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ट्रम्प की शांति योजना को मिली मंज़ूरी — गाज़ा में युद्धविराम और बंधकों की रिहाई का रास्ता खुला

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ट्रम्प की डील पर इज़रायल ने लगाई मुहर — दो साल के खून-खराबे के बाद ऐतिहासिक फैसला

गाज़ा संघर्ष के बीच एक ऐतिहासिक घटनाक्रम सामने आया है। इज़रायल की कैबिनेट ने आखिरकार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता में तैयार गाज़ा युद्धविराम और बंधक रिहाई योजना को मंजूरी दे दी है।

इस फैसले के साथ ही दो वर्षों से जारी लगातार बमबारी, हवाई हमलों और जमीनी अभियानों के बीच पहली बार शांति की उम्मीद की किरण जगी है। ट्रम्प की इस योजना को अमेरिका, मिस्र, क़तर और तुर्की के सहयोग से तैयार किया गया था। यह प्रस्ताव तीन-चरणीय समझौता है जिसमें पहले युद्धविराम, फिर बंधकों की रिहाई और अंत में मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति की व्यवस्था की गई है। इज़रायली कैबिनेट की देर रात हुई बैठक में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बहुमत के साथ इस समझौते को स्वीकृति दी। हालांकि कई कट्टर मंत्रियों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह “हमास को राजनीतिक ऑक्सीजन” देगा। फिर भी प्रस्ताव पारित हो गया, जिसे अब तक का सबसे साहसिक निर्णय माना जा रहा है।

युद्धविराम की शर्तें — 24 घंटे में गोलीबारी थमेगी, 72 घंटे में बंधक रिहा होंगे

BBC और Reuters की रिपोर्ट के अनुसार, समझौते के तहत इज़रायल 24 घंटे के भीतर सैन्य अभियान रोक देगा और गाज़ा से सैनिकों को चरणबद्ध तरीके से पीछे बुलाएगा। इसके बदले हमास को 72 घंटे के भीतर सभी बंधकों — जिनमें महिलाएँ, बच्चे, बुजुर्ग और विदेशी नागरिक शामिल हैं — को सुरक्षित रिहा करना होगा।

इज़रायल ने यह भी स्पष्ट किया है कि बंधक अगर जीवित न भी हों, तो उनके शव और पहचान के सबूत लौटाना हमास की जिम्मेदारी होगी। योजना के पहले चरण में दोनों पक्षों के बीच सीमित सीमा नियंत्रण और संयुक्त निगरानी दल बनाए जाएंगे, ताकि समझौते का उल्लंघन न हो सके।

ट्रम्प की सक्रिय भूमिका — व्हाइट हाउस से सीधे निगरानी

इस पूरे प्रस्ताव को ट्रम्प ने “The Abraham Peace Continuation Plan” नाम दिया है, जो उनके पुराने अब्राहम समझौते की अगली कड़ी है। ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर बयान जारी करते हुए कहा, “यह सिर्फ युद्धविराम नहीं, बल्कि इंसानियत का पुनर्जन्म है। गाज़ा और यरूशलम दोनों अब शांति की दिशा में लौट सकते हैं।”

अमेरिकी सुरक्षा सलाहकारों के मुताबिक, ट्रम्प प्रशासन ने इज़रायल को भरोसा दिलाया है कि अमेरिका इस पूरे समझौते की निगरानी करेगा। संयुक्त राष्ट्र और क़तर-मिस्र गठबंधन को भी इसमें मध्यस्थ की भूमिका दी गई है।

विपक्ष का विरोध — नेतन्याहू पर ‘कमज़ोरी’ का आरोप

इज़रायल के विपक्षी दलों ने इस फैसले को “खतरनाक समझौता” करार दिया है। दक्षिणपंथी गुट रिलिजियस सियोनिस्ट पार्टी और ज्यूइश पावर ने कहा है कि नेतन्याहू ने “हमास के आगे झुककर” देश की सुरक्षा से समझौता किया है। कई मंत्रियों ने यह भी दावा किया कि हमास इस युद्धविराम का इस्तेमाल “फिर से हथियार इकट्ठे करने और सुरंगें पुनर्निर्मित करने” के लिए करेगा।

लेकिन नेतन्याहू ने कहा, “हम इज़रायल की सुरक्षा से समझौता नहीं करेंगे। लेकिन हमें उन निर्दोष लोगों को वापस लाना है जो हमास के कब्जे में हैं।”

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया — दुनिया ने जताई राहत की सांस

अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत और संयुक्त राष्ट्र ने इस कदम का स्वागत किया है। यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने इसे “अमानवीय युद्ध के अंत की शुरुआत” बताया। भारत ने बयान जारी कर कहा कि “मानवीय मूल्यों की रक्षा और स्थायी शांति के लिए यह सकारात्मक कदम है।” यूरोपीय संघ ने गाज़ा में तत्काल राहत सामग्री भेजने की घोषणा की है, जबकि क़तर और मिस्र ने सीमा चौकियों को फिर से खोलने का फैसला किया है।

अब भी बाकी है चुनौती — भरोसे की परीक्षा बाकी

भले ही युद्धविराम और बंधक रिहाई की घोषणा ऐतिहासिक कही जा रही हो, लेकिन भरोसे की कमी और पिछले अनुभव इस समझौते पर छाया डालते हैं।

इज़रायल के सैन्य अधिकारियों ने स्पष्ट कहा है कि अगर हमास ने किसी भी स्तर पर शर्तों का उल्लंघन किया, तो ऑपरेशन “आयरन रिटर्न” तुरंत शुरू कर दिया जाएगा।

दूसरी ओर, हमास की राजनीतिक शाखा ने बयान जारी किया, “हम यह शांति किसी डर से नहीं, बल्कि अपने लोगों के जीवन की खातिर स्वीकार कर रहे हैं।”

 क्या यह शांति टिकेगी या नया विस्फोट लाएगी?

गाज़ा में खून से सनी ज़मीन पर शांति का यह प्रस्ताव एक उम्मीद का दीपक है, लेकिन उसके बुझने का खतरा अभी भी बरकरार है। इज़रायल और हमास दोनों के बीच अविश्वास की दीवारें ऊँची हैं — और कोई भी छोटी चिंगारी इस समझौते को राख में बदल सकती है। फिलहाल, दुनिया ने राहत की सांस ली है। लेकिन सच्चाई यही है कि मध्य पूर्व की शांति कभी भी एक रात में नहीं आती — वह हर दिन दोबारा कमानी पड़ती है।

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