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नई ट्रेड वॉर का बिगुल : चीन पर 100% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की ट्रंप की धमकी

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वाशिंगटन 12 अक्टूबर 2025

ट्रंप का विस्फोटक ऐलान: चीन पर 100% अतिरिक्त शुल्क का सीधा और अप्रत्याशित वार

 राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक अत्यंत विस्फोटक और वैश्विक अर्थव्यवस्था को झकझोर देने वाला ऐलान किया है, जिससे अमेरिका और चीन के बीच एक बार फिर पूर्ण ट्रेड वॉर (व्यापार युद्ध) की गंभीर गूंज सुनाई दे रही है। ट्रंप ने घोषणा की कि उनका प्रशासन सत्ता में आते ही 1 नवंबर 2025 से चीन से आयातित सभी वस्तुओं पर 100% अतिरिक्त टैरिफ (आयात शुल्क) लगाएगा। यह घोषणा इतनी बड़ी है कि यह शुल्क मौजूदा, पहले से लागू दरों के ऊपर होगा, जिसका अर्थ है कि चीनी उत्पादों की कीमत अमेरिका में दो से तीन गुना तक बढ़ सकती है। ट्रंप ने अपने पसंदीदा सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर एक कठोर पोस्ट में यह चेतावनी जारी की, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा कि “1 नवंबर से अमेरिका, चीन पर पहले से लागू सभी टैरिफ़ के अतिरिक्त 100% का नया शुल्क लगाएगा।” 

यह घोषणा एक ऐसे नाजुक समय में आई है जब बीजिंग ने हाल ही में ‘रेयर अर्थ मिनरल्स’ (दुर्लभ खनिजों) के निर्यात पर अचानक प्रतिबंध लगा दिए हैं, ये वे खनिज हैं जिनका उपयोग रक्षा उपकरणों, इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल उपकरणों और आधुनिक ग्रीन एनर्जी टेक्नोलॉजी में अत्यंत महत्वपूर्ण रूप से किया जाता है। ट्रंप ने चीन की इस नीति को “दुनिया को बंधक बनाने की कोशिश” बताया और इसे “शत्रुतापूर्ण व्यापारिक रवैया” करार देते हुए स्पष्ट कर दिया कि यह केवल व्यापार का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक प्रभुत्व का प्रश्न है।

 ‘रेयर अर्थ’ विवाद से भड़की नई जंग: तकनीकी और रणनीतिक युद्ध का नया अध्याय

इस नई व्यापार जंग की आग भड़कने का तात्कालिक कारण ‘रेयर अर्थ’ खनिजों का विवाद है, जिसने इस व्यापारिक टकराव को एक तकनीकी युद्ध के नए अध्याय में बदल दिया है। चीन वर्तमान में दुनिया के कुल रेयर अर्थ मटेरियल्स की प्रोसेसिंग का लगभग 90% हिस्सा नियंत्रित करता है, जिसका सीधा अर्थ है कि लगभग हर स्मार्टफोन, हर इलेक्ट्रिक कार और दुनिया का हर सोलर पैनल कहीं न कहीं चीन की आपूर्ति श्रृंखला पर ही निर्भर है। बीजिंग द्वारा इन महत्वपूर्ण सामग्रियों के निर्यात को सीमित करने के फैसले को अमेरिका ने अब केवल आर्थिक कदम नहीं, बल्कि “आर्थिक हथियार” के रूप में देखा है, जिसका इस्तेमाल अमेरिका की तकनीकी और रक्षा क्षमता को कमजोर करने के लिए किया जा सकता है। इसी रणनीतिक खतरे के जवाब में ट्रंप ने यह 100% टैरिफ की घोषणा की है, जो न केवल चीन को बल्कि पूरी दुनिया की जटिल औद्योगिक श्रृंखला को एक झटके में हिला सकती है।

 ट्रंप ने इस बात पर जोर दिया कि चीन की नीतियां अब केवल व्यापारिक लाभ के लिए नहीं रहीं, बल्कि वे “रणनीतिक आक्रामकता” बन चुकी हैं। उन्होंने दृढ़ता से दावा किया कि अमेरिका को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा, तकनीकी आत्मनिर्भरता और आर्थिक संप्रभुता के लिए ऐसे कठोर कदम उठाने ही होंगे, जिसमें न केवल टैरिफ बढ़ाना शामिल है, बल्कि अमेरिकी सॉफ्टवेयर और उच्च तकनीक के निर्यात पर नए और सख्त नियंत्रण भी लगाए जा सकते हैं।

बाजार में हड़कंप, शेयर बाजार धड़ाम: तकनीकी कंपनियों पर सबसे बड़ा आघात

डोनाल्ड ट्रंप की इस अप्रत्याशित और आक्रामक घोषणा के बाद वैश्विक वित्तीय बाजारों में तुरंत और व्यापक अफरातफरी मच गई। अमेरिकी शेयर बाजार पर इसका सीधा और नकारात्मक असर पड़ा, जहाँ प्रमुख S&P 500 इंडेक्स लगभग 2.7% गिर गया, जबकि NASDAQ इंडेक्स में 3.6% की भारी गिरावट दर्ज की गई, जो अप्रैल के बाद का सबसे खराब एकल दिन साबित हुआ। निवेशकों ने तुरंत जोखिम से बचाव के लिए पूंजी निकालनी शुरू कर दी, जिससे विशेष रूप से तकनीकी कंपनियों के शेयर, जो चीनी पार्ट्स, कंपोनेंट्स और असेंबली पर बहुत अधिक निर्भर हैं, सबसे अधिक और बुरी तरह प्रभावित हुए। 

इस गिरावट के विपरीत, अमेरिका की कुछ रेयर अर्थ माइनिंग और प्रोसेसिंग कंपनियों के शेयरों में अचानक तेजी आई, क्योंकि बाजार को उम्मीद है कि चीन से आपूर्ति घटने पर घरेलू और मित्र देशों से उत्पादन की मांग बढ़ेगी। विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह टैरिफ नीति वास्तव में लागू हुई, तो इससे वैश्विक सप्लाई चेन पर बड़ा और विनाशकारी दबाव पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, और ग्रीन एनर्जी उपकरणों की कीमतों में भारी उछाल आना तय है, जिसका सीधा बोझ अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ेगा

राजनयिक तनाव बढ़ा: ‘आर्थिक राष्ट्रवाद’ और राजनीतिक रणनीति

ट्रंप की यह घोषणा केवल एक आर्थिक कदम नहीं है, बल्कि यह एक गहरी राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति भी हो सकती है। ट्रंप ने संकेत दिया कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से प्रस्तावित महत्वपूर्ण बैठक अब संभवतः रद्द हो सकती है, क्योंकि उन्होंने कहा कि “फिलहाल बातचीत की कोई विशेष वजह नहीं बची है।” हालांकि, उन्होंने राजनीतिक पैंतरेबाजी के तहत यह भी जोड़ा कि अगर बीजिंग “सकारात्मक रवैया” दिखाता है, तो वह अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकते हैं। ट्रंप का यह बयान स्पष्ट संकेत देता है कि इस भारी-भरकम टैरिफ की धमकी का एक मुख्य उद्देश्य चीन को बातचीत की मेज पर झुकने और दुर्लभ खनिजों पर लगाए गए निर्यात प्रतिबंध को हटाने के लिए मजबूर करना है। विश्लेषकों का सर्वसम्मति से मानना है कि यह कदम एक बार फिर अमेरिका की ‘आर्थिक राष्ट्रवाद’ नीति को राजनीतिक रूप से पुनर्जीवित करता है, जो ट्रंप के पिछले कार्यकाल में भी अंतरराष्ट्रीय बहस का केंद्र रही थी। इस बार अंतर यह है कि दुनिया पहले से कहीं ज़्यादा जटिल रूप से परस्पर जुड़ी हुई है, और किसी भी बड़े आर्थिक फैसले के भू-राजनीतिक प्रभाव सीमाओं से कहीं आगे निकलकर वैश्विक स्थिरता को प्रभावित करेंगे।

 वैश्विक असर और उपभोक्ता पर बोझ: ग्लोबल ट्रेड वॉर 2.0 का खतरा

अर्थशास्त्रियों का व्यापक रूप से मानना है कि अगर यह 100% टैरिफ़ वास्तव में लागू हो जाता है, तो यह एक नई वैश्विक व्यापार जंग (Global Trade War 2.0) की निश्चित शुरुआत होगी, जिसके गंभीर परिणाम होंगे। दुनिया पहले से ही कई देशों में बढ़ती महंगाई, आपूर्ति संकट और मंदी के दबावों से जूझ रही है, और अब यह आक्रामक कदम दुनिया भर की उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों को और अधिक बढ़ा देगा। यदि चीन बदले में अमेरिकी कृषि उत्पादों, प्रौद्योगिकी या अन्य उत्पादों पर प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाता है, तो इसका नकारात्मक असर अमेरिकी किसानों, बड़ी टेक कंपनियों और अंततः उपभोक्ताओं पर सीधा और विनाशकारी रूप से पड़ेगा। साधारण अमेरिकी नागरिक के लिए इस नीति का सीधा मतलब होगा — महंगे इलेक्ट्रॉनिक्स, कारों की बढ़ती कीमतें, और रोजमर्रा के आवश्यक सामानों पर अचानक अतिरिक्त खर्च का बोझ। ट्रंप के राजनीतिक विरोधियों का स्पष्ट कहना है कि इस कदम से “अमेरिका फर्स्ट” की नीति ऊपर से पूरी होती दिखेगी, लेकिन वास्तविकता में इसका सबसे बड़ा और असहनीय बोझ अमेरिकी उपभोक्ताओं की जेब पर ही पड़ेगा, जिससे उनकी क्रय शक्ति कम होगी।

 नई आर्थिक जंग के मुहाने पर दुनिया और चुनावी रणनीति

डोनाल्ड ट्रंप का चीन पर 100% टैरिफ लगाने का यह एलान वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा और अप्रत्याशित झटका है, जिसे राजनीतिक विश्लेषक आगामी चुनावी वर्ष की रणनीति के रूप में भी देख रहे हैं। ट्रंप 2025 में फिर से चुनावी अभियान की तैयारी कर रहे हैं, और चीन के खिलाफ इतना कठोर और आक्रामक रुख अपनाना उनकी राष्ट्रवादी और “अमेरिकी नौकरियों के रक्षक” वाली छवि को मजबूत करता है। वह इस मुद्दे को “अमेरिकी नौकरियों की रक्षा” और “चीन की आर्थिक धौंस के खिलाफ लड़ाई” के रूप में पेश करके अपने कोर वोट बैंक को संगठित कर रहे हैं। हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर चीन ने प्रतिशोधात्मक कदम उठाए और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पूरी तरह से बाधित हुई, तो यह नीति उल्टा असर डाल सकती है और अमेरिकी उद्योगों को भी भारी नुकसान होगा। निष्कर्षतः, अमेरिका और चीन — दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं — अगर इस खतरनाक रास्ते पर आगे बढ़ीं, तो यह टकराव केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहेगा; यह तकनीकी, रणनीतिक और राजनीतिक युद्ध का नया और अनिश्चित दौर शुरू कर सकता है। यह फैसला एक “आर्थिक भूकंप” साबित हो सकता है, जिसका कंपनियों से लेकर आम नागरिक तक — हर किसी पर व्यापक असर पड़ेगा। ट्रंप ने भले कहा हो कि “यह कदम अमेरिका की सुरक्षा के लिए है,” पर असल सवाल यह है — क्या यह नीति चीन को कमजोर करेगी या पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को महंगा और अस्थिर बना देगी?

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