Home » National » UN ने भारत में “शोरूम” खोल रखा है! सुप्रीम कोर्ट का सख्त प्रहार — जस्टिस सूर्यकांत बोले: शरणार्थी कार्ड बांटने का ठेका किसने दिया?

UN ने भारत में “शोरूम” खोल रखा है! सुप्रीम कोर्ट का सख्त प्रहार — जस्टिस सूर्यकांत बोले: शरणार्थी कार्ड बांटने का ठेका किसने दिया?

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

नई दिल्ली 8 अक्टूबर 2025

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान एक ऐसा क्षण आया जब न्याय की गूंज पूरे देश में सुनाई दी। जस्टिस सूर्यकांत ने संयुक्त राष्ट्र की उस एजेंसी पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा — “संयुक्त राष्ट्र ने क्या भारत में शोरूम खोल रखा है? उन्हें किसने अधिकार दिया कि वे यहां शरणार्थियों को कार्ड जारी करें?” यह टिप्पणी सिर्फ अदालत के कमरे तक सीमित नहीं रही; यह भारत की संप्रभुता, कानून के शासन और विदेशी हस्तक्षेप पर एक गहरा सवाल बनकर गूंजी। सुप्रीम कोर्ट की यह नाराजगी बताती है कि अब भारत की भूमि पर किसी भी बाहरी ताकत की मनमानी नहीं चलेगी — चाहे वो संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था ही क्यों न हो।

सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष यह मामला रखा गया कि संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) भारत में विदेशी नागरिकों, विशेषकर बांग्लादेशी और म्यांमार से आए लोगों को “रिफ्यूजी कार्ड” जारी कर रही है। इन कार्डों के जरिए ये लोग सरकारी सिस्टम से बचकर रह रहे हैं, और धीरे-धीरे नागरिक अधिकारों जैसी सुविधाओं की मांग भी कर रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने इस पर सख्त लहजे में कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला है और यहां कौन शरणार्थी है, यह फैसला केवल भारत सरकार और भारतीय कानून ही करेंगे, न कि कोई विदेशी संस्था। उन्होंने तीखी टिप्पणी की — “भारत कोई अंतरराष्ट्रीय बाजार नहीं है कि यहां कोई भी एजेंसी आकर अपने कार्ड, पास और दस्तावेज बांटने लगे। यह देश संविधान से चलता है, किसी विदेशी निर्देश से नहीं।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि आखिर UN एजेंसी भारत में किस अनुमति के तहत यह काम कर रही है। क्या कोई औपचारिक समझौता हुआ है जिसने उन्हें यह अधिकार दिया हो? क्या भारत की सरकार ने उनकी गतिविधियों को वैध माना है? अगर नहीं, तो यह काम पूरी तरह असंवैधानिक है। अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि “भारत की सीमाओं के भीतर कोई विदेशी संस्था नागरिकता या शरण का अधिकार नहीं बांट सकती। यह सिर्फ भारतीय संसद और भारतीय न्यायपालिका का अधिकार है।” यह बयान केवल कानून की व्याख्या नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संप्रभुता की पुनर्पुष्टि है — यह संकेत कि भारत अपनी सीमाओं और अपने निर्णयों पर किसी बाहरी दबाव को स्वीकार नहीं करेगा।

यह मामला सिर्फ कुछ रिफ्यूजी कार्ड तक सीमित नहीं है। इसके पीछे वह पूरी मानसिकता छिपी है जो वर्षों से भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी एजेंसियों की दखलंदाजी को “मानवाधिकार” के चश्मे से देखने की कोशिश करती रही है। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं अक्सर भारत में “शरणार्थी”, “अल्पसंख्यक”, “मानवाधिकार” जैसे मुद्दों को लेकर रिपोर्टें जारी करती हैं, जो कई बार भारत की नीतियों पर सवाल उठाती हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी ने एक स्पष्ट संदेश दे दिया है — भारत की धरती पर कानून केवल भारत का चलेगा, न कि किसी विदेशी संस्था का। यह बयान राष्ट्रीय सुरक्षा, सीमाई स्थिरता और जनसांख्यिकीय संतुलन से जुड़े उन तमाम मुद्दों को भी छूता है जो पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय बहस का केंद्र रहे हैं — खासतौर पर अवैध घुसपैठ, रोहिंग्या विवाद, CAA और NRC जैसे विषयों के संदर्भ में।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत की यह नाराजगी केवल UNHCR तक सीमित नहीं रहेगी। यह उन दर्जनों अंतरराष्ट्रीय NGOs और विदेशी फंडिंग वाली संस्थाओं के लिए भी चेतावनी है जो भारत में धर्म, जाति या मानवाधिकार के नाम पर राजनीतिक और वैचारिक एजेंडा चलाती रही हैं। भारत की न्यायपालिका ने स्पष्ट कर दिया है कि यह देश अब अपने कानूनों पर कोई बाहरी ठप्पा नहीं लगने देगा। यह सिर्फ कानूनी टिप्पणी नहीं, बल्कि एक चेतावनी है — भारत अपनी नीति, अपनी सीमाओं और अपने निर्णयों में आत्मनिर्भर है और रहेगा।

जस्टिस सूर्यकांत की यह टिप्पणी एक तरह से “राष्ट्रीय अस्मिता” की आवाज है। जब उन्होंने कहा — “यहां शोरूम नहीं चला रहे हैं आप लोग” — तो यह सिर्फ व्यंग्य नहीं था, यह भारतीय संप्रभुता की सख्त उद्घोषणा थी। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि ऐसे मामलों में केंद्र सरकार को ठोस नीति बनानी होगी ताकि कोई भी विदेशी एजेंसी बिना अनुमति के इस तरह की गतिविधियों में शामिल न हो सके। भारत की न्यायपालिका यह स्पष्ट कर रही है कि देश की सीमाओं की सुरक्षा केवल सीमा पर तैनात सैनिकों का काम नहीं, बल्कि यह संवैधानिक जिम्मेदारी भी है — और इसमें किसी बाहरी ताकत की मनमानी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

आज का भारत 1947 का भारत नहीं है। अब यह देश अपने भीतर “विदेशी एजेंडा” नहीं चलने देगा। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी को अब यह समझना होगा कि भारत कोई ‘रिफ्यूजी कैंप’ नहीं है, बल्कि एक संविधान-संचालित संप्रभु राष्ट्र है। और इस धरती पर कौन रहेगा, किसे शरण दी जाएगी और किसे वापस भेजा जाएगा — यह फैसला केवल भारत का संविधान और उसकी न्यायपालिका करेगी, कोई और नहीं।

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी आने वाले समय में भारत की नीति निर्धारण की दिशा तय करेगी। यह एक स्पष्ट संदेश है कि भारत की संप्रभुता से बड़ा कोई अंतरराष्ट्रीय आदेश नहीं, और जो भी संस्था या संगठन भारत की नीति में हस्तक्षेप करने की कोशिश करेगा, उसे “कानूनी जवाब” मिलेगा। न्यायपालिका ने देश की अस्मिता की रक्षा की है — और यह संदेश सीधा संयुक्त राष्ट्र तक पहुंच गया है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *