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ट्रंप का विस्फोटक फैसला: H-1B वीज़ा पर $100,000 फीस

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वाशिंगटन 20 सितंबर 2025

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय आईटी और टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स पर सीधा वार करते हुए H-1B वीज़ा फीस में जबरदस्त बढ़ोतरी का ऐलान किया है। 21 सितंबर से लागू होने वाले इस नए नियम के तहत अब किसी भी H-1B वीज़ा की लागत $100,000 यानी करीब 83 लाख रुपये तक पहुंच जाएगी। यह फीस इतनी भारी है कि यह न केवल सामान्य कर्मचारियों बल्कि कई कंपनियों के लिए भी असंभव सी चुनौती बन गई है। अमेरिका की यह नई नीति अब सीधी-सीधी यह संकेत देती है कि वीज़ा अब केवल अमीरों और खास लोगों का विशेषाधिकार बनने जा रहा है।

भारतीय प्रतिभा पर सबसे बड़ा असर

दुनिया जानती है कि अमेरिकी टेक इंडस्ट्री की रीढ़ भारतीय और एशियाई इंजीनियर हैं। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न, मेटा और इंटेल जैसी कंपनियों में हज़ारों भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स अपनी मेहनत और काबिलियत से अमेरिका की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन अब इस नई फीस संरचना के चलते उनकी स्थिति बेहद कठिन हो जाएगी। ज़्यादातर कर्मचारियों की सालाना सैलरी ही इस वीज़ा फीस से कम है। इसका सीधा मतलब है कि ट्रंप प्रशासन विदेशी दिमागों को अमेरिका से बाहर धकेलना चाहता है।

‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का खतरनाक चेहरा

ट्रंप लगातार ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति का हवाला देते रहे हैं, लेकिन यह नीति धीरे-धीरे ‘अमेरिका ओनली’ की नीति में तब्दील होती दिख रही है। विदेशी प्रोफेशनल्स के बिना सिलिकॉन वैली की कल्पना अधूरी है, फिर भी ट्रंप प्रशासन उनकी राह रोकने पर अड़ा है। असलियत यह है कि यह कदम अमेरिका के अंदरूनी राजनीतिक दबाव और बेरोजगारी के डर से उठाया गया है। मगर सवाल यह है कि क्या यह फैसला सचमुच अमेरिकी युवाओं को नौकरी देगा या केवल अमेरिका की वैश्विक साख को चोट पहुँचाएगा?

भारतीय सरकार और कंपनियों के लिए चेतावनी

यह फैसला भारत के लिए भी चेतावनी है। हज़ारों भारतीय परिवार इस फैसले से प्रभावित होंगे। भारतीय सरकार को अब यह समझना होगा कि हमारे सर्वश्रेष्ठ युवा अमेरिका में अवसर की तलाश में जाते हैं, लेकिन वहाँ उनकी प्रतिभा को आर्थिक हथकड़ी पहनाई जा रही है। ऐसे में भारत को अपने आईटी सेक्टर, स्टार्टअप इकोसिस्टम और रिसर्च सुविधाओं को इस स्तर तक मज़बूत करना होगा कि हमारे लोग बाहर जाने के बजाय यहीं पर अपनी काबिलियत दिखाएँ। यह समय है जब भारत को Reverse Brain Drain की नीति पर ठोस कदम उठाना चाहिए।

टेक्नोलॉजी सेक्टर पर वैश्विक प्रभाव

अमेरिका का यह फैसला सिर्फ़ भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरी दुनिया के टेक सेक्टर पर इसका असर देखने को मिलेगा। विदेशी दिमागों पर पाबंदी का सीधा असर नवाचार (Innovation), नई टेक्नोलॉजी और रिसर्च की गति पर पड़ेगा। जब सबसे प्रतिभाशाली दिमाग ही अमेरिका आने से कतराएंगे, तो आने वाले समय में सिलिकॉन वैली की चमक फीकी पड़ना तय है। यह कदम कहीं न कहीं चीन, यूरोप और खाड़ी देशों को मजबूत करेगा, जहाँ विदेशी दिमागों का स्वागत है और उनके लिए काम करने का बेहतर माहौल भी उपलब्ध है।

क्या अमेरिका अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है?

सवाल उठता है कि क्या ट्रंप प्रशासन वाकई अमेरिका को मजबूत करना चाहता है या फिर यह फैसला अमेरिका के टेक साम्राज्य की जड़ों में दीमक साबित होगा। विदेशी प्रतिभा को बाहर धकेलने का सीधा असर यह होगा कि अमेरिकी कंपनियाँ नए विचारों, नई तकनीक और नए प्रोजेक्ट्स से वंचित रह जाएँगी। यह कदम अमेरिका को अल्पकालिक राजनीतिक फायदा तो दिला सकता है, लेकिन दीर्घकाल में यही फैसला उसके आर्थिक और तकनीकी साम्राज्य को कमजोर कर देगा।

 अब बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत इस मौके को भुनाकर अपने देश में ही प्रतिभा को रोक पाएगा? और क्या अमेरिका अपनी गलतियों को सुधारकर वैश्विक प्रतिभा के महत्व को समझेगा, या फिर यह फैसला आने वाले समय में उसके पतन की नींव रख देगा?

 

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