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“बाबा” की सच्चाई पर पर्दा फटा — दिल्ली आश्रम मामला

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नई दिल्ली 30 सितंबर 2025

दिल्ली के वसंत कुंज स्थित एक प्रतिष्ठित पाठशाला/आश्रम में चल रही रहस्यमयी “आध्यात्मिक” आड़ में कई वर्षों से छात्र-छात्राओं के साथ धोखा, दबाव और यौन दुराचार की तहें खुलने लगी हैं। अब यह स्पष्ट हो गया है कि स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती — जिन्हें कभी “आध्यात्मिक मार्गदर्शक” के नाम से पूजा जाता था — असलियत में एक शुरु से ही शक्ति का दुरुपयोग करने वाला शख्स थे।

पुलिस ने हाल ही में उन्हें दो अपनी महिला सहायक-माध्यमों के सामने पेश किया, और उनके मोबाइल से पाए गए संवाद, तस्वीरें, ऑडियो और मैसेज ने उनकी चुप्पी को क्रंदन में बदल दिया है। उन संवादी रिकॉर्ड्स में “Baby, I love you”, “You look beautiful today” जैसी अभद्र अभिव्यक्तियाँ, संकेत कब्र तक घुस चुके विश्वासघात की दिशा में सहज रूप से इशारा करती हैं। 

लेकिन यह सिर्फ संदेशों का खेल नहीं है — आरोपों की श्रृंखला इतनी लम्बी और घनी है कि उसमें आश्रम के चहारदीवारी से लेकर छात्रावास और प्रशासन की दीवारें तक शामिल हो गई हैं। छात्राओं का कहना है कि उन्हें रातों में बुलाया जाता था, कहा जाता था कि अगर आदेशों का पालन न करें तो उनकी परीक्षा रद्द कर दी जाएगी या स्कोर घटा दिए जाएंगे; “आखिरी तक तुम्हारी पढ़ाई रुकेगी” — ऐसी धमकी उन्हें मिली। 

और यह सब “गुरु तत्व” के नाम पर छुपा हुआ था — कुछ महिला स्टाफ और वार्डन आनन-फानन में छात्राओं को दबाव डालते, मोबाइल से आपत्तिजनक चैट्स डिलीट करवाते और दूसरों को डराते थे कि अगर आवाज उठाई तो उनकी साख और रोशनियाँ दोनों बर्बाद हो जाएँगी। 

और हाँ — इस खेल में और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। स्वामी के पास एक लग्ज़री कार मिली है जिसमें नकली डिप्लोमैटिक / UN नंबर प्लेट पाई गई। उन्होंने चोरीछिपे छात्राओं को विदेश यात्राएं, अच्छे प्लेसमेंट, iPhones, लैपटॉप वगैरह देने का लालच दिया — यह सब जाल बिछाने का हिस्सा था। 

लेकिन अब “बाबा” का वह पर्सपेक्टिव टूटने लगा है जिसमें लोगों ने उन्हें श्रद्धा का पात्र माना। छात्राएँ, जिनकी बस्तियाँ और सपने इन “आदर्श” स्तम्भों द्वारा चुराए गए, अब खामोशी तोड़ रही हैं। उनकी आवाज़ — भय, शर्म, दबाव और उम्मीद का मिश्रण — आज पूरे देश तक पहुँच रही है।

पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया है — पर सवाल यह है: क्या सिर्फ गिरफ्तारी से इंसाफ हो जाएगा? उन महिला छात्राओं को जो दबाव, डर, धमकी और आर्थिक मजबूरी के कारण आवाज़ न उठा पाईं — उनका हक, उनका सम्मान, उनका भविष्य? इस बात को कौन सिरे से देखेगा?

यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति के पतन की कहानी नहीं, यह आश्रम-संस्था, संरचना, शक्ति तंत्र और समाज की सहनशीलता पर एक थर्राने वाली परीक्षा है। और अब, जो लोग विश्वास के नाम पर चुप पड़े रहे — उन्हें जवाब देना होगा।

 

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