लंदन / नई दिल्ली, 8 अक्टूबर 2025
आज दुनिया एक अजीब चौराहे पर खड़ी है—एक ऐसा ‘संक्रमणकालीन युग’ जहाँ पुरानी व्यवस्थाएँ टूट चुकी हैं, पर नई व्यवस्था अब तक बनी नहीं है। जब हम चारों तरफ देखते हैं, तो पाते हैं कि हर देश, हर महाद्वीप किसी न किसी संकट से जूझ रहा है। ये संकट अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि ये एक साथ मिलकर ‘ट्रिपल थ्रेट’ या तीन बड़े खतरों के रूप में हमारी स्थिरता को खोखला कर रहे हैं।
हमारे ABC विश्लेषण ने इन खतरों को स्पष्ट रूप से पहचाना है: A यानी सत्ता पर संकट (Authority Crisis), B यानी आर्थिक संतुलन का बिगड़ना (Balance Distortion), और C यानी सभ्यता पर हमला (Civilization Shock)। अगर हमने इन तीनों मोर्चों पर ध्यान नहीं दिया, तो यह अस्थिरता जल्दी ही एक बड़े तूफान में बदल सकती है। यह समय चुप रहने का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और पुनर्निर्माण का है।
A: जब जनता का भरोसा टूटा – Authority Crisis
हमारा पहला और सबसे बड़ा संकट ‘सत्ता पर संकट’ है। इसका सीधा मतलब है कि अब लोग अपनी सरकारों और राजनीतिक संस्थाओं पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। सोचिए, एक लोकतांत्रिक देश में अगर जनता को यह लगे कि नेता उनके लिए नहीं, बल्कि अपने फायदे के लिए काम कर रहे हैं, तो कैसा माहौल बनेगा? यही आज पूरी दुनिया में हो रहा है। लोकतंत्र और तानाशाही के बीच की रेखा धुंधली हो गई है। यूरोप के कई स्थिर देश बार-बार चुनाव और नेतृत्व संकट से गुजर रहे हैं, वहीं एशिया और अफ्रीका में आंतरिक विरोध और संघर्ष बढ़ रहे हैं। यह सिर्फ नेताओं के बदलने का संकट नहीं है; यह विचारधारा का संकट है। लोग पारंपरिक राजनीति से ऊब चुके हैं और उन्हें कोई ऐसा नया रास्ता चाहिए जो ईमानदार, पारदर्शी और सिर्फ जनता के लिए काम करने का वादा करे। जब सत्ता की नींव ही कमज़ोर पड़ जाती है, तो पूरी व्यवस्था चरमरा जाती है, और यही अस्थिरता की शुरुआत है।
B: पैसों का खेल और बढ़ती खाई – Balance Distortion
दूसरा खतरा है ‘आर्थिक संतुलन का बिगड़ना’। आज पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था हिल चुकी है। महंगाई आसमान छू रही है, बेरोज़गारी कम होने का नाम नहीं ले रही, और अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार खतरनाक स्तर पर बढ़ रही है। एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (जैसे भारत और चीन) में भी विकास की रफ़्तार धीमी हुई है, जिससे पूरी दुनिया के बाजार डर के साए में हैं। यूरोप में ऊर्जा संकट है, और अमेरिका में मंदी का खतरा है। जब बड़े निवेशक अपने पैसे को सुरक्षित जगहों, जैसे सोना या डॉलर में लगाने लगते हैं, तो इसका सीधा मतलब है कि उन्हें दुनिया पर भरोसा नहीं रहा। हमारा विश्लेषण स्पष्ट कहता है: यह संकट तब तक ख़त्म नहीं होगा, जब तक हम अर्थव्यवस्था को सिर्फ मुनाफ़े के बजाय ‘इंसान-केंद्रित’ नहीं बनाते। हमें सामाजिक सुरक्षा, बराबर वितरण, और पर्यावरण की परवाह को अपनी आर्थिक नीतियों का हिस्सा बनाना होगा। वरना यह असंतुलन सामाजिक अशांति को जन्म देता रहेगा।
C: सूचना का हमला और इंसानियत का पतन – Civilization Shock
इन सबसे भी ज़्यादा खतरनाक है तीसरा संकट: ‘सभ्यता पर हमला’। आज हमारा सबसे नया और सबसे घातक हथियार है ‘सूचना युद्ध’ (Information Warfare)। सोशल मीडिया के इस दौर में झूठ (Fake News) और सच के बीच की दीवारें टूट चुकी हैं। हमारे दिमाग पर प्रचार (Propaganda) का हमला हो रहा है, जिससे लोग यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि क्या सही है और क्या गलत। हमारे पास जानकारी का अंबार है, लेकिन समझ की भारी कमी है। तकनीक तो तेज़ी से बढ़ रही है, लेकिन इंसानियत और संवेदना पीछे छूट गई है। सोशल मीडिया ने हमें एक ‘डिजिटल भीड़’ में बदल दिया है जो बिना सोचे-समझे किसी भी बात पर रिएक्ट करने लगती है। जब समाज में संवेदनाओं की जगह सनसनी ले लेती है, और नैतिकता खत्म होने लगती है, तो यह हमारी सभ्यता के लिए एक बड़ा झटका होता है। यह संकट दिखाता है कि हम ‘जानकार’ तो हो गए हैं, पर ‘समझदार’ नहीं रहे।
पुनर्निर्माण ही एकमात्र रास्ता है
आज, हमारे पास कोई सीमा नहीं है—जलवायु परिवर्तन, गरीबी, युद्ध और नफ़रत की राजनीति किसी एक देश की समस्या नहीं रही, बल्कि ये पूरी मानवता के सामने खड़े संकट हैं। ABC विश्लेषण का अंतिम निष्कर्ष बेहद स्पष्ट और ज़रूरी है: हमें पुनर्विभाजन (Re-division) नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण (Reconstruction) की ज़रूरत है। अब समय आ गया है कि दुनिया संकीर्ण सोच से ऊपर उठे और ‘साझा मानवता’ के सिद्धांत पर काम करे।
हमें अपनी राजनीति को सिर्फ सेवा में, अपनी अर्थव्यवस्था को इंसान के लिए, और अपनी तकनीक को नैतिक सीमाओं में बांधना होगा। क्योंकि सभ्यता का असली विकास तब होता है जब शक्ति नहीं, बल्कि संवेदना हमारी दुनिया का केंद्र बन जाती है। अगर हम आज नहीं सुधरे, तो आने वाली पीढ़ियों को एक अस्थिर, डरी हुई और बंटी हुई दुनिया विरासत में मिलेगी।