नई दिल्ली 3 अक्टूबर 2025
पाक अधिकृत कश्मीर (PoK), जिसे भारत गुलाम कश्मीर कहता है, इन दिनों जबरदस्त अशांति, खून और बारूद की गंध में डूबा हुआ है। यहां जनता महंगाई, बेरोजगारी, बिजली-पानी की कटौती और गेहूं की आसमान छूती कीमतों (6000 पाकिस्तानी रुपये प्रति किलो तक) के खिलाफ सड़कों पर उतर आई है। यह आंदोलन किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा से नहीं बल्कि आम आदमी की बुनियादी जरूरतों से जुड़ा है। 29 सितंबर से शुरू हुआ यह विरोध अब हिंसक रूप ले चुका है और पाकिस्तान सरकार ने जनता की आवाज़ को दबाने के लिए सेना को उतार दिया है।
भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने 2 अक्टूबर 2025 को बयान जारी करते हुए कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में हो रही हिंसा पाकिस्तान के निरंकुश रवैये का “प्राकृतिक परिणाम” है। MEA प्रवक्ता रणदीप सिंह जायसवाल ने प्रेस ब्रीफिंग में स्पष्ट कहा कि पाकिस्तान वहां की जनता के अधिकारों को कुचल रहा है, उनके संसाधनों की लूट कर रहा है और भयावह मानवाधिकार उल्लंघन कर रहा है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने की अपील भी की।
इस जनांदोलन की अगुवाई जम्मू-कश्मीर जॉइंट अवामी एक्शन कमेटी (JKJAAC) कर रही है, जिसने ‘चक्का जाम’ और ‘शटर डाउन’ का आह्वान किया था। प्रदर्शनकारियों की मांगें स्पष्ट हैं— आटा, चीनी और बिजली जैसी जरूरी वस्तुओं पर सब्सिडी बहाल की जाए, विधानसभा सीटों पर पाकिस्तानी शरणार्थियों को दिया गया आरक्षण खत्म किया जाए और जलविद्युत जैसी परियोजनाओं से मिलने वाली रॉयल्टी स्थानीय जनता तक पहुंचे। लेकिन पाकिस्तान सरकार ने इन जायज़ मांगों का जवाब बातचीत या राहत देने के बजाय गोलियों और लाठियों से दिया।
विरोध प्रदर्शनों में मरने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। पहले दिन यानी 29 सितंबर को मुजफ्फराबाद में 2 लोगों की मौत हुई और 22 से अधिक लोग घायल हुए। तीसरे दिन हालात पूरी तरह बिगड़ गए और बाघ के धीरकोट में 4, मीरपुर और मुजफ्फराबाद में 2-2, और अन्य क्षेत्रों में कई लोगों की मौत हो गई। अब तक विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार 12 से 15 लोग मारे जा चुके हैं, जबकि 50 से ज्यादा लोग घायल हैं। इनमें से कई की हालत बेहद गंभीर है, जिससे आशंका है कि मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती है। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि असल में मौतों की संख्या सरकार छिपा रही है और यह आंकड़ा आधिकारिक बयानों से कहीं ज्यादा है।
पाकिस्तानी सेना की ज्यादतियाँ दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। भीड़ को रोकने के लिए आंसू गैस और रबर बुलेट्स के साथ-साथ असली गोलियां भी चलाई जा रही हैं। पुलों पर कंटेनर लगाकर रास्ते बंद कर दिए गए, लेकिन गुस्साई भीड़ ने इन्हें नदी में फेंक दिया। हालात बिगड़ने पर पंजाब से अतिरिक्त सैनिक बुलाए गए और पूरे PoK को छावनी में बदल दिया गया। मुजफ्फराबाद, बाघ और मीरपुर जैसे बड़े शहर आज भय और दहशत के माहौल में कैद हैं।
जनता की आवाज़ को दबाने के लिए पाकिस्तान सरकार ने इंटरनेट और मोबाइल सेवाएं ठप कर दीं। इतना ही नहीं, इस्लामाबाद प्रेस क्लब पर पुलिस ने छापा मारकर पत्रकारों को पीटा और कवरेज रोकने की कोशिश की। इससे साफ है कि पाकिस्तान सरकार सिर्फ प्रदर्शनकारियों की नहीं बल्कि मीडिया की आज़ादी को भी कुचलना चाहती है। यह कदम पाकिस्तान के लोकतंत्र के खोखलेपन को उजागर करता है।
JKJAAC और स्थानीय नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि अगर मांगें पूरी नहीं की गईं तो यह आंदोलन और तेज़ होगा। उन्होंने पाकिस्तान को “रोग स्टेट” करार देते हुए आरोप लगाया है कि इस्लामाबाद अपनी ही जनता का कत्लेआम कर रहा है। वहीं पाकिस्तान सरकार हमेशा की तरह इसे “भारतीय साजिश” करार देने में जुटी है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने इस दमनकारी कार्रवाई की कड़ी आलोचना शुरू कर दी है।
आज PoK की गलियों में जनता सिर्फ महंगाई और सुविधाओं की कमी के खिलाफ नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व और सम्मान के लिए लड़ रही है। पाकिस्तानी सेना की ज्यादतियों से मरने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है, और यह संघर्ष अब केवल रोटी-बिजली की लड़ाई नहीं, बल्कि स्वतंत्रता और आत्मसम्मान की जंग बन चुका है। गुलाम कश्मीर की यह आवाज़ अब दुनिया को यह बताने पर मजबूर कर रही है कि पाकिस्तान के कब्ज़े में जकड़ा यह इलाका किसी भी तरह लोकतंत्र नहीं, बल्कि सैन्य तानाशाही का शिकार है।