नई दिल्ली | 1 अगस्त 2025
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25% टैरिफ लगाए जाने की घोषणा के बाद, देश की ऊर्जा रणनीति में बड़ा मोड़ आया है। सूत्रों के अनुसार, भारत की सरकारी तेल कंपनियों — इंडियन ऑयल (IOCL), भारत पेट्रोलियम (BPCL), हिंदुस्तान पेट्रोलियम (HPCL) और मैंगलोर रिफाइनरी (MRPL) — ने स्पॉट मार्केट से रूसी कच्चे तेल की खरीद अस्थायी रूप से रोक दी है।
हालांकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने ऐसी कोई औपचारिक हिदायत नहीं दी है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, “तेल कंपनियों को रूसी तेल से हटने का कोई आदेश नहीं दिया गया है।”
क्या है मामला?
डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले सप्ताह एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए भारत समेत कई देशों पर 7 अगस्त 2025 से 25% टैरिफ लागू करने की घोषणा की थी। ट्रंप ने यह भी कहा कि भारत और रूस के बीच तेल और हथियारों के व्यापार पर अतिरिक्त दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी, हालांकि उसकी मात्रा अभी घोषित नहीं की गई है। ट्रंप ने Truth Social पर लिखा, “भारत और रूस अपनी मरी हुई अर्थव्यवस्थाओं को साथ लेकर डूब सकते हैं, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।” इस बयान से दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों पर भी दबाव बढ़ा है।
किसे कितना असर?
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है, और उसकी लगभग 40% जरूरतें स्पॉट मार्केट से पूरी होती हैं। ऐसे में रूसी उराल तेल, जो अन्य विकल्पों की तुलना में सस्ता है, न खरीदने से लागत बढ़ेगी और रिफाइनिंग मार्जिन पर असर पड़ सकता है। हालांकि रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी, जिनके रूस से दीर्घकालिक अनुबंध हैं, अपनी खरीद जारी रख सकती हैं। ये कंपनियां पहले भी यूरोपीय बाजारों में परिष्कृत उत्पादों को निर्यात कर अच्छा मुनाफा कमा चुकी हैं।
सरकार का रुख
सरकार की तरफ से यह स्पष्ट किया गया है कि वह किसी प्रकार की अमेरिकी दबाव नीति के तहत निर्णय नहीं ले रही है। तेल मंत्री हरदीप सिंह पुरी पहले ही यह कह चुके हैं कि अगर रूसी तेल हटा दिया गया तो कच्चे तेल की कीमतें $130–140 प्रति बैरल तक जा सकती हैं। पुरी ने यह भी कहा था कि भारत वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की ओर तेजी से शिफ्ट कर सकता है।
आर्थिक असर
2024-25 में भारत ने रूस से लगभग $50.3 बिलियन का कच्चा तेल आयात किया, जो देश के कुल तेल आयात का एक-तिहाई से अधिक है। ट्रंप के टैरिफ और संभावित दंड से भारत के निर्यात, विदेशी निवेश, और तेल आपूर्ति श्रृंखला पर बड़ा असर पड़ सकता है।
ट्रंप का टैरिफ: व्यापार नहीं, दबाव की रणनीति
डोनाल्ड ट्रंप का 25% टैरिफ कोई साधारण व्यापारिक फैसला नहीं बल्कि एक स्पष्ट कूटनीतिक दबाव है, जो भारत को रूस के साथ उसके रिश्तों पर पुनर्विचार के लिए बाध्य कर रहा है। “मरी हुई अर्थव्यवस्था” वाला ट्रंप का बयान सिर्फ अपमानजनक नहीं, बल्कि यह एक रणनीतिक संकेत है कि अमेरिका भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को चुनौती देना चाहता है। ट्रंप जानते हैं कि तेल और रक्षा दो ऐसे क्षेत्र हैं जो भारत की विदेश नीति की रीढ़ हैं, और उसी रीढ़ पर वार किया गया है। भारत के लिए अब यह सिर्फ एक टैक्स इशू नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान और वैश्विक संतुलन की लड़ाई बन गई है।
ऊर्जा नीति की अग्निपरीक्षा: तेल कंपनियों का कदम क्यों महत्वपूर्ण है
IOCL, BPCL, HPCL जैसी सरकारी तेल कंपनियों द्वारा रूसी कच्चे तेल की स्पॉट खरीद को रोकना केवल एक कॉर्पोरेट निर्णय नहीं बल्कि एक मौन राजनयिक संकेत है। यह दिखाता है कि भारत की कंपनियां फिलहाल अमेरिकी दबाव को गंभीरता से ले रही हैं, भले ही सरकार सार्वजनिक रूप से इससे इनकार कर रही हो। ध्यान देने योग्य बात यह है कि निजी कंपनियों—रिलायंस और नायरा एनर्जी—ने अब तक अपने दीर्घकालिक समझौतों को जारी रखने की बात कही है, जो यह स्पष्ट करता है कि जोखिम लेने की क्षमता सरकारी क्षेत्र में नहीं, बल्कि निजी क्षेत्र में है। इससे यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या सार्वजनिक कंपनियों को ‘नीतिगत अस्पष्टता’ के बीच अपने व्यावसायिक फैसले खुद लेने पड़ रहे हैं?
महंगाई की आग और रिफाइनिंग मार्जिन पर चोट
रूसी उराल तेल भारत के लिए लागत के लिहाज़ से सबसे लाभदायक रहा है। स्पॉट मार्केट से उसकी अनुपस्थिति का मतलब है कि रिफाइनिंग मार्जिन—यानी कच्चे तेल को परिष्कृत कर मुनाफा कमाने की प्रक्रिया—सीधे प्रभावित होगी। इसका असर सबसे पहले पेट्रोल-डीजल की कीमतों में देखा जाएगा। कच्चे तेल की कीमतों में मात्र $5 की वृद्धि भी पेट्रोल की खुदरा कीमत में ₹4–6 का इजाफा कर सकती है। जब कच्चा तेल महंगा होगा, ट्रांसपोर्ट महंगा होगा, तो खाद्यान्न और रोजमर्रा की ज़रूरत की चीज़ें भी महंगी होंगी, यानी आम आदमी की जेब और अधिक दबेगी।
विदेश नीति का नाजुक संतुलन: भारत अब किसके साथ खड़ा होगा?
भारत की रूस से साझेदारी ऐतिहासिक रही है, जबकि अमेरिका के साथ संबंध बीते एक दशक में व्यापार और रक्षा क्षेत्र में बढ़े हैं। लेकिन अब जब दोनों महाशक्तियों के बीच भारत से परोक्ष वफादारी की मांग की जा रही है, तो भारत के लिए ‘गैर-समर्पित रणनीति’ (Strategic Autonomy) को बचाए रखना कठिन होता जा रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए, जबकि रूस भारत को अपना सबसे भरोसेमंद साझेदार मानता है। यह स्थिति भारत की विदेश नीति के लिए सांप-छछूंदर जैसी दुविधा बन गई है।
आर्थिक मोर्चे पर नया संकट: निवेश, निर्यात और बजट पर संभावित आघात
यदि अमेरिकी टैरिफ के कारण भारतीय निर्यात में गिरावट आती है, और कच्चे तेल की लागत बढ़ती है, तो इसका सबसे बड़ा असर भारत के चालू खाते के घाटे (CAD), विदेशी निवेश (FDI/FPI) और रुपए की मजबूती पर पड़ेगा। पहले से ही ₹ कमजोर हो रहा है और बाजार अस्थिरता से घिरा है। सरकार को तेल सब्सिडी बढ़ानी पड़ सकती है या टैक्स कम करने पड़ सकते हैं—दोनों ही स्थिति में राजकोषीय घाटा बढ़ेगा और बजट के अन्य सामाजिक खर्चों पर असर पड़ेगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि एक फैसले का असर भारत के पूरे आर्थिक ढांचे पर पड़ने वाला है।
यह सिर्फ तेल की बात नहीं, भारत की नीति और प्रतिष्ठा की भी परीक्षा है
ट्रंप का टैरिफ, रूसी तेल पर रोक और सरकार की स्थिति ने मिलकर भारत की ऊर्जा, आर्थिक और रणनीतिक नीति को एक कठिन मोड़ पर ला खड़ा किया है। अब सरकार को जल्द निर्णय लेने होंगे—क्या अमेरिका की शर्तों के आगे झुकना है या दीर्घकालिक हित में आत्मनिर्भर ऊर्जा नीति को बचाना है? हर फैसला अब घरेलू महंगाई, वैश्विक साख और कूटनीतिक संतुलन को प्रभावित करेगा। यह वह क्षण है जब भारत को सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं, दृढ़ और दूरदर्शी नीति के साथ जवाब देना होगा।