल करने के बजाय और उलझा रही हैं। इसी मंच पर वे अपनी विदेश नीति की उपलब्धियों को भी गिनाएंगे और यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि “अमेरिका फर्स्ट” ही असली रास्ता है। इसीलिए हेडलाइन का हर शब्द—ग्लोबलिस्ट संस्थाओं पर वार और विदेश नीति रिकॉर्ड का बचाव—सीधे ट्रम्प के एजेंडे को जस्टिफाई करता है।

ट्रम्प अपने भाषण में यह दावा करेंगे कि अमेरिका को अब और बोझ नहीं उठाना चाहिए, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद जैसी संस्थाएँ अमेरिकी हितों के खिलाफ काम कर रही हैं। वे कहेंगे कि इन संगठनों की नीतियों ने सुरक्षा, मानवाधिकार और विकास के मामलों में निष्फलता दिखाई है। उनके अनुसार, “राष्ट्रों को खुद अपने नागरिकों के लिए खड़ा होना चाहिए, न कि खोखली वैश्विक नीतियों पर भरोसा करना चाहिए।”

इसके साथ ही ट्रम्प अपनी विदेश नीति की “सफलताएँ” भी सामने रखेंगे। वे याद दिलाएंगे कि उनके नेतृत्व में अमेरिका ने “अनावश्यक युद्धों से दूरी बनाई”, मध्य-पूर्व में नए समीकरण गढ़े, और आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई की। वे यह भी साबित करना चाहेंगे कि उनके कार्यकाल ने अमेरिका की सीमाओं को मज़बूत किया और अरबपतियों की जगह आम अमेरिकियों के हितों को प्राथमिकता दी।

हालाँकि, उनका यह रुख विवादों से खाली नहीं है। आलोचकों का कहना है कि ट्रम्प की “ग्लोबल विरोधी” नीति ने अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय साख को नुकसान पहुँचाया और मित्र देशों के साथ रिश्ते कमजोर किए। मानवाधिकार समूह चेतावनी दे रहे हैं कि यदि अमेरिका वैश्विक संस्थाओं से दूरी बनाता है, तो जलवायु परिवर्तन, महामारी और युद्ध जैसे संकटों का समाधान असंभव हो जाएगा।

मौजूदा हालात—गाज़ा संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध और अफ्रीका के कई देशों में मानवीय संकट—इस भाषण को और अहम बना रहे हैं। ट्रम्प इन सभी मुद्दों को यह साबित करने के लिए इस्तेमाल करेंगे कि मौजूदा वैश्विक ढाँचा असफल है और “अमेरिका फर्स्ट” ही एकमात्र व्यावहारिक दृष्टिकोण है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा का यह सत्र अब सिर्फ कूटनीतिक संवाद का मंच नहीं रहेगा, बल्कि यह एक ऐसी बहस का मैदान बनेगा जिसमें एक तरफ ट्रम्प की राष्ट्रवादी विदेश नीति होगी और दूसरी तरफ वैश्विक संस्थाओं की प्रासंगिकता पर सवाल।

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