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बिहार में एक वोट चोर घूम रहा है—और बिहार उस चोर को खदेड़ने के लिए तैयार है : पवन खेड़ा

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नई दिल्ली 9 नवंबर 2025

बिहार की राजनीति इस समय जिस उबाल पर खड़ी है, वह कई दशकों में पहली बार देखा जा रहा है। चुनावी मैदान में नेताओं की भीड़ तो हमेशा होती है, लेकिन इस बार भीड़ नहीं—गुस्सा उतर आया है। जनता के भीतर जो बेचैनी जमा थी, उसे कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने एक ही लाइन में बाहर निकाल दिया: “बिहार में एक वोट चोर घूम रहा है—और बिहार उस चोर को खदेड़ने के लिए तैयार है।” यह सिर्फ राजनीतिक बयान नहीं था, यह उन लाखों मतदाताओं की मौन आवाज़ का विस्फोट था जिन्हें लगता है कि उनके वोट की पवित्रता के साथ खेल हुआ है। इस बयान ने चुनावी माहौल को एकदम विस्फोटक बना दिया है, और यह साफ है कि अब बिहार का चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन की लड़ाई नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा बचाने की जंग बन चुका है।

पवन खेड़ा ने आरोप लगाया कि बिहार सरकार के भीतर ऐसी घबराहट फैल चुकी है कि सत्ता के एक उपमुख्यमंत्री ने घर खाली करना शुरू कर दिया है। वे दावा करते हैं कि फाइलें फाड़ी जा रही हैं, काग़ज़ छुपाए जा रहे हैं और सबूत मिटाने की कोशिशें तेज़ हो चुकी हैं। उनका कहना था कि अगर किसी सरकारी दफ्तर में अचानक आग लग जाए तो इसे हादसा न कहा जाए—क्योंकि सत्ता पक्ष चुनाव से पहले अपने ‘काले कारनामों’ के सबूत जलाने की तैयारी में है। यह आरोप जितना तीखा है, उतना ही गंभीर भी है, और इससे यह समझ आता है कि विपक्ष को सिर्फ राजनीतिक बदलाव की उम्मीद नहीं—बल्कि प्रशासनिक और प्रणालीगत सफाई की ज़रूरत दिखाई दे रही है।

खेड़ा ने बिहार चुनाव को न सिर्फ राज्य का चुनाव बताया बल्कि एक ऐसा मोड़ बताया जो पूरे राष्ट्र की दिशा तय करेगा। उन्होंने कहा कि यह चुनाव यह भी तय करेगा कि भारत की राजनीति आगे कैसी होगी—क्या देश नफरत, भय और ‘कट्टा-कनपटी’ की भाषा में ही फंसा रहेगा, या फिर रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और युवाओं के भविष्य पर आधारित राजनीति को चुनेगा। महागठबंधन ने अपने पूरे कैंपेन को सकारात्मक मुद्दों पर खड़ा किया है—एक ऐसा कैंपेन जो नफरत की राजनीति को चुनौती देता है, और यह संदेश देता है कि भारत असली मुद्दों पर भी चुनाव जीत सकता है। यह वह राजनीतिक सीख है जिसकी आज भारत को सबसे ज्यादा आवश्यकता है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौकब कादरी ने दावा किया कि पहले चरण के चुनाव में महागठबंधन को भारी बढ़त मिली है, और दूसरे चरण में यह बढ़त और मजबूत होगी। उनकी नजर में यह चुनाव युवाओं के मूड से तय होने वाला है। बिहार के युवा वर्षों से बेरोज़गारी, परीक्षा में धांधली, पेपर लीक और उद्योगों की कमी से टूटा हुआ है। बीजेपी और नीतीश सरकार के खिलाफ युवाओं के भीतर एक गहरा आक्रोश है। जब रोजगार मांगने पर युवाओं के हाथ-पैर तोड़े जाते हों, और अपराधियों के सामने नेताओं को सिर झुकाते देखा जाए—तो युवा खुद तय करता है कि बदलाव किस दिशा में चाहिए।

प्रणव झा ने कहा कि बिहार की धरती हमेशा से न्याय की लड़ाई की जननी रही है। इस मिट्टी में वह चेतना है जिसने जेपी आंदोलन को जन्म दिया, जिसने आपातकाल के खिलाफ आवाज उठाई, जिसने हमेशा अत्याचार के सामने झुकने से इनकार किया। उनका कहना था कि बीजेपी और मोदी सरकार ने बिहार को विकास की जगह वादों से छला, और अब उनकी कलई पूरी तरह खुल चुकी है। उन्होंने यह भी कहा कि महागठबंधन सत्ता के लिए राजनीति नहीं करता—उनका उद्देश्य हर व्यक्ति को आगे बढ़ने का मौका देना है, चाहे वह युवा हो, किसान हो, महिला हो या मजदूर।

अखिलेश सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि मोदी जी की एक तस्वीर देश में घूम रही है जिसमें वे बिहार के “सृजन घोटाले” के आरोपियों के सामने हाथ जोड़ते नज़र आते हैं। लेकिन जब छात्र रोजगार मांगने सड़क पर आते हैं, तो उनके खिलाफ लाठीचार्ज करवाया जाता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि नीतीश कुमार के बेटे को भारत सरकार में JDU कोटे के एक मंत्री द्वारा करोड़ों की कीमत वाला सरकारी घर दिया गया—और सवाल उठाया कि क्या यह किसी ‘सौदे’ का हिस्सा था? ऐसे आरोपों ने बिहार चुनाव को और अधिक विस्फोटक और संवेदनशील बना दिया है।

इसके बीच महागठबंधन ने जो घोषणाएँ की हैं, वे बिहार की जनता के लिए एक नए सामाजिक अनुबंध की तरह हैं। 200 यूनिट मुफ्त बिजली, 500 रुपये में गैस सिलेंडर, फ्री बस सेवा, ₹25 लाख तक मुफ्त इलाज, हर परिवार में एक नौकरी, महिलाओं को ₹2,500 प्रतिमाह, जीविका दीदियों को सरकारी दर्जा, आरक्षण सीमा बढ़ाना, पुरानी पेंशन बहाल करना—ये वादे चुनावी भाषण नहीं, बल्कि बिहार की सामाजिक और आर्थिक दिशा बदलने की ठोस योजना लगते हैं। यह मॉडल बिहार को पलायन से समृद्धि की ओर, बेरोज़गारी से अवसर की ओर, और भ्रष्टाचार से पारदर्शिता की ओर ले जा सकता है।

अंततः, बिहार का यह चुनाव अब सिर्फ नेताओं और पार्टियों की लड़ाई नहीं रहा। जनता महसूस कर रही है कि उनका वोट सिर्फ राजनीतिक दलों का भविष्य नहीं, बल्कि लोकतंत्र का भविष्य तय करेगा। बिहार का गुस्सा, बिहार की उम्मीद, बिहार की जागरूकता—सभी एक ही दिशा की ओर संकेत कर रहे हैं: “बस अब और चोरी नहीं—बिहार बदलाव के लिए तैयार है।” बिहार की जनता ने इस बार इतिहास लिखने का संकल्प ले लिया है—और इतिहास हमेशा बहादुर जनता के पक्ष में लिखा जाता है।

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